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JADS: तो क्या बड़वानी जिला प्रशासन को किया जाएगा जिला बदर?

जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) की ओर से दिया गया नोटिस

आमतौर पर जिला बदर कार्रवाई हमारे देश में नागरिकों के खिलाफ होती है, लेकिन संभवत: देश में पहली बार किसी जिला प्रशासन को कारण बताओ नोटिस दिया गया है कि क्यों न पूरे प्रशासन को जिला बदर कर दिया जाए। मामला बड़वानी का है और यहां जिला प्रशासन और स्थानीय नागरिकों के बीच अधिकारों और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को लेकर लंबे समय से रस्साकशी जारी है। इसी रस्साकशी में अब नौबत यहां तक आ गई है कि स्थानीय आदिवासियों ने जिला प्रशासन को कारण बताओ नोटिस थमाते हुए पूछा है कि — हमारे संवैधानिक और मूलभूत अधिकारों से हमको वंचित रखने के लिए, क्यों न प्रशासन को जिला बदर किया जाए?

याद दिला दें कि इसके पहले बड़वानी जिला प्रशासन ने सामाजिक कार्यकर्ता वालसिंग सस्ते को जिला बदर कार्यवाही हेतु कारण बताओ नोटिस सौंपा था। स्थानीय नागरिकों, सामाजिक संगठनों और आदिवासियों ने इसे संवैधानिक अधिकारों के संघर्ष को दबाने की कोशिश करार दिया और इसका कड़ा विरोध किया। इसी क्रम में जिला प्रशासन को कारण बताओ नोटिस भेजकर पूछा गया है कि क्यों न जिला प्रशासन को जिला बदर कर दिया जाए?

इस नोटिस की संवैधानिक स्थिति पर सवाल किया जा सकता है कि क्योंकि जिला प्रशासन असल में राज्य और केंद्र सरकार के प्रति जवाबदेह है, लेकिन इस नोटिस ने सवाल तो खड़ा कर ही दिया है कि आखिर जनता के लिए काम करने वाली लोकतांत्रिक संस्थाओं की जवाबदेही जनता के प्रति महज 5 साला रस्म अदायगी वाले चुनाव में वोट तक सीमित है या उसके ​जनता के जीवन स्तर को बेहतर बनाने की है।

बहरहाल, जनता को अपने आदेशों, नियमों के जरिये ताकत से हांकने वाले प्रशासन को अगर कारण बताओ नोटिस मिल रहा है तो इसका सांकेतिक ही सही, महत्व तो है।

क्या है मामला
असल में आज 3 अगस्त को बड़वानी में करीब 2500 आदिवासियों ने जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) के वरिष्ठ आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ता वालसिंग सस्ते के खिलाफ जिला बदर कार्यवाही का विरोध किया। वालसिंग सस्ते को प्रशासन ने कारण बताओ नोटिस दिया है, जिसका अनोखा ‘जवाब’ देते हुए – आदिवासियों ने जिला प्रशासन को कारण बताओ नोटिस सौंपा है। इसमें शासन-प्रशासन से पूछा गया है कि आदिवासियों को उनके संवैधानिक एवं मूलभूत अधिकारों से वंचित रखने के गुनाह के लिए जिला प्रशासन के विरुद्ध जिला बदर की कार्यवाही क्यों न की जाए?

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कौन हैं वालसिंग सस्ते
वालसिंग सस्ते पिछले 25 सालों से आदिवासियों के हक और संवैधानिक अधिकारों से जुड़े मुद्दों पर शांतिपूर्ण संघर्ष कर रहे हैं। बताया जाता है कि वालसिंग जैसे कार्यकर्ताओं एवं समाज के सतत आंदोलनों के कारण ही आज बड़वानी और आसपास के इलाकों में रोजगार गारंटी अधिनियम, खाद्य सुरक्षा अधिनियम जैसे जन हितैषी क़ानूनों का क्रियान्वयन हो पाया है। साथ ही लगातार आदिवासियों को एकजुट कर शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य एवं राशन के संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष किया जा रहा है। इसके चलते स्थानीय नागरिकों ने एकजुट होकर भ्रष्ट अधिकारियों और अन्य ताकतों के हिंसक हमले, झूठे आरोप एवं जेल तक का सामना किया है। संघर्षरत आदिवासियों के अनुसार, वालसिंग सस्ते पर की गई जिला बदर कार्यवाही एक व्यक्तिगत हमला नहीं परन्तु पूरे आदिवासी समाज के हक अधिकारों के संघर्ष को दबाने की कोशिश है। यहां सभी ने एक आवाज में कहा कि – हम सब वालसिंह हैं।

विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रशासन के विरुद्ध जिला बदर कार्यवाही के अंतर्गत कारण बताओ सूचना पत्र सौंपा गया। इसमें शासन-प्रशासन द्वारा आदिवासियों के मूलभूत अधिकारों के हनन का ब्यौरा दिया गया।

जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) की ओर से जारी बयान में बताया गया है कि कारण बताओ नोटिस के सूचना पत्र में लिखा है कि किस प्रकार आदिवासी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदी से वंचित है। इसके चलते आज भी आदिवासी किसानों का बाज़ार में शोषण हो रहा है। रोजगार गारंटी के नाम पर आदिवासियों को 193 रुपए की मजदूरी भी नहीं मिल रही है। रोजगार के अवसर न होने के कारण आदिवासियों को गुजरात-महाराष्ट्र में उजड़ कर जाना पड़ रहा है। थोड़ी बहुत कमाई हो रही है, वह वह बैंकों द्वारा कर्ज वसूली के नाम पर लूटी जा रही है। आदिवासी हित के कानून जैसे वन अधिकार अधिनियम एवं पेसा कानून का क्रियान्वयन न कर आदिवासियों को हाशिये पर डाला जा रहा है।

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आदिवासियों के शिक्षा के अधिकार का भी शासन प्रशासन द्वारा व्यवस्थागत हनन किया जा रहा है। आज मध्य प्रदेश में आदिवासी इलाकों में 5760 स्कूल बंद किए जा रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षा के नाम पर दूरस्थ इलाकों में गरीब आदिवासियों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। शिक्षा का निजीकरण कर सभी आदिवासी एवं दलितों से शिक्षा छीनना अत्याचार है। इसके खिलाफ शासन प्रशासन पर कार्यवाही होने योग्य है।

पत्र में आगे कहा गया है कि जिले में जर्जर स्वास्थ्य व्यवस्था के चलते शासन प्रशासन द्वारा आदिवासियों के जीवन के मूलभूत अधिकार पर हमला किया गया। अस्पतालों में डॉक्टरों एवं नर्सों के पद रिक्त रहते हैं, जांच के लिए मशीन नहीं, मरीज के लिए इलाज नहीं! जिला प्रशासन से “ऑक्सिजन कॉन्संट्रेटर” में भ्रष्टाचार के आरोपों पर भी सार्वजनिक जवाब मांगा गया।

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साथ ही, पत्र में आरोप लगाया गया है कि जिले में पुलिस प्रशासन द्वारा अवैध शराब बिक्री, जुआ-सट्टा जैसे अपराधिक तत्वों को संरक्षण दिया जा रहा है और उनके खिलाफ शिकायत करने वाले कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित किया जा रहा है। आंदोलनकारियों ने सरकार को लताड़ते हुए कहा- कानून चलाने का जो काम सरकार को करना चाहिए था, वो वालसिंह जैसे आदिवासी चला रहे हैं, तो प्रशासन को क्यों न जिला बदर किया जाए।

कलेक्टर कार्यालय के गेट पर कारण बताओ नोटिस लेने पहुंचे एस. डी. एम. और एस.डी.ओ.पी से लगभग 1 घंटे आदिवासियों ने क्षेत्र की मूलभूत समस्याओं के संबंध में तीखे सवाल किए।

जागृत आदिवासी दलित संगठन (JADS) के साथ बड़वानी जिले सभी आदिवासी संगठन, आदिवासी छात्र संगठन, जय आदिवासी युवा शक्ति (जयस), आदिवासी एकता परिषद, आदिवासी विकास परिषद, आदिवासी मुक्ति संगठन, अखिल भारतीय आदिवासी महासभा, OBC, SC, ST एकता मंच ने आदिवासी सामाजिक कार्यकर्ताओं को प्रताड़ित करने की इस कार्यवाही का विरोध करते हुए चेतावनी दी कि समाज के ऊपर इस प्रकार का दमन बरदाश्त नहीं किया जाएगा।