5 Years of Demonetisation: दावों, विरोध के ​बीच कुछ आंकड़े और मुद्रा चलन की स्थिति

आज देश नोटबंदी की पांचवी वर्षगांठ (5 Years of Demonetisation) मना रहा है। वही नोटबंदी जिसे एनडीए सरकार ने अपने पहले कार्यकाल में बेहद जोर शोर से प्रचारित किया था और जिसे हर दर्द की रामबाण दवा के तौर पर परोसा गया था। दिलचस्प है कि हर छोटी बड़ी घटना को इवेंट का स्वरूप देकर पूरे देश को उसमें शामिल करने में माहिर हो चुकी भाजपा अपनी सरकार के इस कथित मास्टर स्ट्रोक पर चुप्पी साधे हुए है और आज के दिन सरकारी जलसों का भी वैसा कोई आयोजन दिखाई नहीं देता है, जिनके लिए मौजूदा केंद्र सरकार अपने कथित महत्वाकांक्षी निर्णयों के प्रदर्शन के लिए लगभग कुख्यात हो चु​की है।

8 नवंबर 2016 को एनडीए सरकार ने एकाएक चलन के 500 और एक हजार रुपये मूल्य के नोट को बंद कर दिया था। सरकार के मुताबिक नोटबंदी का एक अहम उद्देश्य सिस्टम में से नगदी घटाना था। हालांकि नोटबंदी के पांच साल बाद भी यह लगातार बढ़ रही है और 8 अक्टूबर 2021 को खत्म होने वाले फोर्टनाइट (14 दिनों की अवधि) में लोगों के पास रिकॉर्ड नगदी रही।

बहरहाल इस मौके पर Financial Accountability Network India – FAN India (वित्तीय जवाबदेही नेटवर्क इंडिया – फैन इंडिया) ने 8 से 12 नवंबर, 2021 को सरकार के जन-विरोधी आर्थिक फैसलों को उजागर करने वाले सप्ताह के रूप में मनाने का फैसला किया है। इसके लिए जारी अभियान कॉल का जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एन.ए.पी.एम) और जन आजादी-75 ने समर्थन किया है।

फाइनैंशियल अकाउंटेबिलटी नेटवर्क ने अपने कॉल में कहा है कि हमारी अर्थव्यवस्था को खतरे में डालकर, देश भर के करोड़ों श्रमिक-वर्ग के लोगों के जीवन और आजीविका को दुर्लभ करने वाली नीतियों के खिलाफ आवाज उठाना जरूरी है।

एनएपीएम की ओर से कहा गया है कि 8 नवंबर, 2021 को विनाशकारी विमुद्रीकरण योजना (demonetization) के 5 साल पूरा होते हैं, जिसने बड़े-बड़े वादे किए, लेकिन धन-संग्रह करने वालों को सुरक्षित करते हुए, बड़ी संख्या में आम लोगों को कई तरह से कंगाल बना दिया। इसके लिए एनएपीएम ने आह्वान किया है कि हम इसे और अन्य प्रासंगिक मुद्दों जैसे कि ईंधन की बढ़ती कीमतों, महंगाई, लॉकडाउन के क्रूर प्रभावों, स्वास्थ्य संकट, नरेगा के तहत देरी से भुगतान, कृषि कानूनों और श्रम संहिताओं जैसे कॉर्पोरेट-समर्थक कानून, जन – संपत्तियों का निजीकरण आदि मुद्दों को इस पूरे सप्ताह में उठाएं।

इस मौके पर जारी पोस्टर के हिंदी और अंग्रेजी प्रारूप नीचे हैं।

आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी के पांच साल बाद भी भारतीय अर्थव्यवस्था में नकदी का बोलबाला कायम है। डिजिटल भुगतान में वृद्धि के बावजूद चलन में नोटों की संख्या में भी लगातार वृद्धि हो रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, मूल्य के हिसाब से 4 नवंबर, 2016 को 17.74 लाख करोड़ रुपये के नोट चलन में थे, जो 29 अक्तूबर, 2021 को बढ़कर 29.17 लाख करोड़ रुपये हो गए। आरबीआई के मुताबिक, 30 अक्तूबर, 2020 तक चलन में नोटों का मूल्य 26.88 लाख करोड़ रुपये था। 29 अक्तूबर, 2021 तक इसमें 2,28,963 करोड़ रुपये की बढ़ोत्तरी हुई।

वहीं, सालाना आधार पर 30 अक्तूबर, 2020 को इसमें 4,57,059 करोड़ रुपये और इससे एक साल पहले एक नवंबर, 2019 को 2,84,451 करोड़ रुपये की बढ़ोतरी हुई थी। इसके अलावा चलन में बैंक नोटों के मूल्य और मात्रा में 2020-21 के दौरान क्रमशः 16.8 प्रतिशत और 7.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी, जबकि 2019-20 के दौरान इसमें क्रमशः 14.7 प्रतिशत और 6.6 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी। ध्यान रहे कि यह कोविड-19 महामारी का दौर था, जिस दौरान लोगों ने एहतियात के रूप में नकदी रखना बेहतर समझा।

डिजिटल लेन-देन में भी बड़ा उछाल
नोटबंदी के पांच साल के बाद नकदी का चलन जरूर बढ़ा है लेकिन इस दौरान डिजिटल लेनदेन भी तेजी से बढ़ा है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार डेबिट/क्रेडिट कार्ड, नेट बैंकिंग और यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) जैसे माध्यमों से डिजिटल भुगतान में भी बड़ी वृद्धि हुई है। इसी दौरा साइबर फ्रॉड के मामलों में खासी बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि यह दूसरा मुद्दा है। भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (एनपीसीआई) का यूपीआई देश में भुगतान के एक प्रमुख माध्यम के रूप में तेजी से उभर रहा है। इन सबके बावजूद चलन में नोटों का बढ़ना धीमी गति से लगातार जारी है।

500 रुपये और 2000 रुपये के नोटों की हिस्सेदारी बढ़ी
मूल्य के संदर्भ में, 500 रुपये और 2,000 रुपये के बैंक नोटों की हिस्सेदारी 31 मार्च, 2021 तक प्रचलन में बैंकनोटों के कुल मूल्य का 85.7 प्रतिशत थी, जबकि 31 मार्च, 2020 को यह 83.4 प्रतिशत थी। हालांकि, 2019-20 और 2020-21 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक नोट मुद्रण प्राइवेट लिमिटेड और सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड के पास 2,000 रुपये के नोट के लिए कोई अलग से मांग नहीं रखा गया था।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आठ नवंबर, 2016 को आधी रात से 500 रुपये और 1000 रुपये के नोटों को बंद करने की घोषणा की थी, जो उस समय चलन में थे। इस निर्णय का प्रमुख उद्देश्य डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना और काले धन पर अंकुश लगाना था। वित्त वर्ष 2020-21 में चलन में बैंक नोटों की संख्या में बढ़ोतरी की वजह महामारी रही। महामारी के दौरान लोगों ने सावधानी के तौर पर अपने नकदी रखी।