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लोकतंत्र के नाम पर साम्राज्यवाद: अमेरिका की अरब क्रांति और सीरिया युद्ध में भूमिका

arab spring protestsसचिन श्रीवास्तव
2003 के बाद अमेरिका ने अपनी रणनीति को और शातिर बना लिया। अब वह सीधे सैन्य हस्तक्षेप करने के बजाय ‘लोकतांत्रिक क्रांति’ और ‘मानवाधिकारों की रक्षा’ के नाम पर सरकारों को गिराने लगा। ‘अरब स्प्रिंग’ (2010-2012) के नाम पर अमेरिका ने कई देशों में अस्थिरता फैलाई। लीबिया, सीरिया और यमन जैसे देशों को गृहयुद्ध की आग में झोंक दिया। ISIS (इस्लामिक स्टेट) जैसे आतंकवादी संगठनों को अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दिया, ताकि मध्य-पूर्व में अपने हित साधे जा सकें। गौर से देखें तो अमेरिका ने ‘लोकतांत्रिक क्रांति’ के नाम पर मध्य-पूर्व और उत्तरी अफ्रीका को लगभग तबाह कर दिया है।

अरब स्प्रिंग: क्रांति या अमेरिका की नई साजिश? (2010-2012)
2010 में ट्यूनीशिया में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, जो जल्द ही पूरे अरब विश्व में फैल गए। मिस्र, लीबिया, सीरिया, यमन और बहरीन में सरकारों के खिलाफ विद्रोह होने लगे। इसे ‘अरब स्प्रिंग’ (Arab Spring) यानी अरब वसंत कहा गया। CIA और पश्चिमी मीडिया ने इन आंदोलनों को लोकतंत्र समर्थक क्रांति के रूप में प्रचारित किया। अमेरिका ने अरब देशों में NGO और सोशल मीडिया नेटवर्क के जरिए प्रदर्शनों को भड़काने में मदद की। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जैसे फेसबुक और ट्विटर का इस्तेमाल किया गया ताकि सरकार विरोधी समूहों को संगठित किया जा सके। परिणाम यह हुआ कि अस्थिरता और गृहयुद्ध के बीच ट्यूनीशिया और मिस्र में तानाशाह सरकारें गिरा दी गईं, लेकिन लोकतंत्र स्थापित नहीं हुआ। लीबिया, सीरिया और यमन में गृहयुद्ध शुरू हो गए, जो आज तक खत्म नहीं हुए।

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लीबिया युद्ध: एक और देश की बर्बादी (2011)
लीबिया के राष्ट्रपति मुहम्मद गद्दाफी ने तेल निर्यात के लिए डॉलर के बजाय ‘गोल्ड-डिनार’ की योजना बनाई। यह अमेरिकी डॉलर के लिए एक बड़ा खतरा था, इसलिए अमेरिका ने गद्दाफी को हटाने की योजना बनाई। 2011 में अमेरिका और नाटो ने “लोकतंत्र की रक्षा” के नाम पर लीबिया पर हमला किया। गद्दाफी को क्रूरता से मार दिया गया और लीबिया को अराजकता में छोड़ दिया गया। आज तक लीबिया में कोई स्थिर सरकार नहीं बन सकी है, और यह देश गृहयुद्ध में फंसा हुआ है।

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अमेरिका का असली मकसद लीबिया के तेल पर नियंत्रण करने का था। साथ ही अफ्रीका में अमेरिकी डॉलर का प्रभुत्व बनाए रखना।

arab spring protestsसीरिया युद्ध: अमेरिका की सबसे बड़ी साजिश (2011-2019)
सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल-असद अमेरिका की नीतियों का विरोध करते थे। 2011 में ‘अरब स्प्रिंग’ के बहाने अमेरिका ने सीरिया में विरोध प्रदर्शन भड़काए। अमेरिका ने ‘लोकतंत्र समर्थक विद्रोहियों’ को पैसा और हथियार दिए।

इस दौरान ISIS का जन्म हुआ, जो अमेरिकी खेल का हिस्सा था। 2014 में ISIS (इस्लामिक स्टेट) नाम का आतंकवादी संगठन उभरकर सामने आया। अमेरिका ने दावा किया कि वह ISIS के खिलाफ लड़ रहा है, लेकिन असल में अमेरिका ने ही इसे मजबूत किया। अमेरिका ने ISIS के जरिए सीरिया को कमजोर करने की साजिश रची।

इस दौरान 2015 में रूस ने सीरिया सरकार की मदद के लिए सैन्य हस्तक्षेप किया। रूस और ईरान के समर्थन से बशर अल-असद की सरकार बच गई। अमेरिका की सीरिया सरकार को गिराने की कोशिश असफल हो गई।

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यमन युद्ध: अमेरिका और सऊदी अरब की मिलीभगत (2015-2019)
2015 में अमेरिका ने सऊदी अरब के जरिए यमन में गृहयुद्ध भड़काया। अमेरिका शिया हौथी विद्रोहियों को ईरान समर्थित बताकर सऊदी अरब को युद्ध में झोंक दिया। यमन पर हजारों हवाई हमले किए गए, जिसमें लाखों निर्दोष लोग मारे गए। इसका मकसद था यमन पर नियंत्रण बनाए रखना ताकि सऊदी अरब को तेल व्यापार में फायदा हो। दूसरी तरफ अमेरिका ईरान को कमजोर करना चाहता था, क्योंकि वह अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा था।

arab spring protestsअमेरिका का असली चेहरा: लोकतंत्र या साम्राज्यवाद?
अमेरिका वास्तविक लोकतंत्र समर्थक आंदोलनों की मदद नहीं करता, बल्कि उन्हें कुचलता है। बहरीन में भी ‘अरब स्प्रिंग’ हुआ था, लेकिन वहां अमेरिकी समर्थक सरकार थी, इसलिए अमेरिका ने आंदोलन दबाने में मदद की। मध्य-पूर्व में अस्थिरता बनाए रखना ही अमेरिका का मकसद है। अमेरिका कभी नहीं चाहता कि अरब देश मजबूत और स्वतंत्र बनें। अगर मध्य-पूर्व स्थिर हो गया, तो अमेरिका का तेल और हथियारों का धंधा खत्म हो जाएगा।

अमेरिका ने लोकतंत्र का इस्तेमाल अपने फायदे के लिए किया
अरब स्प्रिंग के नाम पर अमेरिका ने मध्य-पूर्व को गृहयुद्ध की आग में झोंक दिया। लीबिया, सीरिया और यमन को बर्बाद करके अमेरिका ने तेल और हथियार उद्योग को मजबूत किया। ISIS जैसे आतंकी संगठनों को परोक्ष रूप से मदद देकर अमेरिका ने क्षेत्र को अस्थिर किया। लोकतंत्र और मानवाधिकारों की रक्षा के नाम पर अमेरिका ने लाखों निर्दोष लोगों की हत्या की।