Love Jihad

Love Jihad: ‘लव-जिहाद’ के बहाने ‘धर्म स्वातंत्र्य विधेयक’

नेहा दबाडे

Love Jihadपिछले कुछ महीनों से देश के कुछ राज्‍यों में ‘लव-जिहाद’ (Love Jihad) पर बवाल मचा है। कहा जा रहा है कि एक धर्म शेष के लोग अपनी आबादी बढ़ाने के लिए दूसरे धर्म विशेष की लड़कियों को अपने ‘लव’ के जाल में फंसाकर धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं। इस हल्‍ले में कतिपय राज्‍यों ने अपने-अपने यहां ‘धर्म स्वातंत्र्य विधेयक’ बनाने की शुरुआत भी कर दी है, लेकिन क्‍या ऐसा कानून बनाना हमारे संविधान के दायरे में वैध माना जा सकता है? क्‍या विवाह सरीखे नितान्‍त निजी अनुष्‍ठान राज्‍य की निगरानी में किए जा सकते हैं? प्रस्‍तुत है, इस विषय पर प्रकाश डालता सामाजिक कार्यकर्ता नेहा दबाडे का यह लेख। इसे अंग्रेजी से हिन्‍दी में अनूदित किया है, अमरीश हरदेनिया ने।

प्रसिद्ध लेखिका माया एंजेलो ने लिखा है, “प्यार किसी के रोके नहीं रुकता। वह अवरोधों को लांघते हुए, दीवारों को छलांगते हुए, उम्मीदों से भरा अपनी मंजिल तक पहुँच ही जाता है।” यह कथन भारत के उन हजारों दम्पत्तियों की कहानी कहता है जिन्होंने धर्म और जाति की सीमाओं को लांघकर अपने जीवनसाथी का वरण किया है।
तनवीर अहमद एक मुसलमान हैं, जबकि उनकी पत्नी विनीता शर्मा हिन्दू धर्म में आस्था रखतीं हैं। दोनों की एक प्यारी सी बच्ची है जिसका नाम कुहू है। वे सुखी वैवाहिक जीवन बिता रहे हैं। उनके लिए यह बात मायने नहीं रखती कि उनका विवाह भारत की धर्मनिरपेक्ष परंपरा और मूल्यों को प्रतिबिंबित करता है।
संध्या म्हात्रे ने बोहरा मुसलमान इरफ़ान इंजीनियर से 20 साल पहले विवाह किया था। वे दोनों एक-दूसरे की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते हैं और दोनों में से किसी ने भी अपना धर्म नहीं बदला है। उनका दांपत्य जीवन सुखी और समृद्ध है।
यह लेखिका गत सात सालों से एक पारसी पुरुष से विवाहित है और संतुष्ट और प्रसन्न है। अंतर्धार्मिक विवाह आज भारत के हजारों दम्पतियों के जीवन का यथार्थ हैं। उन्हें एक-दूसरे के सान्निध्‍य में प्रेम, सम्मान और वह उम्मीद भी मिली है जिसकी बात माया एंजेलो करतीं हैं।
हमारे देश में अंतर्धार्मिक विवाह कोई अजूबा नहीं रह गए हैं, फिर हम ये उदाहरण क्यों दे रहे हैं? वह इसलिए क्योंकि इन दिनों इस तरह के विवाह नफरत की राजनीति के शिकार बन रहे हैं। हिन्दू राष्ट्रवादियों के विरोध से वे विवादों के घेरे में आ गए हैं। ‘लव जिहाद’ शब्द हिन्दू राष्ट्रवादियों ने गढ़ा है और वे इसका प्रयोग हिन्दू महिलाओं और मुस्लिम पुरुषों के बीच विवाह के लिए करते हैं। उनका मानना है कि ये सभी विवाह मुस्लिम पुरुषों द्वारा हिन्दू महिलाओं को बहला-फुसला कर किये जाते हैं और इनका एकमात्र उद्देश्य महिला को मुसलमान बनाना होता है। इस मुद्दे और इस पर की जा रही नफरत की राजनीति के गंभीर निहितार्थ हैं। ये संविधान में हमें दी गईं स्वतंत्रताओं और अधिकारों पर डाका डालते हैं। ये हमारे समाज के धर्मनिरपेक्ष और बहुलतावादी ताने-बाने को कमज़ोर करते हैं और एक समुदाय विशेष का दानवीकरण और महिलाओं के अपने निर्णय स्वयं लेने के अधिकार पर गंभीर चोट करते हैं।
अंतर्धार्मिक विवाह हाल में तब चर्चा में आए जब हिन्दू राष्ट्रवादियों ने देश के सबसे बड़े उद्योग समूहों में से एक टाटा की ज्वेलरी ब्रांड ‘तनिष्क’ के एक विज्ञापन पर आपत्ति उठाई। दिल को छू लेने वाले इस विज्ञापन में एक मुस्लिम सास को हिन्दू बहू की गोद-भराई की रस्म अदा करते हुए दिखाया गया था। विज्ञापन में निहित सन्देश यह था कि सास अपनी बहू की धार्मिक आस्थाओं का सम्मान करते हुए हिन्दू रीति से यह संस्कार कर रही है। हमारे समाज के बहुवादी चरित्र को रेखांकित करने वाला यह विज्ञापन हिन्दू राष्ट्रवादियों को नागवार गुज़रा और उन्होंने टाटा को इस विज्ञापन को वापस लेने और ‘लव जिहाद’ को बढावा देने के लिए माफ़ी मांगने पर मजबूर कर दिया।
