Violence against women

Violence Against Women: कुछ नहीं बदलने वाला आप क्यों परेशान हो रहे हैं

आज के बाद जब भी किसी महिला के साथ हिंसा होगी हम महिलाएं मदद करेंगे

“चुप रहना नहीं, हिंसा सहना नहीं” नारे के साथ भोपाल में शुरू हुआ अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन पखवाड़ा

Elimination of Violence Against Women
अंतरराष्ट्रीय महिला हिंसा उन्मूलन पखवाड़ा – पहला दिन

नीलू दाहिया, एका— द कम्युनिकेटर्स कलेक्टिव

Violence against womenभोपाल। भोपाल की कुछ बस्तियों में युवा समूह के साथी नारों, गीतों, पोस्टर के साथ महिला हिंसा पर बात करने सड़क पर उतरे तो वे कई तरह के सवालों से दो चार हुए। एक तरफ कुछ लोगों ने कहा कि “आप क्यों परेशान हो रहें हैं, कहीं कुछ नहीं बदलेगा,” तो दूसरी तरफ यह आवाज भी आई कि “आज के बाद जब भी महिलाओं के साथ कुछ गलत होगा, तो हम उनकी मदद करेंगे।”

इसके अलावा भी कई सवाल और विचार सामने आए जैसे—
“अगर किसी महिला के साथ हिंसा होती है, तो उनको थाने जाना चाहिए, क्योंकि थाने में महिला की ज्यादा सुनी जाती है, लेकिन महिलाएं इसके बावजूद थाने नहीं जाती हैं।”
“अगर कोई पति कहता है कि शादी के बाद महिला उसकी प्रॉपर्टी है तो फिर शादी तो महिला ने भी की है तो क्या फिर पति उसकी प्रॉपर्टी है”
“कानून में समानता के बावजूद आज भी समाज में महिलाओं के साथ गैर बराबरी क्यों है?”
“इतने अधिकार मिलने के बावजूद भी महिलाओं के ऊपर हिंसा क्यों नहीं रुक रही है?”
“आर्टिकल 15 का जिक्र करते हुए पूछा गया कि धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है, तो फिर हम लिंग के आधार पर क्यों समाज में अपनी बहन, बेटी, पत्नी या फिर किसी महिला के साथ भेदभाव करते हैं?”
“क्यों आज भी समाज में महिलाओं को समान काम का समान वेतन नहीं मिलता है?”
“आए दिन न्यूज़ में देखो तो लड़कियों के साथ बलात्कार होता है। हम लोगों ने तो न्यूज़ देखना ही बंद कर दिया है। पता नहीं कब सुधरेगा देश।”

Violence against women

ये कुछ आवाजें हैं, जो भोपाल में महिला हिंसा के खिलाफ शुरू किए गए एक अभियान के दौरान सुनाई दीं। भोपाल में महिलाओं के विरुद्ध हिंसा को रोकने के लिए एका- द कम्युनिकेटर्स कलेक्टिव की ओर से 25 नवंबर को एक 16 दिवसीय अभियान की शुरुआत की गई है। “चुप रहना नहीं, हिंसा सहना नहीं” नारे के साथ शुरू हुए इस अभियान के दौरान एका- द कम्युनिकेटर्स कलेक्टिव की टीम भोपाल की विभिन्न बस्तियों, चौराहों, मार्केट आदि में पहुंचकर नागरिकों से बातचीत की। इस बातचीत में यह बातें उभर कर सामने आईं।

एका टीम की ओर से अभियान के दौरान, जनगीत, नारों, नुक्कड़ नाटक, नुक्कड़ चर्चा, संवाद आदि के माध्यम से महिलाओं पर हो रही हिंसा और इसे रोकने में आम नागरिकों की भूमिका पर बात की जा रही है।

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Violence against womenपखवाड़े की शुरुआत करते हुए शनिवार को भोपाल शहर के अरेरा कॉलोनी के करीब स्थित बीडीए ​मल्टी, गड्ढे वाली मल्टी, पीसी नगर और ईश्वर नगर बस्तियों में घर-घर जाकर अभियान चलाया गया। गलियों में पर्चे और पोस्टर चिपकाए गए और और बातचीत में शामिल होने के लिए युवाओं, महिलाओं, पुरुषों, बच्चों को आमंत्रित किया गया।

इस दौरान “भीख नहीं अधिकार चाहिए, हिंसा मुक्त समाज चाहिए”, “महिलाओं को अधिकार दिलाना है, यह आवाज घर घर पहुंचाना है”, “महिलाओं ने यह ठाना है, हिंसा के खिलाफ आवाज उठाना है” जैसे नारों के साथ नागरिकों से पखवाड़े में शामिल होने का आह्वान किया गया।

कार्यक्रम में सबसे पहले एका की परफॉर्मिंग मीडिया टीम ने जनगीत गाकर लोगों को जागरूक किया। युवा साथियों ने चलो “सखी आज हम संगठन बनाएंगे”, “बेड़ियों को तोड़ेंगे बंधनों को तोड़ेंगे,” “न्याय नाम की चीज़ नहीं, अन्याय बढ़ता जाय रे,” “मेहनत करता धोती वाला पुलिस वाला खाय रे”, “दरिया की कसम मौजों की कसम, यह ताना बाना बदलेगा” जैसे गीतों से शुरुआत की।

