लोकतंत्र की हत्या: कैसे अमेरिका ने जन आंदोलनों को कुचला?

US-backed coups historyसचिन श्रीवास्तव
द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब दुनिया ने नई सुबह देखी, तो अमेरिका ने अपने आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा के लिए लोकतंत्र का झूठा चोला ओढ़ लिया। अमेरिका ने खुद को “लोकतंत्र और स्वतंत्रता का रक्षक” कहा, लेकिन वास्तविकता यह थी कि जहाँ भी जनता ने स्वतंत्र सरकारें बनाने की कोशिश की, अमेरिका ने उन्हें कुचल दिया।

1945 से 1991 तक के दौर में अमेरिका ने विभिन्न देशों में जन आंदोलनों, निर्वाचित सरकारों और समाजवादी क्रांतियों को दबाने के लिए सैन्य हस्तक्षेप, CIA ऑपरेशन्स और तानाशाहों को समर्थन देने की नीति अपनाई।

शीतयुद्ध और अमेरिका की नई रणनीति (1945-1953)
शीतयुद्ध की शुरुआत के बाद लोकतंत्र बनाम पूंजीवाद की बहस तेज हो चुकी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के खात्मे के बाद अमेरिका और सोवियत संघ दुनिया की दो महाशक्तियां बन गए। सोवियत संघ ने समाजवाद को आगे बढ़ाया, जबकि अमेरिका ने पूंजीवाद और नव-उपनिवेशवाद को मजबूत किया। अमेरिका को डर था कि अगर समाजवाद का प्रसार हुआ, तो उसकी वैश्विक आर्थिक शक्ति को नुकसान होगा।

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मार्शल प्लान और लोकतंत्र की खरीद-फरोख्त
1947 में अमेरिका ने ‘मार्शल प्लान’ लागू किया, जिसमें यूरोप के देशों को आर्थिक सहायता दी गई। शर्त यह थी कि वे अमेरिका के पूंजीवादी मॉडल को अपनाएं और समाजवादी आंदोलनों को दबाएं। अमेरिका ने इटली और फ्रांस जैसे देशों में मजदूर आंदोलनों और कम्युनिस्ट पार्टियों के खिलाफ CIA ऑपरेशन्स किए।

CIA और कूटनीतिक हस्तक्षेप की शुरुआत
1947 में अमेरिका ने ‘सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी’ (CIA) की स्थापना की, जिसका मुख्य काम समाजवादी और लोकतांत्रिक आंदोलनों को कुचलना था। CIA ने विभिन्न देशों में चुनावों को प्रभावित किया, तख्तापलट करवाए और तानाशाहों को सत्ता दिलाई।

लोकतंत्र को कुचलने के लिए अमेरिकी तख्तापलट (1953-1973)
इसके बाद के अगले 20 साल अमेरिका की ओर से होने वाली तख्तापलट की सीधी कार्रवाइयों और साजिशों के साल रहे। इसके तहत ईरान (1953) में ऑपरेशन अयाक्स चलाया गया। 1951 में ईरान में प्रधानमंत्री मोहम्मद मोसद्देक की सरकार बनी, जिसने ईरान के तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया। ब्रिटेन और अमेरिका को यह मंजूर नहीं था, क्योंकि उनका तेल पर नियंत्रण समाप्त हो रहा था। 1953 में CIA और MI6 ने ‘ऑपरेशन अयाक्स’ के तहत तख्तापलट करवाया और मोसद्देक को गिराकर शाह रजा पहलवी को सत्ता दिलाई। शाह ने अमेरिका और ब्रिटेन के साथ मिलकर तेल कंपनियों को पुनः निजी हाथों में दे दिया।

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इसी तरह ग्वाटेमाला (1954) में ऑपरेशन पीबीसक्सेस के तहत तख्तापलट किया गया। जैकबो अर्बेंज़ की लोकतांत्रिक सरकार ने जब किसानों को भूमि देने का कानून पारित किया, तो अमेरिका को यह समाजवाद की ओर बढ़ता कदम लगा। CIA ने ‘ऑपरेशन पीबीसक्सेस’ के तहत तख्तापलट किया और अर्बेंज़ की सरकार गिरा दी। इसके बाद वहां तानाशाह कार्लोस कैस्टिलो आर्मास की सरकार बनाई गई, जिसने अमेरिका को पूरा समर्थन दिया।

