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LGBTQ: अमेरिका में एलजीबीटीक्यू के लिए सबसे बुरा साल है 2021

अगर आपको लगता है कि अमेरिका में एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के अधिकार सुरक्षित हैं और धीरे धीरे ही सही वहां उन्हें स्वतंत्रता मिल रही है, तो आप गलत हैं। असल में हकीकत यह है कि इस साल के शुरुआती पांच महीनों को ही देखें तो एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के अधिकारों पर सबसे ज्यादा हमले अमेरिका में ही हुए हैं। यह हमले संस्थानिक हैं यानी सरकारों की ओर से किए गए हैं।

अमेरिका के एक अग्रणी मानवाधिकार समूह ने कहा है कि बीते पांच महीनों में 2021 अभी से देश में एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के अधिकारों के लिहाज से सबसे बुरा साल बन चुका है।

ह्यूमन राइट्स कैंपेन (एचआरसी) ने इसके लिए अमेरिका के राज्यों द्वारा लाए गए उन दर्जनों कानूनों को जिम्मेदार बताया है, जो समलैंगिक और ट्रांसजेंडर अधिकारों से संबंधित हैं। संस्था ने बताया कि इस साल अभी तक अलग-अलग राज्यों में 18 ‘एलजीबीटीक्यू-विरोधी’ बिलों को पास कर कानून बना दिया गया है। एचआरसी के मुताबिक यह स्थिति 2015 से भी ज्यादा गंभीर है। 2015 में इस तरह के 15 कानून बनाए गए थे। संस्था ने इसे एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ) समुदाय पर एक ‘अभूतपूर्व हमला’ बताया।

इनमें से सात कानून ट्रांस बच्चों को खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने से रोकते हैं और बाकी ट्रांस युवाओं के लिए मेडिकल देखभाल पर रोक लगाते हैं और अभिभावकों को अनुमति देते हैं कि वो स्कूल में अपने बच्चों को एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ) संबंधित विषयों से दूर रखें। संस्था ने बताया कि राज्य विधायिकाओं में इस साल एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ) अधिकारों से संबंधित 250 से भी ज्यादा बिल लाए गए, जिनसे अमेरिका में एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ) समर्थकों और रूढ़िवादियों के बीच चल रहे एक भयंकर युद्ध का पता चलता है।

इसमें रूढ़िवादियों का साथ कुछ धार्मिक समूह भी दे रहे हैं। एचआरसी के अध्यक्ष अल्फोंसो डेविड ने एक बयान में कहा, “इस संकट को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यह जरूरी है कि वो सब लोग जो इस पर कुछ बोल सकते हैं वो कुछ ठोस कदम उठाएं। ये विधेयक न सिर्फ नुकसानदेह और भेदभावपूर्ण हैं, ये हमारे लोकतंत्र और चुने हुए नेताओं द्वारा उनके मतदाताओं की सुरक्षा और सेवा करने की प्रतिबद्धता की विफलता भी दिखाते हैं।”

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इन कदमों के समर्थकों का कहना था कि वो स्कूलों में लड़कियों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करना चाहते थे और युवाओं को ऐसे मेडिकल फैसले लेने से रोकना चाहते थे, जिन पर उन्हें बाद में पछतावा होता। हालांकि कई राज्यों की विधायिकाओं द्वारा एलजीबीटीक्यू+ (LGBTQ) अधिकारों को सीमित करने वाले कानून पास किए गए हैं, राष्ट्रपति जो बाइडेन की सरकार ने कार्यकारी आदेशों के जरिए इन अधिकारों का और विस्तार किया है।

शपथ लेने के शुरुआती दिनों में ही बाइडेन ने केंद्रीय एजेंसियों को लैंगिक अल्पसंख्यकों को बराबरी के अधिकार देने और अमेरिका के ट्रांस नागरिकों को सेना में भर्ती होने की अनुमति देने के आदेशों पर हस्ताक्षर किए थे।

