gandhi 75th death anniversary

Gandhi 75th Death Anniversary: गांधी का बचाव करने की किसी को जरूरत नहीं

Gandhi 75th Death Anniversary: रायपुर में गांधी की शहादत के 75वें साल के मौके पर आयोजन, दीनदयाल सभागार में सैंकड़ों नागरिकों ने याद किया महात्मा को

विचारक और प्रखर वक्ता शैलेंद्र कुमार ने कहा— गांधी के विराट व्यक्तित्व के सामने कोई झूठ और दुष्प्रचार नहीं टिक पाएगा

रायपुर, 30 जनवरी।गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा किसने दिया?”  “गांधी और अंबेडकर में क्या विरोधाभास थे?” “नाथूराम ने गांधी की हत्या क्यों की?” ऐसे कई सवाल रायपुर के दीनदयाल उपाध्याय सभागार में आज सुबह सुनाई दिए। मौका था गांधी की शहादत के 75वें साल (Gandhi 75th Death Anniversary) के मौके पर आयोजित सेमिनार का। इस मौके पर नागरिकों व युवाओं ने गांधी के जीवन और विचारों पर आयोजित संवाद में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़, सन्मति और अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन के इस संयुक्त कार्यक्रम की शुरुआत हॉल के बाहर रखी गांधी की एक बड़ी तस्वीर पर पुष्पांजलि के साथ हुई। इसके बाद सभागार में 11 बजे दो मिनट का मौन रखा गया। इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ के समूह ने गांधी के चार भजन प्रस्तुत किए। शुरुआत में गांधी का प्रिय भजन ‘वैष्णव जन तो तेने कहिए जो पीर पराई जाने रे’ प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम में साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त ने स्वागत वक्तव्य दिया।

इस मौके पर विचारक और प्रखर वक्ता शैलेंद्र कुमार ने कहा कि 30 जनवरी 1948 को इंसानियत की बुलंद मीनार को गिरा दिया गया था। जिस गांधी को धर्म के नाम पर मारा गया, वे धर्म पर आस्था रखते थे और प्रार्थना के लिए जा रहे थे। आज उसी हत्यारी विचारधारा के लोग गांधी पर सवाल खड़ा करते हैं। गांधी का बचाव करने की किसी को जरूरत नहीं है, वह खुद ही अपना बचाव करने में सक्षम हैं। गांधी के अनुसार हिंदू होने का मतलब मनुष्यता की पैरोकारी है। गांधी मनुवादी दकियानूसी धार्मिकता के खिलाफ हैं।

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gandhi 75th death anniversaryउन्होंने कहा कि गांधी की हत्या राष्ट्र की संवैधानिक अवधारणा की हत्या है। गांधी की हत्या हिंदुत्व की संकीर्ण मानसिकता के साथ जुड़ी हुई है। गांधी का लोकतांत्रिक विचार हिंदू महासभा को नहीं पच पाया। हिटलर की अंधराष्ट्रवाद की भाषा गोलवलकर की प्रेरणा थी और आज उसी को फैलाने का काम किया जा रहा है। गांधी प्रेम और करुणा के प्रतीक हैं।

शैलेंद्र ने कहा कि गांधी के साथ कोई भी कुछ मामलों में असहमत हो सकता है, लेकिन उद्विग्न समय में गांधी के साथ बैठकर शांति मिलती है, एक रास्ता मिलता है। उन्होंने कहा कि आज धार्मिक जुलूसों में रौद्र छवियां गढ़ी जा रही हैं और समाज को हिंसक बनाने का प्रयास किया जा रहा है। जब वर्चस्व की भाषा बोली जाने लगे और रौद्र छवियों से प्रेम हो जाये तो डरना चाहिए कि यह कविता के मृत्यु की घोषणा है। यह समाज के विध्वंस का सूचक है। गांधी सौंदर्यबोधात्मक चेतना की अभिव्यक्ति हैं। गांधी की नैतिक आभा से डरने वाले लोग दुष्प्रचार का सहारा लेते हैं, लेकिन गांधी के विराट निडर व्यक्तित्व के सामने कोई झूठ टिक नहीं पाता। झूठ को इतिहास की संचालक शक्ति बनाने वाले मृत्यु को जीत लेने वाले गांधी की वीरता पर नहीं बोलेंगे।

