Covid Tales: ‘शहरों को सुंदर बनाता हूं और अकसर भूखे सो जाता हूं’

सायरा खान

मेरा नाम रमेश है। मैं मजदूर हूं और मजबूर हूं। मैं ग्राम ब्यावरा का रहने वाला हूं। मेरे परिवार में हम पांच भाई, दो बहने हैं। रमेश का इतना ही छोटा सा परिचय है। उन्होंने बताया कि माता-पिता के देहांत के बाद मेरे बड़े भाई ने घर की जिम्मेदारियां उठाईं और बड़े प्यार से हम सबको पाला। दोनों बहन एवं हम भाइयों की शादी कराई और हमारा घर बसाया। कभी माता-पिता की कमी महसूस नहीं होने दी। हम सब संयुक्त परिवार में मिलजुल कर रहते हैं।

उन्होंने बताया कि मैं गारा-मिट्टी का काम करता हूं। मैं अपने पांच दोस्तों रामू, श्याम, चंदन, लखन और प्रमोद के साथ काम पर जाता हूं। कभी-कभी हमारा ठेकेदार भी हमारे साथ जाता है। शाम को घर लौटने में देर हो जाती है, इसीलिए हम सब घर से खाना बांधकर लाते हैं। हमारा खाना भी बस रूखा-सूखा होती है। मक्के या ज्वार की रोटी। उसके साथ लाल हरी मिर्च की चटनी, प्याज और साथ में नमक। हम पांचो दोस्त दोपहर में किसी भी पेड़ की छांव में बैठ जाते है। और साथ खाना खाते हैं।

उन्होंने बताया कि जब कोई मुझसे पूछता है कि तुम क्या करते हो। तो मैं मुस्कुरा कर बोलता हूं कि मैं लोगों के सपने पूरा करता हूं। उनके ख्वाबों की दुनिया बनाता हूं। अगर मजदूर नहीं रहेंगे तो इस संसार के सारे काम रुक जाएंगे, क्योंकि जो मेहनत हम करते हैं, और कोई नहीं कर सकता है। मैं कोई मामूली इंसान नहीं हूं, पूरी दुनिया मुझ पर निर्भर है। जब एक मजदूर तपती धूप में काम करता है, तो उसके शरीर से पसीना पानी की बूंदे बनकर गिरने लगता है।

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रमेश फख्र से बताते हैं, “मेरा काम भी कुछ इसी तरह का है। जब एक सुंदर घर, महल, बिल्डिंग, बनती है तो लोग उसकी तारीफ करते हैं, लेकिन उसके बनने में कितनी मेहनत एक मजदूर को लगती है, उसकी कोई तारीफ नहीं करता है। मैं बताता हूं कि एक मजदूर, एक सुंदर घर बनाने में अपना कितना पसीना बहाता है।

जब एक मजदूर किसी के घर की नींव रखता है तो उसके हाथों तथा पैरों में छाले पड़ जाते हैं, क्योंकि पहले वह रेत इकट्ठा करता है उसमें सीमेंट मिलाता है। पानी डालता है फिर फावड़े से उसे मिलाता है। और उसे अच्छी तरह मिक्स करने के लिए अपने पैरों का भी उपयोग करता है। उसे तगाड़ी में भरता है और उठाकर मिस्त्री को देता है। वहीं दूसरे मजदूर ईंट को उठा कर देते हैं। तब जाकर मिस्त्री दीवार को जोड़ने का काम करता है, जिससे इमारत तैयार होती है। इमारत तैयार होने के बाद प्लास्टर किया जाता है। जिसकी जैसी हैसियत होती है वह उसके अनुसार डिजाइन बनवाता हैं।”

उन्होंने कहा कि इतनी मेहनत के काम के बदले मजदूर को जो पैसा मिलता है, वह बहुत कम होता है, क्योंकि ठेकेदार उनकी मेहनत का पूरा पैसा नहीं देते हैं। दिन भर काम करने के बाद जब हमें शाम को पैसा मिलता है तो हमारे चेहरे पर मुस्कुराहट आ जाती है।

रमेश ने कहा, “हम खुश होकर घर लौट जाते हैं। जब मैं घर पहुंचता हूं तो मेरी पत्नी गर्म पानी देती है। मैं नहा कर आता हूं, फिर अपने हाथों तथा पैरों पर तेल लगा लेता हूं, जिससे मुझे थोड़ा आराम मिलता है। परिवार के साथ बैठकर खाना खाता हूं और बच्चों के साथ खेलता हूं। जैसे ही बिस्तर पर लेटता हूं तो नींद आ जाती है। इतनी गहरी नींद की पता ही नहीं चलता है कि सुबह कब हो गई। हम मजदूर वर्ग के लोग थोड़ी सी सुविधा में ही खुश रह लेते हैं। इसी कारण शायद किसी का हमारी परेशानियों की ओर ध्यान ही नहीं जाता है।”

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रमेश ने कहा कि घर बनाने का काम रोज नहीं मिलता है। न ही यह लगातार चलने वाला काम है। बाकी दिन हम घर पर बैठे रहते हैं। उस वक्त हमारे घर की आर्थिक स्थिति बिगड़ जाती है। तब हमें कहीं से मदद नहीं मिलती है। रमेश कहते हैं कि मजदूरों के लिए सरकार कई योजनाएं चला रही है। जो नाम मात्र की है, जिसका लाभ हमें नहीं मिलता है। जैसे श्रमिक कार्ड को ही ले लो। जिसमें बताया जाता है काम न मिलने पर मजदूर भत्ता दिया जाएगा, जो कभी मिलता ही नहीं है, क्योंकि हमारे पास श्रमिक कार्ड ही नहीं होता है और न ही बन पाता है।

इसको बनवाने के लिए सरकारी ऑफिस के महीनों चक्कर लगाने पड़ते हैं। सभी दस्तावेज जमा करने के बाद भी इंतजार करना पड़ता है कि कब मिलेगा हमें कार्ड, लेकिन कार्ड नहीं मिलता है। जब तक घूस न दो। रमेश का कहना है कि कार्ड मिलने के बाद भी हमें यह जानकारी नहीं मिल पाती है कि मजदूरी भत्ता कहां से मिलेगा, जो मजदूर दुनिया को खूबसूरत बनाते हैं, उसकी जिंदगी को संवारने के लिए कोई आगे नहीं आता है।