NGO पर वैश्विक शिकंजा: विदेशी फंडिंग पर रोक और सरकारों की सख्ती का नया दौर
सचिन श्रीवास्तव
हाल ही में दुनिया के कई देशों में गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) पर निगरानी बढ़ाने, उनकी फंडिंग को रोकने और कानूनी कार्यवाही करने की घटनाएं तेज़ी से सामने आई हैं। अमेरिका, भारत, जॉर्जिया और अन्य देशों में सरकारें NGOs की विदेशी फंडिंग पर नकेल कस रही हैं, जिनमें से कई पर गैर-कानूनी गतिविधियों में संलिप्त होने के आरोप लगे हैं।
पहली नज़र में यह घटनाएं अलग-अलग लग सकती हैं, लेकिन जब इन्हें एक साथ देखा जाए, तो एक वैश्विक पैटर्न उभरकर सामने आता है। सवाल यह उठता है कि क्या यह पारदर्शिता और राष्ट्रीय सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए किया जा रहा है, या इसके पीछे सरकारों की राजनीतिक मंशा काम कर रही है? क्या सरकारें उन संगठनों पर शिकंजा कस रही हैं जो उनके खिलाफ आवाज़ उठाते हैं?
भारत में NGO पर शिकंजा: विदेशी फंडिंग पर फोकस
भारत में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने हाल ही में जॉर्ज सोरोस द्वारा वित्त पोषित Open Society Foundation (OSF) के कार्यालयों पर छापा मारा है। आरोप है कि यह संगठन विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (FEMA) के उल्लंघन में शामिल था और भारत में NGOs को अवैध रूप से धन मुहैया करवा रहा था। OSF को पहले ही भारत सरकार ने “Prior Reference Category” में डाल दिया था, जिससे यह बिना सरकारी अनुमति के फंड नहीं भेज सकता था। इसके बावजूद आरोप है कि OSF ने FDI और कंसल्टेंसी फीस के ज़रिए NGOs को पैसा उपलब्ध कराया।
इसके अलावा, सरकार ने हाल के वर्षों में कई अन्य NGOs पर भी शिकंजा कसा है।
- अप्रैल 2023 में CBI ने ऑक्सफैम इंडिया के खिलाफ FCRA उल्लंघन के आरोप में मामला दर्ज किया और उनके दफ्तरों पर छापेमारी की।
- अप्रैल 2024 में CASA, CNI-SBSS, VHAI, IGSSS और EFOI सहित पांच NGOs के लाइसेंस रद्द कर दिए गए।
- मार्च 2023 में हर्ष मंदर के NGO ‘अमन बिरादरी’ की जांच शुरू हुई।
- सितंबर 2020 में ED ने एमनेस्टी इंटरनेशनल के बैंक खातों को फ्रीज कर दिया, जिससे संगठन को भारत में अपना संचालन बंद करना पड़ा।
- 2015 में सरकार ने ग्रीनपीस इंडिया का FCRA लाइसेंस निलंबित कर दिया।
- छत्तीसगढ़ में 364 NGOs की जांच के बाद 84 का फंड निलंबित कर दिया गया और 127 का पंजीकरण रद्द कर दिया गया।
अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य: NGOs पर सख्ती का नया दौर
यह केवल भारत में ही नहीं, बल्कि अमेरिका, जॉर्जिया, अफ्रीका और एशिया के कई देशों में भी देखा जा रहा है।
अमेरिका में USAID (United States Agency for International Development) USAID का फंड निलंबित किया गया है। यूएसएड ने विदेशी NGOs को दी जाने वाली वित्तीय सहायता 90 दिनों के लिए निलंबित कर दी। एलन मस्क जैसे सरकार समर्थक उद्योगपतियों ने इस फैसले का समर्थन किया है और इसे “धोखाधड़ी रोकने का कदम” बताया है। इस रोक से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में 67% NGOs प्रभावित हुए।
जॉर्जिया में भी NGO विरोधी नीति अपनाई जा रही है। यहां सरकार-विरोधी प्रदर्शनों से जुड़े NGOs के बैंक खाते सील कर दिए गए हैं। “राष्ट्रीय सुरक्षा” और “संविधान विरोधी गतिविधियों” के नाम पर 5 बड़े फंडिंग संगठनों के खातों पर रोक लगी।
इन घटनाओं से साफ है कि सरकारें अब NGOs की भूमिका और फंडिंग को लेकर ज़्यादा सख्त हो रही हैं। हालांकि यह स्वयं सेवी संगठनों, विदेशी फंडिंग और सत्ता-संतुलन का मामला है। लेकिन एनजीओ पर शिकंजा कई जरूरी सवाल खड़े करता है।
1. क्या यह विदेशी हस्तक्षेप को रोकने का कदम है?
सरकारों का दावा है कि यह पारदर्शिता सुनिश्चित करने और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए ज़रूरी है। लेकिन क्या इसका उपयोग सत्ता विरोधी आवाज़ों को दबाने के लिए किया जा रहा है?
2. विदेशी बनाम घरेलू फंडिंग
जब विदेशी फंडिंग पर इतनी सख्ती की जा रही है, तो क्या कॉरपोरेट फंडिंग को भी समान रूप से जांचा जा रहा है? क्या सरकार समर्थक संगठनों को बिना रोक-टोक फंडिंग मिल रही है?
3. NGOs की सकारात्मक भूमिका को नजरअंदाज किया जा रहा है?
भारत और अन्य देशों में NGOs ने सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करना ज़रूरी है, लेकिन सभी NGOs को संदेह की नज़र से देखना कितना सही है?
4. भविष्य की चुनौतियां और संभावित रास्ते
NGOs अब क्राउडफंडिंग, सदस्यता मॉडल और स्थानीय दानदाताओं की ओर रुख कर सकते हैं। डिजिटल युग में NGOs को अपनी रणनीति बदलनी होगी, जैसे कि ब्लॉकचेन आधारित फंडिंग या विकेंद्रीकृत आर्थिक मॉडल अपनाना।
और अंत में
NGOs लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं, लेकिन हालिया कार्रवाइयों से संकेत मिलता है कि सरकारें अब इन संगठनों की स्वतंत्रता को सीमित कर रही हैं। विदेशी फंडिंग को नियंत्रित करने के नाम पर अगर सरकारें विरोध और जन आंदोलनों को कमजोर कर रही हैं, तो यह एक गंभीर खतरा है। वहीं, NGOs को भी यह सुनिश्चित करना होगा कि वे पारदर्शिता बनाए रखते हुए, प्रभावी ढंग से अपने कार्य जारी रखें।