LGBTQ समलैंगिकों के अधिकार छीन रहे हैं ये देश
अमेरिका: अमेरिका ने इस साल से सेना में ट्रांसजेंडरों की भर्ती पर रोक को लागू करना शुरू कर दिया है। 2016 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ट्रांसजेंडरों को सेना में काम करने की अनुमति दी थी, लेकिन 2017 में राष्ट्रपति पद संभालने वाले डॉनल्ड ट्रंप ने इसे बदलने की घोषणा की। ट्रंप ने इस फैसले की एक बड़ी वजह दवाओं पर आने वाले खर्च को बताया।

रूस: रूस में पिछले साल पहली बार तथाकथित ‘गे प्रोपेगैंडा’ कानून के तहत एक नाबालिग पर जुर्माना किया गया। इस कानून का इस्तेमाल वहां एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय को दबाने के लिए किया जाता है। 2013 में बने इस कानून के तहत नाबालिगों में समलैंगिकता को बढ़ावा देने की कोशिश या फिर ऐसा कोई भी आयोजन गैरकानूनी है। इसके तहत वहां गे परेड रोकी गई और समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को हिरासत में लिया गया।

पोलैंड: पोलैंड की सत्ताधारी पार्टी के नेता यारोस्लाव काचिंस्की ने इस साल गे प्राइड मार्चों की आलोचना की और कहा कि इसे रोकने के लिए कानून लाया जाना चाहिए। कट्टरंपंथी लॉ एंड जस्टिस पार्टी ने एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय विरोधी अपने रुख को चुनाव का बड़ा मुद्दा बनाया है। आलोचकों का कहना है कि इस वजह से समलैंगिकों के खिलाफ हिंसा के मामलों में इजाफा देखने को मिला है।

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इंडोनेशिया:  इंडोनेशिया में समलैंगिक पुरुषों के बीच शारीरिक संबंधों पर प्रतिबंध लगाने वाले एक कानून का मसौदा तैयार किया गया है, जिस पर पिछले महीने संसद में विरोध के चलते मतदान नहीं हो पाया। इसके तहत विवाहेत्तर शारीरिक संबंध भी गैरकानूनी होंगे। गर्भपात कराने पर भी चार साल की सजा होगी। सिर्फ मेडिकल इमरजेंसी, बलात्कार या काले जादू के लिए जेल की सजा मिलने पर ही गर्भपात कराने की छूट होगी।

नाइजीरिया: नाइजीरिया ने 2014 में एक बिल पास किया, जिसमें समलैंगिक सेक्स के लिए 14 साल की सजा का प्रावधान किया गया। अधिकारियों ने 2017 में समलैंगिक गतिविधियों के मामले में 43 लोगों के खिलाफ आरोप तय किए। इनमें से ज्यादातर को निगरानी में रखा गया और उनका ‘यौन पुर्नवास’ किया गया।

मलेशिया: मलेशिया में एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के लोगों को प्रताड़ित करने के मामले बढ़ रहे हैं। पिछले साल तेरेंगगानु राज्य में दो महिलाओं को आपस में शारीरिक संबंध कायम करने के लिए सार्वजनिक तौर पर बेंतों से पीटा गया। प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद का कहना है कि उनका देश समलैंगिक शादियों और एलजीबीटीक्यू (LGBTQ) समुदाय के अधिकारों को स्वीकार नहीं कर सकता।

चाड: अफ्रीकी देश चाड ने 2017 में नई दंड संहिता पर अमल करना शुरू किया, जिसमें समलैंगिक संबंधों के लिए छोटी कैद की सजाओं और जुर्माने का प्रावधान किया गया। इससे पहले वहां स्पष्ट तौर पर समलैंगिक संबंध गैरकानूनी नहीं थे, हालांकि अप्राकृतिक कृत्यों की निंदा करने वाला एक कानून जरूर था।

स्लोवाकिया: स्लोवाकिया ने 2014 में अपने संविधान में पारंपरिक शादी की परिभाषा को जगह दी। 2015 में वहां पर एक जनमत संग्रह हुआ, जिससे समलैंगिक शादियों और उनके द्वारा बच्चे गोद लेने पर रोक को और मजबूती मिलने की उम्मीद थी, लेकिन जनमत संग्रह में बहुत कम लोगों ने हिस्सा लिया जिसके कारण उसे मंजूरी नहीं मिल सकी।