Tribal Issues

Tribal Issues: 5वीं और 6ठीं अनुसूची को धरातल पर लागू करे सरकार

Tribe Issue(Tribal Issues: पिछले दिनों मध्य प्रदेश में जनजाति गौरव दिवस मनाया गया। इस कार्यक्रम पर 13 करोड़ रुपए सिर्फ आवागमन पर खर्च किए गए और अन्य व्यवस्थाओं पर करीब 10 करोड़ रुपए खर्च हुए। इस कार्यक्रम में भाग लेने आए दो आदिवासी साथियों की मौत हो गई, जबकि 15 सदस्य उसी दिन से लापता हैं। इसे लेकर आदिवासी समुदाय में रोष व्याप्त है। इसी तरह सरकार मूल समस्याओं पर ध्यान न देकर चौराहों, स्थलों के नाम आदिवासी पुरखों के नाम पर करके अपने काम की इतिश्री करना चाहती है। इस पर भी युवा आदिवासी तल्ख हैं। आदिवासी मुद्दों और गुस्से का इजहार करता बड़वानी क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता सुनील सोलंकी का लेख। – संविधान लाइव)

 

Tribe Issueमध्य प्रदेश में आदिवासियों की जागरूकता और एकता धीरे—धीरे और मजबूत हो रही है। संवैधानिक दायरे में रहकर आदिवासी अपने हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। साथ ही प्रदेश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों को चैलेंज कर रहे हैं। इसी के मद्देनजर वर्तमान भाजपा सरकार आदिवासियों को लुभाने के लिए कभी जनजाति गौरव दिवस मना रही है, तो कभी छोटे—बड़े चौराहों के नाम बदल कर देश के मूल मालिकों आदिवासी क्रांतिकारियों के नाम कर रही है। इस नामकरण के जरिये भाजपा सरकार खुद को आदिवासी समाज की हितैषी बताने में लगी है। परन्तु हकीकत में जिस तरह से वर्तमान भाजपा सरकार में आदिवासियों पर अत्याचार हुआ, वह निंदनीय है। चाहे नेमावर की बात हो, नीमच की बात हो, खरगोन हो या मानपुर की कैमिकल वाली घटना। सभी में आदिवासी ही पीड़ित थे और ऐसे अनेकों मामले हैं, जिन्हें सरकार और भाजपा दबाते आये हैं।

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वर्तमान के जागरूक युवाओं की ओर से सीधे सवाल जवाब किए जा रहे हैं। जोबट के उपचुनाव में भी बेरोजगार युवाओं द्वारा कड़ा विरोध किया गया। अन्य कई मुद्दों को देखते हुए भाजपा सरकार निमाड़ क्षेत्र में कई ऐसे कार्य कर रही हैं, जिससे आदिवासी गुमराह हो जाएं। आदिवासियों को वास्तविक मुद्दों से भटकाया जाए। लेकिन वर्तमान की युवा पीढ़ी तथा कई सामाजिक संगठन संवैधानिक दायरे में रहकर संविधान में निर्मित 5वीं और 6ठी अनुसूची तथा पेसा कानून धरातल पर लागू करवाने के लिए लगातार लड़ाई लड़ रहे हैं। जब तक 5वीं और 6ठी अनुसूची धरातल पर लागू नहीं होती तब तक आदिवासी चुप नहीं बैठने वाला है।

इस तरह से भाजपा सरकार के नामकरण करने से तथा आदिवासियों के हित में बात करने से किसी भी आदिवासी का भला नहीं होने वाला है। अगर सरकार भला चाहती है तो आदिवासियों के विशेष कानून धरातल पर लागू करे। आदिवासियों के नाम पर 13 करोड़ रुपये खर्च कर 15 नवंबर को जनजाति गौरव दिवस मनाया गया। यह पैसा आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में आदिवासी समाज के शिक्षा, स्वास्थ, जीवन निर्वहन करने पर वर्तमान सरकार खर्चा कर सकती थी। लेकिन जनजाति गौरव दिवस मनाने को लेकर करोड़ों आदिवासियों के पैसे उजाड़े गए। जनजाति गौरव दिवस के दिन वाहन दुर्घटना में दो आदिवासी भाइयों की वाहन दुर्घटना में मौत हो गई। 15 आदिवासी भाई जनजाति गौरव दिवस के दिन से लापता हैं।

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होना तो यह चाहिए कि मृतक परिवार को वर्तमान सरकार सहायता राशि प्रदान करें और लापता आदिवासी भाइयों को जल्दी से जल्दी ढूंढने में सरकारी अमले को सक्रिय करे। आदिवासियों के पैसे को अन्य जगह खर्च करना बंद किया जाना जरूरी है। अगर सरकार आदिवासियों का भला चाहती है, तो यह पैसा आदिवासी क्षेत्र में बुनियादी मुद्दे जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य पर खर्च कर आदिवासियों का भला करे।

मध्यप्रदेश के मालवा निमाड़ क्षेत्र के भी कई ऐसे आदिवासी क्रांतिकारी हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ कर उन्हें मात दी है। उन्हें क्षेत्र में कदम तक रखने नहीं दिया और लड़ते लड़ते अपने प्राण त्याग दिए। उनको भी सरकार विशेष दर्जा दे और आदिवासी क्रांतिकारियों को डाकू लुटेरे बताया गया है, उसे हटा कर स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के प्रथम योद्धाओं में शामिल करें।

जिस तरह से आदिवासी क्रांतिकारी जल जंगल जमीन की लड़ाई लड़ते-लड़ते शहीद हुए हैं। आदिवासियों को जल जंगल जमीन से बेदखल ना करते हुए उन्हें मालिकाना हक दिया जाए और आदिवासियों के विशेष कानून जो संविधान में निर्मित हैं, लेकिन धरातल पर लागू नहीं हैं, उन्हें धरातल पर लागू किया जाए। देश के मूल मालिक आदिवासियों को जनजाति, वनवासी ना कहते हुए आदिवासी ही कहा जाए, क्योंकि अनादि काल से रहने वाले आदिवासी ही इस देश के मूल मालिक हैं। उन्हें मूल मालिक का दर्जा दिया जाए।