लेखक अशोक कुमार पांडेय ने कहा कि कहीं पर एक लाइन लिखा दिखा दीजिए जहां गांधी कह रहे हों कि हिंदू और मुस्लिम मिलकर नहीं रह सकते और सावरकर कह रहे हों कि हिंदू-मुस्लिम मिलकर रह सकते हैं।

साहित्यकार सुजाता चौधरी ने कहा कि राम को अपनी सांस में बसाने वाले गांधी की हत्या करने वाले खुद को हिंदू धर्म का रक्षक कहते हैं। हत्यारों का धर्म किस तरह का है, जो उस गांधी की हत्या करता है जो भीषण दंगे की आग में जल रहे नोआखली में अल्पसंख्यक हिंदुओं को बचाने नंगे पांव निकल जाता है और वहां कहीं हिंदुओं के रक्षक नहीं दिखाई देते।

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अध्यक्षीय उद्बोधन में शिक्षाविद् और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव शरद चंद्र बेहार ने कहा कि गांधी जी को सिर्फ 2 अक्टूबर और 30 जनवरी तक सीमित न रखा जाए, बल्कि इस पर लगातार काम करने की जरूरत है। गांधी जी जो कहते थे वह करते थे। उनके जीवन मूल्यों से सीखकर एक सुंदर दुनिया बनायी जा सकती है।

कार्यक्रम के आखिर में वक्ताओं के साथ सवाल-जवाब का रोचक व महत्वपूर्ण दौर चला। इसमें छात्रों की तरफ से कई सवाल पूछे गये, जिनका वक्ताओं ने विस्तार से उत्तर दिया। गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा किसने दिया? गांधी और अंबेडकर में क्या विरोधाभास थे? नाथूराम ने गांधी की हत्या क्यों की, समेत कई सवाल स्रोताओं की तरफ से आये और सभी सवालों के जवाब पर तालियां बजती रहीं। इस मौके पर अपने विवेक से काम लेने और किताबों का सहारा लेने की ताकीद की गई।

कार्यक्रम में वरिष्ठ गांधीवादियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों व पत्रकारों का सूत की माला पहनाकर सम्मान किया गया।

कार्यक्रम में वरिष्ठ गांधीवादी भालचंद्र कछवाह, आनंद मिश्रा, मुख्यमंत्री के सलाहकार विनोद वर्मा और प्रदीप शर्मा, वरिष्ठ राजनेता प्रदीप चौबे, किसान नेता आनंद मिश्रा, रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति केशरीलाल वर्मा, कुशाभाऊ ठाकरे विवि के कुलपति बलदेव भाई शर्मा, कुलसचिव आनंद बहादुर, अधीर भगवनानी, जया जादवानी, सुभद्रा राठौर, प्रो. एल एस निगम, अमन परवानी, इंडियन मेडिकल एसोशिएशन के अध्यक्ष डॉ. राकेश गुप्ता, राजीव गुप्ता, पत्रकार राजकुमार सोनी, आवेश तिवारी सहित बड़ी संख्या छात्र, नौजवान और गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

इस अवसर पर गांधी के उद्धरणों व तस्वीरों की एक प्रभावशाली प्रदर्शनी लगाई गई और गांधी साहित्य पर आधारित पुस्तक प्रदर्शनी लगाई गयी, जिसको दर्शकों का अच्छा प्रतिसाद मिला।

अंत में आभार वक्तव्य सन्मति के अध्यक्ष मनमोहन अग्रवाल ने दिया। कार्यक्रम का संचालन अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की ऋचा रथ और मुकेश कुमार ने किया।