बाद में इन गीतों पर चर्चा भी की गई। इसके बाद युवा साथियों ने महिला हिंसा पखवाड़ा मनाने के उद्देश्य जानकारी दी और इस दौरान महिलाओं को संविधान में दिए गए अधिकारों से चर्चा की शुरुआत की गई। इसमें आर्टिकल 14 के जरिये समानता के अधिकार के बारे में बताया गया। संविधान के बारे में बताते हुए कहा कि हमारे देश के संविधान में सभी क्षेत्रों में महिलाओं को समान अवसर देने की बात कही गई है। चाहे वह शिक्षा हो, राजनीति हो या सामाजिक क्षेत्र।

  • Violence against womenसाथियों ने इस दौरान उपस्थित नागरिकों से सवाल किया कि
    कानून में समानता के बावजूद आज भी समाज में महिलाओं के साथ गैर बराबरी क्यों है?
    इतने अधिकार मिलने के बावजूद भी महिलाओं के ऊपर हिंसा क्यों नहीं रुक रही है?
    आर्टिकल 15 का जिक्र करते हुए पूछा गया कि धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान के आधार पर किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाता है, तो फिर हम लिंग के आधार पर क्यों समाज में अपनी बहन, बेटी, पत्नी या फिर किसी महिला के साथ भेदभाव करते हैं?
    क्यों आज भी समाज में महिलाओं को समान काम का समान वेतन नहीं मिलता है?
    ऐसे सवालों पर महिलाओं के साथ खुली चर्चा की गई।

इस दौरान लिंगानुपात के बारे में चर्चा करते हुए बताया गया कि अगर समाज में 1000 पुरुष हैं और 933 महिलाएं हैं, तो फिर यह किस तरह की समानता है। इस मुद्दे पर भी महिलाओं के साथ खुली चर्चा की गई।

अभियान के दौरान उपस्थित महिलाओं व अन्य नागरिकों ने कहा कि

महिलाओं के साथ हिंसा नहीं होनी चाहिए ना ही किसी को भी महिला के साथ हिंसा करनी चाहिए।
अगर किसी महिला के साथ में हिंसा होती है, मारपीट होती है, या फिर महिलाओं को कोई गाली देता है, तो उनको थाने जाना चाहिए, क्योंकि थाने में महिला की ज्यादा सुनी जाती है, लेकिन महिलाएं उसके बावजूद भी थाने नहीं जाती हैं।
अगर कोई पति कहता है कि शादी के बाद महिला उसकी प्रॉपर्टी है तो फिर शादी तो महिला ने भी की है तो क्या फिर पति उसकी प्रॉपर्टी है और अगर पुरुष यह कहकर महिला के साथ मारपीट करता है कि तुम मेरी पत्नी हो तो मैं तुमको मार सकता हूं तो पत्नी भी तो यह कह कर उसको मार सकती है कि तुम भी मेरे पति हो लेकिन इसके बावजूद भी महिलाएं ज्यादातर चुप रहती हैं, वह कुछ नहीं कहती हैं।
Violence against womenज्यादातर हम लोग इसलिए भी नहीं बोलते हैं क्योंकि वह बोलते हैं कि मेरी पत्नी है या मेरे घर का मामला है इसलिए हम लोग दूसरों के झगड़ों में नहीं बोलते हैं।
लेकिन आज के बाद जब भी किसी महिला के साथ में हिंसा होगी, गाली गलौच होगी, मारपीट होगी तो हम महिलाएं जरूर उनके साथ खड़ी होंगी और उस महिला की मदद करेंगे।
कुछ लोगों ने कहा कि हमारी बस्ती में सब कुछ अच्छा है हमारी बस्ती में महिलाओं के साथ मारपीट नहीं की जाती है।
कुछ लोगों ने कहा कि यहां कुछ नहीं बदलने वाला है, आप लोग क्यों परेशान हो रहे हैं। इस रैली में गाना गाकर नाटक कर के यह तो कब से चला आ रहा है और पता नहीं कब रुकेगा। क्योंकि आए दिन न्यूज़ में देखो तो लड़कियों के साथ बलात्कार होता है। हम लोगों ने तो न्यूज़ देखना ही बंद कर दिया है। पता नहीं कब सुधरेगा देश।
इंसान अब इंसान नहीं रह गए हैं, जानवर हो गए हैं। वह छोटी-छोटी बच्चियों को भी नहीं छोड़ते हैं।

रैली के दौरान बहुत सारे युवा, महिला एवं पुरुष सामने आए और उन्होंने रैली के बारे में पूछा। इस अभियान के बारे में पूछा और इस अभियान का समर्थन किया कि महिलाओं के साथ हिंसा बंद होनी चाहिए, ताकि हम लोग भी बिना डरे अपने घर की बेटियों को बाहर जाने दें। नहीं तो हमको यह डर बना रहता है कि यह जमाना बहुत खराब है, कहां किसके भरोसे अपनी बेटियों को भेज दें।

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पहले दिन एका की टीम ने करीब 1000 लोगों तक पहुंच बनाई और रैली, नाटक, जनगीत, डोर टू डोर कैंपेन के जरिये महिला हिंसा विरोधी पखवाड़े से लोगों को जोड़ा।

इस अभियान में एका द कम्युनिकेटर्स कलेक्टिव के युवा समूह की प्रांची, राखी, अक्षय, हिना, कलश, शबाना, आकाश के अलावा एका टीम की भारती, भावना, तबस्सुम, चंदन, अलीना, शाहीन, निगहत और नीलू ने प्रमुख रूप से हिस्सेदारी की।