सेलिब्रेशन ऑफ जर्नलिज्म: दो साल की धारदार पत्रकारिता ने ध्वस्त की तानाशाह की सत्ता

3 अक्टूबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

 

सचिन श्रीवास्तव 
एक राजा था। बहुत क्रूर। जनता त्रस्त थी। फिर एक आदमी ने राजा के खिलाफ जनता को एकजुट किया। राजा की सत्ता ध्वस्त हुई। ऐसी कहानियां आपने बहुत सुनी होंगी। हकीकत में ऐसा मुमकिन नहीं, जैसे ख्याल भी आते होंगे, लेकिन ऐसा हुआ है। बहुत बार हुआ है। हर बार किसी दुर्दांत सत्ता के खिलाफ कोई एक अकेला शख्स खड़ा होता आया है। इन्हीं मिसालों में से एक थे ब्राजील के पत्रकार लिब्रो बदारो। 200 साल पहले जब प्रेस की आजादी, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसी शब्दावलियां ईजाद भी नहीं हुईं थीं। उस दौर में ब्राजीली पत्रकार लिब्रो ने महज एक अखबार के बलबूते डोम पेद्रो प्रथम की सत्ता को धूल चटा दी थी।

 

लिब्रो बदारो
जन्म: 1798
निधन: 1830

डॉक्टरी छोड़ शुरू की पत्रकारिता
इटली में जन्में लिब्रो ने यूनिवर्सिटी ऑफ तुरीन और यूनिवर्सिटी ऑफ पाविया से मेडिसिन की पढ़ाई की थी। 1822 में ब्राजील को पुर्तगाल से आजादी मिली। पढ़ाई खत्म करने के बाद 28 वर्षीय लिब्रो 1826 में अपने वतन आए। वे ब्राजील के साओ पाउलो शहर में डॉक्टरी करने लगे। यह डोम पेद्रो प्रथम का शासनकाल था। डोम के तानाशाही रवैये के खिलाफ लोगों में आक्रोश था, लेकिन उसे आवाज देने वाला कोई नहीं था। आखिरकार इस जिम्मेदारी को लिब्रो ने अपने कंधे पर उठाया। उन्होंने 1829 में द कॉन्स्टीट्यूशनल ऑब्जर्वर नाम से एक अखबार शुरू किया।

सत्ता के खिलाफ माहौल बनाया
लिब्रो का अखबार दोपहर में लोगों के हाथ में पहुंचता था। वे ज्यादा प्रतियां नहीं प्रकाशित कर सकते थे। इसलिए लोग मिलजुलकर उसे पढ़ते थे। डोम की आलोचना और उसकी नीतियों को अन्य मुल्कों के हालात से जोड़कर वे हकीकत दर्शाते थे। धीरे-धीरे साओ पाउलो के अलावा अन्य शहरों में भी अखबार ने लोगों को झकझोरना शुरू कर दिया। लोग डोम की आदेशों की अवहेलना करने लगे और सत्ता के खिलाफ एकजुट होने लगे।

सार्वजनिक सभा में की गई हत्या
लिब्रो ब्राजीली छात्रों के बीच बेहद लोकप्रिय थे। 21 नवंबर 1830 को ब्राजीली छात्रों ने फ्रांस में किंग चाल्र्स दसवें के खिलाफ हुए उदारवादी विद्रोह के समर्थन में एक सभा का आयोजन रखा। इसमें लिब्रो भी वक्ता थे। इसी सभा के दौरान लिब्रो की हत्या कर दी गई। इसका संदेश लॉ कोर्ट के एक सदस्य कनादिदो जपेचू पर था। मुकदमा चला लेकिन उसे सजा नहीं हो सकी। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि लिब्रो की हत्या का आदेश सीधे उच्च शासन की ओर से आया था। लेकिन इसका कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलता।

मौत से खड़ा हुआ आंदोलन
लिब्रो की हत्या ने देश में एक बड़े आंदोलन का रूप ले लिया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग पहुंचे। छात्रों ने लिब्रो के पत्रकारिता आंदोलन को अपने हाथों में ले लिया ओर आखिरकार चार महीने से भी कम समय में डोम पेद्रो को पदच्युत कर दिया गया।

प्रेस की आजादी के शहीद
लिब्रो बादरो को प्रेस की आजादी के शुरुआती शहीदों में शुमार किया जाता है। ब्राजीली गणतंत्र की घोषणा के कुछ दिनों बाद ही 15 नवंबर 1889 को एक सार्वजनिक सभा में उन्हें सम्मानित किया गया। इसके बाद लिब्रो के ताबूत को स्थानांतरित किया गया। उनके नाम पर एक पत्रकारिता पुरस्कार शुरू किया गया। साओ पाउलो में जहां लिब्रो रहते थे, उस सड़क का नाम उन्हें समर्पित किया गया।

यह भी पढ़ें:  सोशल मीडिया का असर :अपनों से दूर, गैरों के करीब हैं ग्लोबल नागरिक