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AK Pankaj: अश्विनी कुमार पंकज से संविधान लाइव की बातचीत

उत्पादन, उपभोग और आदिवासी समाज विषय पर AK Pankaj से संविधान लाइव की बातचीत

यह बातचीत मुख्य रूप से तीन सवालों पर केंद्रित है।

1. मौजूदा दुनिया में उत्पादन के साधनों पर चंद लोगों का कब्जा हो चुका है। इसके कारणों क्या हैं? वह क्या परिस्थितियां रही हैं कि एक खास किस्म के तबके के हाथों में संसाधन सीमित होते जा रहे हैं?

2. आदिवासी समाज में उत्पादन, बंटवारे और उपभोग का मूल सिद्धांत क्या है?

3. नागर या शहरी समाज आदिवासी समाज के प्रकृति के साथ मिलकर रहने और सीमित उपयोग के दर्शन को क्यों नहीं अपना पाता है, वो क्या खामियां हैं, जिनके कारण शहरी समाज में सहभाग के बजाय अपने हिस्से को बटोरने की जिद ज्यादा है?

इन​ दिनों सत्ता और समाज के बीच संघर्ष लगातार तीखा होता जा रहा है। साथ ही उत्पादन के साधन चंद प्रभुत्वशाली लोगों के हाथों में कैद होते जा रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ व्यापक जनता के पास उपभोग की सामान्य चीजों का भी अभाव है। कुल मिलाकर एक खाई जो लगातार गहरी हो रही है। ऐसे में राजनीति और आर्थिक गतिविधियों पर कब्जा कर चुके समुदाय में यह आम सहमति बन चुकी है कि अधिकतम जनता की मेहनत पर चंद लोगों को असीमित उपभोग की छूट दी जानी है।

ऐसे हालात में आदिम समाज और न्यायपूर्ण अर्थशास्त्र पर बात करने के लिए संविधान लाइव की खास पेशकश में मौजूद हैं अश्विनी कुमार पंकज।

अश्विनी पंकज के बारे में
मूलत: कवि अश्विनी पंकज ने करीब 30 से ज्यादा किताबें विभिन्न विधाओं पर लिखी हैं। वे संवेदनशील कवि और सजग कहानीकार तो हैं ही पिछले करीब एक डेढ़ दशक में उन्होंने आदिवासी सौंदर्यबोध और इतिहास की जिन परतों को अपने विभिन्न लेखों, वक्तव्यों और किताबों से खोला है, वह भी मानीखेज है।

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सार्वजनिक मंचों, किताबों वेबसाइट्स आदि पर अश्विनी जी का एक सामान्य परिचय मौजूद है। जिससे पता चलता है कि उनका जन्म 9 अगस्त, 1965 को हुआ है। वे हिंदी और झारखंड की देशज भाषा नागपुरी और अपनी मातृभाषा मगही में लिखते हैं। अश्विनी जी ने आदिवासी जीवन, समाज, भाषा-संस्कृति, इतिहास और पर्यावरण पर थियेटर, फिल्म, लेखन जैसे अनेकों माध्यमों के जरिये काम किया है। मुख्य रूप से झारखंड और राजस्थान उनके कार्यक्षेत्र रहे हैं।

नब्बे के शुरुआती दशक में जन संस्कृति मंच और उलगुलान संगीत नाट्य दल, रांची के संस्थापक संगठक सदस्य रहे। 1987 में ‘विदेसिया’ का संपादन-प्रकाशन शुरू किया। 90 के दशक में आदिवासी भाषाओं में रंग-आंदोलन की पहल की और करीब डेढ़ सौ से ज्यादा नाटकों का लेखन-निर्देशन किया। जिनकी देश भर में सात हजार से अधिक रंगप्रस्तुतियां दीं। मीडिया और थियेटर की लगभग 60 से ज्यादा कार्यशालाओं में देश के कई कलाकारों को निखारने का काम उन्होंने किया है। 2012 में हुए देश के पहले दलित-आदिवासी नाट्य समारोह की परिकल्पना भी अश्विनी जी ने ही की थी।

आदिवासी विषय अश्विनी जी के सृजनकर्म के केंद्र में है और त्रैमासिक पत्रिका ‘रंगवार्ता’ हो, नागपुरी मासिक पत्रिका ‘जोहार सहिया’ या बहुभाषिक आदिवासी-देशज पाक्षिक ‘जोहार दिसुम खबर’ इनके प्रकाशन संपादन के जरिये अश्विनी जी ने हमारे समाज को गहरे तक प्रभावित किया है।

नाटकों के लेखन मंचन, पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन संपादन के अलावा दो दर्जन से ज्यादा डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण भी अश्विनी ने किया है। कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, राजनीति, इतिहास और दर्शन आदि क्षेत्रों में उनकी अब तक 25 या संभवत: 26 किताबें प्रकाशित हुई हैं।

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ये सभी बातें विभिन्न वेबसाइट पर मिल जाएंगी। लेकिन जो बात पता नहीं चलती है वो यह कि अश्विनी मूलत: एक कवि हैं। और उनके जीवन में भी कविता सी लय है। यह लय कभी बहुत धीमी होती है, तो कभी तीखी। कभी सवाल करती हुई, तो कभी हौले हौले दुलारती हुई। अश्विनी ने जो लिखा है, जो किया है और जो बोला है, उसमें और उनके जीवन में कोई फर्क नहीं है। अश्विनी के लिखे, बोले एक एक शब्द को उनके जीवन में देखा जा सकता है। बराबरी उनके जीवन का केंद्रीय फलसफा है और यह यही वजह है कि उनके दोस्तों में कच्ची उम्र के युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक की लंबी सूची है।

अश्विनी पंकज से उत्पादन, उपभोग और आदिवासी समाज विषय पर यह बातचीत आपको कैसी लगी। इस बारे में हमें जरूर बताएं।

संविधान लाइव के बारे में
संविधान लाइव एक डाक्यूमेंटेशन इनिशियेटिव है। इसके जरिये विभिन्न शहरों में रहने वाले युवा संस्कृतिकर्मी, पत्रकार, शिक्षक, सामाजिक, राजनीतिक कार्यकर्ता और अन्य विधाओं से जुड़े साथी अपने समय के दस्तावेजों को, हमारे जनआंदोलनों को दर्ज करने की नितांत निजी कोशिश कर रहे हैं। यह काम हम एक वेबसाइट और एक यूट्यूब चैनल के जरिये कर रहे हैं। भोपाल में समय समय पर संविधान लाइव के स्टडी सर्किल और अन्य कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। कोरोना काल में इनकी गति धीमी है, लेकिन यह प्रयास सतत जारी है।

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