कहानी गुमशुदगी की: विस्थापन, पलायन और गुमशुदगी के बीच एक दूसरे के दुखों को साझा करते राजू रेड्डी और आशा जी

राधा जाटव, संविधान लाइव

चिलचिलाती धूप, प्यास से सूखा गला और ढूंढते हुए अनकही कहानियां, हमारी टीम खाने की तलाश में पहुंचती है बरखेड़ा में दीपक ढाबे पर।
यहां हमें दो किरदार मिले। राजू जी और आशा जी। राजू जी की कहानी का एक सिरा आशा जी की कहानी से जुड़ा है। तो आशा जी की कहानी में गुमशुदा होने का दर्द है। राजू और आशा की कहानी में एक हिस्सा जो ज्यादा जगह घेरता है, वो है अपनी जमीन से उखड़ने का दर्द। यह विस्थापन और पलायन की कौन सी परत हैं, आप तय करें।

दीपक ढाबे के मालिक राजू रेड्डी जी का जिंदगी का सफर कहानियों से भरा पड़ा है। इस सफर में हैदराबाद से होशंगाबाद तक के हिस्से शामिल हैं। राजू जी की नानी यशोदा 50 साल पहले हैदराबाद से होशंगाबाद के बरखेड़ा गांव में पलायन करके आई थीं। उनके परिवार के अन्य सदस्य भी यहां आए। आज दो पीढ़ियां बीतने को हैं लेकिन आज वे यही के होकर‌ रह‌ गये। नानी अभी नहीं रही जिनकी याद में बना चबूतरा ढाबे के पीछे ही है।
राजू बताते हैं कि पिता को हाल ही में हार्ट अटैक से मौत हो गई है। इसके बाद से राजू जी की मां और चुप हो गई हैं। मां साथ‌ रहती‌ है। हालांकि संस्कृति, भाषा और रहन-सहन का हस्तांतरण नहीं हुआ है। वे कहते हैं कि करीब 15 साल पहले हैदराबाद गया था इसके बाद जाना नहीं हुआ। नानी तेलुगु जानती थीं, लेकिन दूसरी पीढ़ी तक भाषा का हस्तांतरण नहीं हुआ। राजू खुद कहते हैं कि उन्हें बिलकुल तेलुगु नहीं आती। हालांकि यह कहते हुए उनके चेहरे पर अफसोस भी दिखता है।

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पेट को काटती भूख ने हमें खटिया पर बैठने के लिए मजबूर किया। बातचीत के सिलसिले के दौरान नजर थोड़ी दूरी पर हंसते हुए हमें ताकती महिला पर पड़ी।l वे बर्तन साफ कर रही थी। साथ ही नियमित अंतराल पर हमारी ओर देखकर मुस्कुरा रही थी। उनकी बच्चों की तरह‌ मासूमियत से भरी मुस्कराहट ने बात करने की  उत्सुकता जगाई। मौका पाकर उनसे बातचीत की। बातचीत के दौरान पता चला कि उनका नाम आशा है, वो ठीक से बात नहीं कर पाती। केवल हां और न में ही जबाव दे रही थी। राजू जी ने बातचीत के दौरान बताया कि वो ढाबे पर पिछले 35 वर्षों से काम कर रही हैं और वही रहती हैं। ढाबे मालिक राजू ने आशा जी को आश्रय दिया, उन्हें काम दिया जब‌ वे सड़क पर भटक रही थी। उन्होंने आगे बताया कि उनके करीबियों और परिवार के लोगों को खोजने की कोशिश की लेकिन किसी का कोई पता नहीं चला। आशा जी इशारों में टुकड़ों टुकड़ों में बताती हैं कि उनकी 6 बहनें हैं और सभी पढ़ी लिखी हैं। हालांकि यह बात कितनी सही है, यह कहना मुश्किल है। जैसी भी परिस्थितियां हैं, लेकिन आशा जी काफी खुश हैं। ढाबे पर आने वाले लोग उनका सम्मान करते हैं।

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आशा जी और राजू को देखकर लगता है कि दोनों का मां-बेटे का रिश्ता है जहां राजू को मां का स्नेह मिल रहा है और आशा जी को अनजाने रास्तें में बेटा मिल गया।