America Middle East War

लोकतंत्र के नाम पर साम्राज्यवाद: अमेरिका का मध्य-पूर्व में खूनी खेल

America Middle East Warसचिन श्रीवास्तव
1991 से 2003 के बीच अमेरिका ने अपनी वैश्विक सत्ता बनाए रखने के लिए लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा का दिखावा करते हुए मध्य-पूर्व को युद्ध के मैदान में बदल दिया। सोवियत संघ के पतन (1991) के बाद अमेरिका दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बन गया। उसने तेल, हथियार उद्योग और डॉलर के वर्चस्व को बनाए रखने के लिए इराक, यूगोस्लाविया और अफगानिस्तान पर हमले किए। ‘लोकतंत्र की रक्षा’ का झूठा बहाना बनाकर अमेरिका ने हजारों निर्दोष लोगों की जान ली और देशों की संप्रभुता नष्ट कर दी। अमेरिका ने 1991 से 2003 के बीच इराक, अफगानिस्तान और यूगोस्लाविया में लोकतंत्र को कुचलकर अपने साम्राज्यवादी हितों को साधा।

खाड़ी युद्ध: इराक को तबाह करने की पहली चाल
1980 के दशक में अमेरिका ने ईरान के खिलाफ इराकी तानाशाह सद्दाम हुसैन को हथियार और आर्थिक मदद दी। लेकिन जैसे ही सद्दाम ने अमेरिकी नीतियों को चुनौती दी और कुवैत पर हमला किया, अमेरिका ने उसे दुश्मन घोषित कर दिया।

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ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म: इराक की बर्बादी की शुरुआत
2 अगस्त 1990 को इराक ने कुवैत पर हमला किया। अमेरिका ने इसे “तेल के लिए युद्ध” के रूप में दिखाया और जनवरी 1991 में ‘ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म’ शुरू कर दिया। लगभग 42 दिनों तक अमेरिका ने इराक पर बमबारी की और देश के बुनियादी ढांचे को नष्ट कर दिया। करीब 100,000 से अधिक इराकी नागरिक मारे गए, और इराक को प्रतिबंधों के कारण गंभीर मानवीय संकट का सामना करना पड़ा।

संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध: धीरे-धीरे इराक को कमजोर करना
अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से इराक पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए। इराक की अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई, लाखों लोग भुखमरी और बीमारियों से मरने लगे। UNICEF की रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी प्रतिबंधों के कारण 1991 से 2000 के बीच 500,000 से अधिक बच्चे मारे गए। यह नरसंहार अमेरिका के ‘लोकतंत्र लाने’ के खेल का हिस्सा था।

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America Middle East Warयूगोस्लाविया का विघटन: अमेरिका की नई रणनीति (1991-1999)
सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका का पहला निशाना यूगोस्लाविया था। 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद अमेरिका ने यूगोस्लाविया को तोड़ने की साजिश रची। यूगोस्लाविया एक समाजवादी देश था, जो अमेरिका के प्रभाव से बाहर था। अमेरिका ने जातीय संघर्ष को भड़काकर वहां गृहयुद्ध शुरू करवा दिया।

बाल्कन युद्ध और नाटो की बमबारी
1995 में अमेरिका ने बोस्निया में सर्बियाई सेना के खिलाफ नाटो को भेजा। 1999 में अमेरिका ने ‘मानवाधिकारों’ के नाम पर सर्बिया पर 78 दिनों तक बमबारी की। हजारों निर्दोष नागरिक मारे गए, और यूगोस्लाविया को तोड़कर छोटे देशों में बांट दिया गया।

यूगोस्लाविया समाजवादी अर्थव्यवस्था वाला मजबूत देश था। अमेरिका ने इसे तोड़कर NATO के प्रभाव में लाया और यूरोप में अपनी सैन्य शक्ति बढ़ाई। इस युद्ध के जरिए अमेरिका ने दिखाया कि वह दुनिया की एकमात्र महाशक्ति बन चुका है और कोई उसे चुनौती नहीं दे सकता।

9/11 के बाद अमेरिका का आतंकवादी खेल (2001-2003)
11 सितंबर 2001 को अलकायदा आतंकवादियों ने अमेरिका के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया। इस घटना ने अमेरिका को युद्ध का नया बहाना दे दिया। ‘आतंकवाद के खिलाफ युद्ध’ (War on Terror) के नाम पर अमेरिका ने दुनिया के कई देशों पर हमले किए।

अमेरिका ने तालिबान को खत्म करने के नाम पर अफगानिस्तान पर हमला कर दिया। अफगानिस्तान को अमेरिका ने दो दशकों तक युद्ध के मैदान में बदल दिया। लाखों लोग मारे गए, लेकिन अमेरिका ने कभी भी अफगानिस्तान को स्थिर नहीं किया। अमेरिका का असली मकसद मध्य-एशिया में सैन्य उपस्थिति बनाए रखना और चीन-रूस को नियंत्रित करना था।

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इराक पर हमला: तेल और डॉलर का खेल (2003)
अमेरिका ने झूठा दावा किया कि इराक के पास ‘मास डेस्ट्रक्शन वेपन’ (WMD) हैं। बिना किसी सबूत के, अमेरिका ने 20 मार्च 2003 को इराक पर हमला कर दिया। ऑपरेशन इराकी फ्रीडम के जरिये अमेरिका ने सद्दाम हुसैन की सरकार गिरा दी और देश में अराजकता फैला दी। इराक में अमेरिकी कंपनियों ने तेल पर कब्जा कर लिया और अरबों डॉलर की लूट की। इस युद्ध में 500,000 से अधिक निर्दोष इराकी मारे गए।

अमेरिका का असली मकसद तेल पर कब्जा कर डॉलर का वर्चस्व कायम रखना था। इराक ने 2000 में तेल की बिक्री डॉलर के बजाय यूरो में शुरू कर दी थी। अमेरिका को यह खतरा था कि अगर बाकी देश भी ऐसा करने लगे, तो डॉलर की सत्ता खत्म हो जाएगी। इसलिए अमेरिका ने इराक पर हमला कर दिया और अपनी मुद्रा को बचाया।

लोकतंत्र के नाम पर साम्राज्यवाद
1991 से 2003 के बीच अमेरिका ने खाड़ी युद्ध, यूगोस्लाविया युद्ध और इराक युद्ध के जरिए अपने वर्चस्व को मजबूत किया। हर बार अमेरिका ने ‘लोकतंत्र’ और ‘मानवाधिकारों’ का बहाना बनाया, लेकिन असली मकसद तेल, हथियार और डॉलर की सत्ता थी। इराक, अफगानिस्तान और यूगोस्लाविया को बर्बाद करने के बाद भी अमेरिका ने वहां स्थिरता नहीं आने दी, ताकि वे हमेशा अमेरिका पर निर्भर रहें।