इसके बाद इंडोनेशिया (1965) में लोकतंत्र के नाम पर जनसंहार का वह काला अध्याय लिखा गया जिसमें लाखों की हत्या हुई। इंडोनेशिया में सोकार्नो की सरकार लोकतांत्रिक थी और उसने गुटनिरपेक्ष नीति अपनाई थी। लेकिन अमेरिका को डर था कि इंडोनेशिया में कम्युनिस्ट पार्टी (PKI) मजबूत हो रही है। 1965 में CIA ने जनरल सुहार्तो के साथ मिलकर तख्तापलट करवाया। इस तख्तापलट में लगभग 10 लाख लोगों की हत्या कर दी गई, जिनमें अधिकांश कम्युनिस्ट और मजदूर संगठन के सदस्य थे और इसके बाद सुहार्तो की सरकार अमेरिका की पूरी गुलाम बन गई।

अमेरिका के नए औजार: युद्ध और सैन्य तानाशाह (1973-1991)
चिली (1973) में साल्वाडोर अलेंदे की हत्या और पिनोशे की तानाशाही इसका उदाहरण है। 1970 में चिली में साल्वाडोर अलेंदे राष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने सभी अमेरिकी कंपनियों को राष्ट्रीयकृत कर दिया, जिससे अमेरिका नाराज हो गया। 1973 में CIA ने जनरल पिनोशे को समर्थन दिया, जिसने अलेंदे की हत्या करवा दी और सत्ता हथिया ली। पिनोशे ने 17 साल तक क्रूर तानाशाही चलाई और हजारों लोगों को मारा।

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निकारागुआ और कॉन्ट्रा विद्रोही
निकारागुआ में 1979 में सैंडिनिस्टा क्रांति हुई, जिसने अमेरिका समर्थित सोमोज़ा तानाशाही को खत्म कर दिया। अमेरिका ने इस क्रांति को कुचलने के लिए “कॉन्ट्रा” नाम के आतंकियों को ट्रेनिंग और फंडिंग दी। CIA ने ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के जरिए कॉन्ट्रा विद्रोहियों को मदद दी, जिससे अमेरिका में भी ड्रग्स की समस्या बढ़ी।

अफगानिस्तान (1979-1989) में अमेरिका की छद्म लड़ाई
1979 में सोवियत संघ ने अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया। अमेरिका ने तालिबान और मुजाहिदीन को फंडिंग दी, ताकि वे सोवियत सेना से लड़ सकें। CIA ने ओसामा बिन लादेन और अन्य जिहादी संगठनों को ट्रेनिंग दी, जो बाद में आतंकवादी बने। 1989 में सोवियत सेना अफगानिस्तान से हटी, लेकिन अमेरिका ने अपने आतंकवादियों को छोड़ दिया, जिससे अल-कायदा जैसी कट्टरपंथी ताकतें पैदा हुईं।

अमेरिका की दोहरी नीति
1945 से 1991 तक अमेरिका ने दुनियाभर में जन आंदोलनों और लोकतांत्रिक सरकारों को उखाड़ फेंका। इससे साफ है कि लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा का दावा करने वाला अमेरिका ही सबसे बड़े लोकतांत्रिक हत्याकांडों का जिम्मेदार था। जहां भी लोगों ने साम्राज्यवाद के खिलाफ आवाज उठाई, अमेरिका ने CIA, सैन्य हस्तक्षेप और तानाशाहों का सहारा लेकर उन्हें कुचल दिया। यह दौर ‘शीतयुद्ध’ का था, लेकिन अमेरिका ने इसे ‘पूंजीवाद बनाम समाजवाद’ की लड़ाई में बदल दिया और हर क्रांति को समाजवाद से जोड़कर खत्म करने की कोशिश की।