USA foreign intervention: लोकतंत्र की आड़ में सत्ता का खेल
सचिन श्रीवास्तव
20वीं और 21वीं सदी में अमेरिका ने दुनिया की राजनीति को अपनी मर्जी से चलाने की पूरी कोशिश की। लोकतंत्र, मानवाधिकार और आज़ादी की बड़ी-बड़ी बातें की गईं, लेकिन असल में मकसद अपने फायदे और ताकत को बनाए रखना था। इस दौरान अमेरिका ने न जाने कितनी सरकारें गिराईं, युद्ध भड़काए और लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचला। लेकिन अब हालात बदल रहे हैं, दुनिया का शक्ति संतुलन खिसक रहा है।
समाजवाद का डर और अमेरिका की साजिशें: 1917 में रूस में क्रांति हुई, तो अमेरिका को डर सताने लगा कि समाजवाद पूरी दुनिया में न फैल जाए। इसलिए 1918-20 के बीच उसने “व्हाइट आर्मी” (ज़ार समर्थक) का साथ दिया और सोवियत संघ को घेरने के लिए आर्थिक नाकेबंदी कर दी। अपने ही देश में वामपंथी आंदोलनों को दबाने के लिए “रेड स्केयर” (Red Scare) नाम की नीति अपनाई।
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका की रणनीति: दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका ने यूरोप को अपने कब्जे में रखने के लिए “मार्शल प्लान” लागू किया और “ट्रूमैन डॉक्ट्रिन” के तहत साम्यवाद को रोकने की नीति बनाई। CIA को हथियार बनाकर उसने कई देशों में चुनी हुई सरकारों को गिराया और वहां अपनी कठपुतली सरकारें बिठाईं।
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सोवियत संघ का पतन और अमेरिका की नई चालें: जब सोवियत संघ टूटा, तो अमेरिका दुनिया का “बॉस” बन गया। उसने “शॉक थैरेपी” देकर पूर्व सोवियत देशों की अर्थव्यवस्था चौपट कर दी। यूगोस्लाविया को गृहयुद्ध में झोंककर टुकड़ों में बांट दिया और विश्व बैंक और IMF के ज़रिए गरीब देशों को अपनी उंगलियों पर नचाने लगा।
9/11 और “आतंकवाद के खिलाफ जंग”: 2001 में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला हुआ और अमेरिका ने इसे बहाना बनाकर “आतंकवाद के खिलाफ जंग” छेड़ दी। अफगानिस्तान पर हमला कर तालिबान को हटाया, लेकिन खुद एक कमजोर सरकार बैठा दी। 2003 में इराक पर चढ़ाई कर दी, यह कहकर कि वहां “Weapons of Mass Destruction” (WMD) हैं, जो बाद में झूठ निकला। 2011 में लीबिया के गद्दाफी को हटाया और देश को पूरी तरह अराजकता में धकेल दिया।
अब अमेरिका को टक्कर मिल रही है: आज अमेरिका की बादशाहत को रूस, चीन और BRICS देश चुनौती दे रहे हैं। 2022 के यूक्रेन युद्ध के ज़रिए अमेरिका ने NATO का इस्तेमाल कर रूस को उकसाया। चीन से ट्रेड वॉर छेड़कर Huawei जैसी कंपनियों पर पाबंदी लगाई। लेकिन BRICS देशों का बढ़ता प्रभाव अमेरिका के लिए सिरदर्द बनता जा रहा है। भारत, रूस, चीन और दूसरे देश अब अमेरिकी वर्चस्व को खुलकर चुनौती दे रहे हैं।
क्या लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर लोकतंत्र खत्म हुआ?: दुनिया अब बहुध्रुवीय हो रही है। अमेरिका की पकड़ ढीली पड़ रही है, लेकिन वह अपनी ताकत बनाए रखने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है। यह दिलचस्प है कि जिसने “लोकतंत्र की रक्षा” के नाम पर सबसे ज़्यादा दखलंदाजी की, उसी ने सबसे ज़्यादा लोकतंत्र को कुचला। सवाल यह है कि क्या कोई भी देश अपनी संप्रभुता बचा सकता है? हां, लेकिन इसके लिए उसे आर्थिक स्वतंत्रता, तकनीकी आत्मनिर्भरता और मजबूत कूटनीतिक सूझबूझ अपनानी होगी।