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Farmers Protest: अब गांव-गांव में शुरू होंगी अनिश्चितकालीन किसान महापंचायत

सरकार से छह दौर की वार्ताएं असफल रहने के बाद, आंदोलन (Farmers Protest) फैलाने की तैयारी में किसान संगठन। 50 स्थानों पर शुरू हुए अनिश्चितकालीन धरने

  • किसान संघर्ष समिति ने कहा
    केंद्र का कोई प्रस्ताव नया नहीं, किसान संगठन इन्हें पहले ही कर चुके हैं नामंजूर
    प्रधानमंत्री तत्काल कानून रद्द करने की घोषणा के लिए आगे आएं
    सफल भारत बंद (Farmers Protest) के लिए सभी का आभार जताया
    किसानों से गांव-गांव में अनिश्चितकालीन किसान महापंचायत शुरू करने की अपील

बीते दो सप्ताह से तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान संगठनों और केंद्र सरकार के बीच चल रही तनातनी (Farmers Protest) थमती नजर नहीं आ रही है। किसान तीनों कानूनों की रद्द करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं, तो वहीं केंद्र सरकार भी अपने कदम पीछे न हटाने का मन बना चुकी है। हालात यह हैं कि पांच दौरों की औपचारिक वार्ताओं और केंद्रीय गृह मंत्री से अलग से हुई एक मुलाकात के बावजूद मामला जस का तस है। दिल्ली के इर्द गिर्द किसानों ने डेरा जमाया हुआ है तो वहीं सरकार बातचीत की जरिये मामला सुलझाने और देरी करके थकाने की रणनीति पर काम कर रही है।

इस बीच किसान संगठनों से साफ कर दिया है कि वे कृषि कानूनों के रद्द होने तक अपना आंदोलन (Farmers Protest) जारी रखेंगे। साथ ही गृह मंत्री की ओर से आए प्रस्ताव पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए गांव गांव में अनिश्चितकालीन किसान महापंचायत शुरू करने की अपील भी किसान संगठनों ने की है। साथ ही कहा है कि केंद्र का कोई प्रस्ताव नया नहीं है। किसान संगठन इन्हें पहले ही नामंजूर कर चुके हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से तत्काल कानून रद्द करने की घोषणा के लिए आगे आने को कहा है। सफल भारत बंद के लिए सभी का आभार जताते हुए किसान संगठनों ने किसानों से गांव-गांव में अनिश्चितकालीन किसान महापंचायत शुरू करने की अपील की है।

इस बारे में किसान संघर्ष समिति के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने कहा कि केंद्र सरकार द्वारा भेजे गए पांच प्रस्ताव किसान संगठनों को प्राप्त हुए हैं। पांचों प्रस्ताव पुराने हैं जिन पर छह राउंड की चर्चा हो चुकी है तथा किसान संगठनों ने इन प्रस्तावों को एक सिरे से खारिज कर दिया है। सरकार ने कहा है कि-
1. एमएसपी जारी रहेगी (सर्वविदित है कि एमएसपी सभी कृषि उत्पादों की तो दूर की बात है, 23 घोषित कृषि उत्पादों की भी नहीं मिल पा रही है।)
2. मंडी समितियों में सुधार की बात कही गई है लेकिन, कौन से सुधार होंगे? (जो सुधार किसान चाहते हैं उनका क्या होगा, इसका कोई जिक्र नहीं है।)
3. सभी प्राइवेट कंपनियों को रजिस्टर्ड कराया जाएगा। (इसमें कुछ भी नया नहीं है।)
4. सरकार किसानों को न्यायालय जाने का अधिकार देगी। (भारत के संविधान में किसी भी नागरिक को न्यायालय जाने से नहीं रोका जा सकता।)
5. सरकार फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाएगी।(अभी तक सरकार के पास इसका कोई ढांचा तैयार नहीं है। तमाम गंभीर अपराधों को लेकर फास्ट ट्रैक कोर्ट बने लेकिन कागजों तक ही सीमित रहें।)
6. सरकार प्राइवेट कंपनियों पर भी टैक्स लगाएगी। (यह पुराना प्रस्ताव है जिससे किसानों को कोई लाभ नहीं होगा)

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डॉ सुनीलम ने कहा कि सरकार के प्रस्ताव से मालूम होता है कि सरकार अपने अढ़ियल रुख पर कायम है तथा किसानों की एक सूत्रीय कृषि कानूनों को रद्द करने की तथा बिजली बिल वापस लेने की मांग ना मानने पर अडिग है।

किसान संघर्ष समिति ने सरकार के अडियल रवैये की निंदा करते हुए आंदोलन तेज करने की घोषणा की है।

किसान संघर्ष समिति ने सभी किसान संगठनों, जन संगठनों, नागरिक संगठनों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों, ट्रांसपोर्टरों, युवाओं, महिला संगठनों, दलित संगठनों का आभार व्यक्त किया है जिन्होंने भारत बंद में बढ़-चढ़कर हिस्सेदारी की। डॉ सुनीलम ने कहा कि आपकी हिस्सेदारी से गोदी मीडिया एवं सरकार जो भ्रम फैला रही थी कि यह केवल पंजाब का आंदोलन है, वह भ्रम टूट गया है। देश का किसान तीनों कानूनों को रद्द कराने तथा बिजली संशोधन बिल 2020 वापसी के लिए एकजुट है।

