अस्पताल, दवा और प्रशासनिक चुप्पी के बीच उम्मीद की एक पहल

अस्पताल, दवा और प्रशासनिक चुप्पी के बीच उम्मीद की एक पहल

सायरा

कोरोना के दौरान हर किसी की आंखों के सामने से कई दृश्य गुजर रहे हैं। कुछ सुनकर, कुछ महसूस करके। इन्हीं में से कुछ दृश्यों को पकड़ा है संविधान लाइव की साथी सायरा खान ने। वे लगातार कोरोना से लड़ रहे मरीजों के बीच हैं। उनकी कहानियों को सुन रही हैं, बयान कर रही हैं। ऐसे ही दृश्यों में से रेमडेसिविर की किल्लत और कालाबाजारी, प्रशासन की चुप्पी और सामाजिक संगठनों की पहल का जिक्र कर रही है सायरा की यह रिपोर्ट.

  • – संविधान लाइव

दृश्य 1ः कोलार रोड नि

वासी एक परिवार के बुजुर्ग की तबीयत बिगड़ गई। उन्होंने प्राथमिक उपचार घर पर किया। आराम नहीं मिला और हालत बिगड़ गई, तो परिवार उन्हें अस्पताल लेकर गया। वहां चेकअप किया, तो कोरोना पॉजिटिव बताया। हालत बिगड़ती जा रही थी। ऑक्सीजन की जरूरत थी। अस्पताल में ऑक्सीजन बेड खाली नहीं थे। डॉक्टरों का कहना था कि आप मरीज को दूसरे अस्पताल ले जाएं। इसके बाद परिजनों ने अस्पतालों के चक्कर लगाने शुरू किए। लेकिन कुछ हल नहीं मिला।

दृश्य 2ः गांधीनगर निवासी एक व्यक्ति के परिचित कोरोना पॉजिटिव निकले। उन्हें हमीदिया अस्पताल में भर्ती कराया गया। उन्हें समय पर इंजेक्शन नहीं मिला। अस्पताल में बताया गया कि रेमेडेसिविर इंजेक्शन खत्म हो गए हैं। बाहर से खरीद लाओ। परिजन भोपाल के हर मेडिकल पर चक्कर लगा रहे थे। रेमेडेसिविर इंजेक्शन नहीं मिल पा रहा था। कहीं से सूचना मिली कि एक व्यक्ति इसकी व्यवस्था करा सकता है। उस व्यक्ति ने बताया कि भाई इंजेक्शन तो मिल रहा है, लेकिन महंगे दामों पर 3600 रूपये से 5000 रूपये तक कई मेडिकल वाले इसे अलग-अलग दामों पर बेच रहे हैं। अगर आपको परिजन की जान बचाना है तो ज्यादा पैसा देकर खरीद लो।

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यह दोनों दृश्य शहर और प्रदेश में कोरोना के हालात की एक बानगी हैं। जिम्मेदार विभाग और व्यक्तियों को इन हालात का अंदाजा है, या नहीं यह नहीं कहा जा सकता। अगर उन्हें इन हालात की जानकारी नहीं है, तो यह बेहद चिंताजनक बात है, और अगर जानकारी है और इसके खिलाफ कोई एक्शन नहीं हो रहा है, तो यह भी गंभीर स्थिति है।

हालात यह हैं कि लोग महामारी से मर रहे हैं और कई जिम्मेदार फोन बंद करके घर बैठे हैं। इस हकीकत का अंदाजा आपको तब हो जाएगा, जब सरकारी विभागीय वेबसाइटों और अस्पतालों की ओर से जारी किए गए नंबरों पर आप फोन करेंगे। फोन पर रिंग तो जा रही है लेकिन कोई फोन उठा नहीं रहा है।

सामाजिक संस्थाओं ने की पहल
ऐसे में कुछ सामाजिक संस्थाएं आगे आई हैं और उन्होंने कोविड-19 के लिए कुछ कदम उठाएं हैं। ताकि मरीजों को कुछ फौरी सहायता मिल सके। जैसे ऑक्सीजन बेड, कोविड-19 अस्पताल और दवाइयां। इनके लिए उन्हें भटकना ना पड़े। कुछ संस्थाओं ने एकजुट होकर कोविड-19 अस्पताल की लिस्ट बनाई और एक हेल्पलाइन नंबर जारी किया।

इस पर संपर्क कर मरीजों को अस्पताल, ऑक्सीजन बेड, दवाइयां आदि कहां मिल रही हैं, इसकी जानकारी प्राप्त कर सकें। सही जगह पर, सही समय पर पहुंच जाएं। ताकि पीड़ित की मदद हो सके। बीते तीन-चार दिनों में इस तरह की स्वयंसेवी हेल्पलाइन पर कई कॉल आए और मरीजों को अस्पताल पहुंचाया गया। डॉक्टरों से भी बात की गई, ऑक्सीजन एजेंसियों से भी बात की गई। पता नहीं इस बारे में भी शासन और विभाग को जानकारी है या नहीं, या फिर मूक दर्शक की भांति वह यह सब होते देख रहे हैं।

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क्या है रेमडेसिविर जिस पर मचा है हाहाकार
रेमडेसिविर इंजेक्शन पर शहर भर में हाहाकार मचा हुआ है। यह इंजेक्शन मार्केट में उपलब्ध है। कीमत 900 रूपये से 1600 रूपये तक है। यह इंजेक्शन गंभीर मरीज को लगाया जाता है। इसके 6 डोज लगते हैं। शुरुआत में 200 एमजी के दो डोज लगाए जाते हैं और बाद में 100 एमजी के चार डोज लगते हैं। इससे गंभीर मरीज की स्थिति में थोड़ा सुधार होता है।

लोगों को यह भ्रम है कि यह कोरोना को खत्म करने वाली वैक्सीन है। सच तो यह है कि यह केवल रोगी की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। सामान्य शब्दों में कहे तो यह कुछ हद तक हमें कोरोना से लड़ने में मदद करता है। यह कोरोना को खत्म नहीं करता है। आम आदमी यह समझ रहा है कि इस इंजेक्शन को लगाने से कोविड-19 हमेशा के लिए ठीक हो जाता है और इसी भ्रम का फायदा कुछ दवा के सौदागर उठा रहे हैं।

इस इंजैक्शन को 5000 से 6000 और कुछ मामले में तो 50 हजार तक में बेचा जा रहा है। इसका प्रभाव निम्न वर्ग के लोगों पर बहुत बुरा पड़ रहा है। जो एक वक्त का खाना नहीं खा पा रहे हैं, अन्य सुविधाओं से वंचित हैं वे चारों तरफ लाशों के ढेर लगे देख इस इंजेक्शन की ओर भाग रहे हैं, और जैसे तैसे खुद को सुरक्षित करने का भ्रम पालना चाहते हैं।