Covid-19

Covid-19: जिला अस्पतालों में दवाओं, आक्सीजन की कमी, प्रशासन भी कर रहा लोगों को परेशान

(मध्य प्रदेश में को​विड (Covid-19) के हालात में आमतौर पर इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर से ही खबरें आ रही हैं, लेकिन जिलों में भी हालात बेहद खराब हैं। हमें साथियों से जो जानकारी मिली है उसके आधार पर पता चलता है कि ज्यादातर हिस्सों में आक्सीजन की कमी तो है ही प्रशासनिक व्यवस्था के चलते भी लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। प्रशासन मरीज के परिवार से समन्वय बनाने और और उनकी पहुंच सुविधाओं तक आसान बनाने की जगह राह में रोड़े ज्यादा खड़े कर रहा है। जिलों के हालात को बयान करती सीहोर से नवीन अनीता वर्मा, छतरपुर अमन श्रीवास्तव और शिवांग, दमोह से निशांत और प्रियांश और सतना के साथियों की रिपोर्ट…. संविधान लाइव)

सीहोर: सीरियस पेशेंट को ही कर रहे हैं टेस्ट
सीहोर जिले में हालात काफी खराब है, यहां पर एक भी अच्छा हॉस्पिटल नहीं है। टेस्टिंग भ्ज्ञी सामान्यत: नहीं हो रही है। कभी कोई रिकवर हो गया है, तो उसका फिर से टेस्ट नहीं कर रहे हैं।

सीहोर में RT-PCR टेस्ट एक ही जगह हो रहा है। उसकी रिपोर्ट भी एक हफ़्ते बाद आ रही है। इसलिए लोगों को CT-SCAN करवाना पड़ रहा है। सिर्फ सस्पेक्टेड मरीजों के ही RT-PCR टेस्ट सरकारी अस्पताल में हो रहे हैं। बाकी स्क्रीनिंग करते वक्त सबको टैबलेट दे कर बोल दिया जाता है कि आप 3 दिन तक ये टैबलेट लीजिए, ठीक नहीं होते हो तो फिर टेस्ट करेंगे।

कभी 100 लोग आ रहे हैं तो सिर्फ उसमें सीरियस पेशेंट के ही टेस्ट कर रहे हैं। यहां तक कि जो लोग कभी पॉजिटिव व्यक्ति के संपर्क में आते हैं, उनको बोल दिया जाता है कि आप टैबलेट लीजिए और क्वॉरेंटाइन हो जाइए।

जिला अस्पताल के बेड्स भर चुके हैं, यह बात सरकार घोषित तौर पर कह रही है। सरकार ने अस्पताल के बाहर बोर्ड लगा दिया है कि — इस अस्पताल के सभी बेड भर चुके हैं।
दिक्कत यह है कि बेड्स नहीं हैं, तो इसके लिए कोई और अतिरिक्त व्यवस्था नहीं की गई है।

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छतरपुर: आक्सीजन की कमी से जूझ रहा जिला
जिले में आक्सीजन की कमी तो है, लेकिन कई लोगों का कहना है कि आॅक्सीजन सिलेंडर की कमी समस्या नहीं है, समस्या है, उसे सही जगह न पहुंचाना। लोगों का मानना है कि कलेक्टर के अधिकार में कई सारे सिलेंडर हैं, उन्हें बाहर नहीं निकाला जा रहा है। इसके लिए लोग प्रेशर बनाने की ओर ध्यान दे रहे हैं।

छतरपुर में कलेक्टर के आदेश पर सभी पॉजिटिव मरीजों के परिजनों को घरों में कैद कर दिया गया है। उन्हें बाहर कदम निकालने की इजाजत नहीं है। इस कारण से लोगों को काफी दिक्कतें हो रही हैं। यहां तक कि दवाओं और आक्सीजन सिलेंडर के लिए भी उन्हें दूसरों का मुंह ताकना पड़ रहा है।

अगर आप किसी कोविड पॉजिटिव के परिवार से ताल्लुक रखते हैं और सिलेंडर लेकर जा रहे हैं, तो प्रशासन सिलेंडर जब्त कर लेता है।