डॉ सुनीलम ने बताया कि कल गृह मंत्री अमित शाह से किसान संगठनों की रात के 12:00 बजे तक बातचीत चली। उन्होंने वही सब कुछ दोहराया जो नरेंद्र सिंह तोमर पिछली पांच वार्ताओं में किसानों से कह रहे हैं। सरकार यह कह रही है कि हम कानून रद्द करने के अलावा बातचीत करने को तैयार है लेकिन देश भर के किसानों के विरोध के बावजूद कानून रद्द न करने के पीछे कौन सी तकनीकी, राजनीतिक और आर्थिक मजबूरियां है यह सरकार बताने को तैयार नहीं है। यह सवाल किसान संगठनों द्वारा पिछली पांच वार्ताओं द्वारा पूछा जा रहा है लेकिन सरकार मौन है। इससे स्पष्ट है कि सरकार अडानी, अंबानी और अन्य कारपोरेट घरानों से जो समझौते कर चुकी है उनसे पीछे हटने को तैयार नहीं है।

उन्होंने कहा कि सरकार धीरे-धीरे किसान आंदोलन को कानून व्यवस्था का सवाल बना कर आगे बढ़ रही है। जबकि किसानों के लिए तीन कानूनों को रद्द कराना, खेती के कार्पोरेटिकरण को रोकने एवं किसान किसानी और गांव को बचाने के लिए अस्तित्व का सवाल है जिसे सरकार समझने को तैयार नहीं है। सरकार किसानों को एमएसपी और सुधार के प्रस्ताव देकर बांटने की जुगत में है। अभी तक कोई भी संगठन सरकार के दबाव में नहीं आया है लेकिन भाजपा और अधिकारी दिन-रात किसान आंदोलन को तोड़ने में जुटे हैं।

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ऐसे समय में किसानों के सामने एक मात्र विकल्प भारत बंद से पैदा हुई ऊर्जा और एकजुटता के इस्तेमाल से आंदोलन को तेज करना है। आंदोलन को तेज करने का एक तरीका यह है कि गोदी मीडिया और सरकारी प्रोपेगेंडा भाजपा नेताओं के बयानों का बिंदुवार जवाब दें। इसके लिए सभी संगठनों ने तमाम साहित्य प्रकाशित किए है उसे अधिक से अधिक ग्रुपों में शेयर करें। गांव के चौपालों, चौराहों पर बैठकर किसानों को मंडी व्यवस्था, एमएसपी व्यवस्था, खाद्य सुरक्षा व्यवस्था, कृषि समाप्त होने से रोजगार का संकट आदि मुद्दों की जानकारी दें।

किसान संघर्ष समिति की ओर से उन्होंने देश के किसानों से अपील की है कि गांव, पंचायत, जनपद, तहसील, जिला और प्रदेश स्तर पर जहां कहीं भी अनिश्चितकालीन किसान महापंचायत शुरू की जा सकती हो उसकी अभिलंब शुरुआत करें।

50 स्थानों पर शुरू हुआ अनिश्चितकालीन आंदोलन
पुणे, राजनांदगांव, बिलासपुर तथा देश में अन्य 50 स्थानों पर अनिश्चितकालीन आंदोलन की शुरुआत हुई है। जब आप कार्यक्रम शुरु करते हैं तब संख्या की चिंता ना करें। एक बार जब इलाके में खबर फैलेगी कि 13 दिन से दिल्ली में पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं अन्य राज्य के किसानों द्वारा दिल्ली में अनिश्चितकालीन धरने के समर्थन में किसान महापंचायत शुरू हो चुकी है तो स्वतः प्रेरणा से किसान बड़ी संख्या में जुटने शुरू होंगे। इन्हीं किसान महापंचायतों से किसान विरोधी कानूनों को रद्द करने का रास्ता निकलेगा। इस बीच यह भी खबर है कि जल्दी ही दिल्ली जाने वाले सभी रास्तों को किसानों द्वारा जाम कर दिया जाएगा।

किसान संघर्ष समिति ने कहा है कि हम उम्मीद करते हैं कि सरकार हठधर्मिता छोड़ेगी तथा प्रधानमंत्री देश के नाम विशेष संदेश जारी कर तीनों कानूनों को रद्द करने और बिजली बिल वापस लेंगे। देश के तमाम वरिष्ठ राजनेताओं द्वारा, मुख्यमंत्रीयों द्वारा विशेष सत्र बुलाकर कानून रद्द करने की मांग की जा रही है। किसान लगातार बातचीत जारी रखते हुए शांतिपूर्ण तरीके से कृषि कानूनों को रद्द कराना चाहते हैं। हमें इस बात की खुशी है कि तमाम सरकारी दबाव के बावजूद अध्यादेश लाने, बिल लाने, जबरदस्ती कानून थोपने के खिलाफ देशभर के सभी किसान आंदोलन शांतिपूर्ण रहे हैं।