Medha Patkar: नदियों पर बांध सबसे बदनाम विकास नीति: मेधा पाटकर

संविधान लाइव की टीम ने अपनी यात्रा के दौरान नर्मदा बचाओ आंदोलन की कार्यकर्ता मेधा पाटकर से मुलाकात की। इस दौरान उन्होंने आंदोलन से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा की। साथ ही देश के मौजूदा हालात और ​विकास की अवधारणा पर अपनी टिप्पणी की। 1 दिसंबर 1954 को जन्मी मेधा सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वे नर्मदा बचाओ आंदोलन से 80 के दशक में जुड़ीं और इसके बाद से लगातार आंदोलन का प्रमुख चेहरा रही हैं। अपना पूरा समय नर्मदा आंदोलन में देते हुए वे देश के आंदोलनों की एक धुरी भी हैं। नर्मदा नदी महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और गुजरात से होते हुए अरब सागर में पहुंचती है। इस नदी पर कई सारे छोटे और बड़े बांध बने हैं। नदी किनारे की जमीन सबसे उपजाऊ मानी जाती हैं जो किसानों से छीनी गई। इससे हजारों आदिवासी और अन्य ग्रामीणों को विस्थापन का दंश झेलना पड़ा है। मेधा कहती हैं कि किसानों की जमीन भी डूब में आई और बाद में वे किसान मजदूर बनकर रह गए। उन से उनकी रहने की जगह, खेती की जगह छीन ली गई और मुआवजा देकर सरकारों ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली। नदी किनारे की सबसे पुरानी आदिवासियों संस्कृति बिखर गईं हैं। नदियों पर बांध बनाने की नीति अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे बदनाम विकास नीति है। इसका सीधा असर सामाजिक, पर्यावरण, आर्थिक और सामाजिक पहलुओं पर पड़ता है। दूसरा, बांध बनाने की मंजूरी देने के पहले ठीक तरीके से अध्ययन भी नहीं किया गया। जिसकी सजा आज तक लोग भुगत रहे हैं।

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