इन्हीं कारणों से इलाके के आक्सीजन रिफिल सेंटर्स कोई रिस्पांस नहीं दे रहे हैं। उन्हें डर है कि जनता यहां आई तो कलेक्टर उनकी फैक्टरी सील करने का आदेश दे देंगे।

छतरपुर में महज तीन अस्पताल में कोरोना का उपचार चल रहा है। अस्पताल में  आइसोलेशन बेड, आक्सीजन बेड और आईसीयू बेड सीमित संख्या में हैं।

आॅक्सीजन सिलेंडर भी ज़रूरतमंद मरीजों को या तो मिल नहीं रहे या फिर काफी परेशानी के बाद मिल रहे हैं। कुछ केसेस यहां पर गलत रिपोर्ट के भी आये हैं। एक जगह टेस्ट कराने पर एसपीओ2 लेवल पर कुछ आता है जबकि दूसरी जगह कुछ और ही आता है।

प्रशासन ने नए कोविड केअर सेंटर्स बनाने के लिये कोई ठोस कदम भी नहीं लिया। प्रशासन ने मरीजों तक Oxygen पहुंचाने के लिए भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। इससे मरीजों को काफी ज़्यादा परेशानी हो रही है। सारे अस्पतालों में बेड्स भर चुके हैं, लेकिन नए मरीजों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं बनाई जा रही। Remdesivir और बाकी जीवन रक्षक दवाओं की भी भारी कमी है। प्रशासन हर कहीं अपनी मनमानी कर रहा है और कई ज़रूरतमंद लोगों को उनकी तानाशाही की वजह से खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

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दमोह: जमीन पर लेटने को मजबूर मरीज
दमोह जिले के गवर्मेन्ट हॉस्पिटल की हालत बहुत नाजुक है। कोविड टेस्ट की प्रक्रिया बहुत धीमी है इसके कारण लोगों को टेस्ट करवाने 2-2 दिन इंतजार करना पड़ता है।

टेस्ट के बाद रिपोर्ट मिलने में 6-8 दिन का समय या कभी कभी रिपोर्ट मिल ही नहीं पाती है। हॉस्पिटल में बेड की कमी के कारण कोविड वार्ड में 1 बेड में 2 लोग या जमीन पर लेटने को मजबूर होना पड़ता है।

ऑक्सिजन सिलिंडर की कमी है। इसके कारण खतरे से बाहर मरीज़ को खुद इंतज़ाम करने को कहा जाता है। आये दिन यहाँ इमरजेंसी के लिए रखे सिलिंडर वार्ड से गायब हो जाते हैं। अनुमान है कि प्रतिदिन 5 से 6 सिलिंडर प्रति दिन गायब होते हैं।

डॉक्टर की भारी कमी देखी गयी। इसका कारण डॉक्टर का खुद कोविड पॉजिटिव होना भी रहा। प्रतिदिन यहाँ एम्बुलेंस से लाये मरीज़ की दुःखद मौत हो जाती है। 5 में से 1-2 बार बस डॉक्टर की उपस्थिति रहती है।

ब्लड टेस्ट से लेकर RT-PCR टेस्ट के सैंपल रिजेक्ट हो जाते हैं, जिससे मरीज़ को दोबारा सैंपल देना पड़ता है। डॉक्टर सिर्फ वही दवाई लिखते हैं, जिसे केंद्र सरकार द्वारा सूचित किया गया हो। अगर मरीज़ कोई और समस्या बताते हैं तो उनसे या तो दूसरे ज़िले जाने को कहा जाता है अथवा कुछ नहीं दिया जाता।

जिला चिकित्सालय में ऐसे कई लोग आते हैं जो क्रिटिकल होने के कारण तुरंत ही जीवन त्याग देते हैं। इनका कोई भी रिकॉर्ड नहीं बनाया जाता। ना ही ऐसे लोगों को कोविड सूची में डाला जाता है।

सतना: हर तरफ जैसा हाल यहां भी
सतना में एक मरीज की रेमडेसिविर इंजैक्शन न होने के कारण हाल ही में एक मरीज की मौत हो गई। यह इंजैक्शन पूरे जिले में उपलब्ध नहीं था।