इस बीच कर्नाटक, मध्यप्रदेश और हरियाणा की राज्य सरकारों ने अंतर्धार्मिक विवाहों को प्रतिबंधित करने के लिए कानून बनाने के घोषणा की है। तर्क यह दिया जा रहा है कि मुस्लिम युवक, हिन्दू महिलाओं को ‘रिझाते’ हैं और ‘बहला-फुसला’ कर उनसे विवाह करते हैं ताकि उन्हें मुसलमान बनाया जा सके। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने तो एक कदम और आगे बढ़कर मुस्लिम पुरुषों को धमकी तक दे डाली। उन्होंने कहा, “मैं उन लोगों को चेतावनी देना चाहता हूँ जो अपनी असली पहचान छुपाकर हमारी बहनों की इज्ज़त के साथ खिलवाड़ करते हैं। अगर वे नहीं सुधरे तो उनका ‘राम नाम सत्य’ हो जायेगा।”
यह भी दिलचस्प है कि कुछ समय पहले, ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ की अध्यक्ष रेखा शर्मा ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी से मुलाकात कर राज्य में ‘लव जिहाद’ के बढ़ते मामलों पर अपनी ‘चिंता’ जाहिर की थी। उनकी ‘चिंता’ की देशभर में व्यापक प्रतिक्रिया हुई। यह प्रश्न भी उठा कि क्या ‘लव जिहाद’ को भारतीय कानून में परिभाषित किया गया है? क्या ‘लव जिहाद’ जैसा कोई अपराध या अपराधों की श्रेणी है? अगर हाँ, तो इस अपराध का दोषी कौन होगा और इसके लिए किस सजा का प्रावधान है? अगर इस अपराध से महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन होता है तो क्या किसी महिला ने इस आशय की शिकायत दर्ज करवाई है कि उसे ‘बहला-फुसला’ कर और ‘रिझाकर’ उसके साथ सिर्फ इसलिए विवाह किया गया, ताकि उसे मुसलमान बनाया जा सके?
मज़े की बात यह है कि फरवरी 2020 में केंद्रीय गृह राज्यमंत्री किशन रेड्डी ने कहा था कि ‘लव जिहाद’ की घटनाओं के सम्बन्ध में कोई आंकड़ा उपलब्ध नहीं है क्योंकि भारतीय कानून में ‘लव जिहाद’ को परिभाषित नहीं किया गया है। ‘राष्ट्रीय महिला आयोग’ से ‘सूचना के अधिकार’ के अंतर्गत पूछे गए प्रश्न के उत्तर में आयोग ने बताया कि उसके पास ‘लव जिहाद’ के बारे में कोई जानकारी नहीं है। साफ़ है, ‘लव जिहाद’ के बारे में न तो कोई आधिकारिक जानकारी उपलब्ध है और ना ही कोई आंकड़े और ना ही इसे भारतीय कानून में परिभाषित किया गया है। इस मुद्दे पर जो ज़हरीला प्रचार किया जा रहा है वह बेबुनियाद है। ऐसे में क्या मध्यप्रदेश, हरियाणा और कर्नाटक की राज्य सरकारों द्वारा ‘लव जिहाद’ पर कानून बनाना संवैधानिक कहा जा सकता है?
भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 सभी नागरिकों को समानता की गारंटी देते हैं और अनुच्छेद 21, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। किसी भी नागरिक को किसी भी धर्म के व्यक्ति के साथ विवाह करने का पूरा अधिकार है। दरअसल, ‘लव जिहाद’ पर प्रस्तावित कानून, महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अपना जीवनसाथी चुनने और विवाह के बाद अपनी मर्ज़ी से किसी भी धर्म को अपनाने के उनके मूल अधिकार को समाप्त करता है। क्या यह कहना कि महिलाओं को ‘बहलाया-फुसलाया’ या ‘रिझाया’ जा सकता है, उनका अपमान करना नहीं हैं? क्या महिलाएं इतनी मंदबुद्धि हैं कि वे अपने जीवन के बारे में सही निर्णय नहीं ले सकतीं? सच यह है कि इस तरह के कानून इस मान्यता को मजबूती देते हैं कि महिलाएं उनके समुदायों की ‘संपत्ति’ और ‘इज्ज़त’ हैं।
भारत की धर्मनिरपेक्ष और प्रजातान्त्रिक नीतियां और कानून अलग-अलग धर्मों के प्यार करने वालों को बिना अपना धर्म बदले ‘विशेष विवाह अधिनियम’ के तहत विवाह करने की इज़ाज़त देती हैं। ऐसे हजारों दंपत्ति हैं जिन्होंने प्रेम की खातिर और एक सच्चा जीवनसाथी पाने के लिए अपनी मर्ज़ी से अंतर्धार्मिक विवाह किये हैं। ऐसा भी नहीं है कि केवल मुस्लिम पुरुष और हिन्दू महिलाएं ही विवाह करते हैं, हिन्दू पुरूषों और मुस्लिम महिलाओं के विवाह के भी अनेकानेक उदाहरण हैं।
जब देश का संविधान और कानून विवाह के मामले में धार्मिक या जातिगत सीमाएं निर्धारित नहीं करता तो कुछ राज्य सरकारें ऐसे कानून बनाने पर आमादा क्यों हैं? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि वे इस आख्यान का निर्माण करना चाहतीं हैं कि मुसलमान, हिन्दू महिलाओं के सम्मान और सुरक्षा के लिए खतरा हैं। इस मुद्दे पर जुनून भड़का कर मुसलमानों का दानवीकरण किया जा रहा है और यह साबित करने के प्रयास हो रहे हैं कि मुसलमान दूसरे समुदायों के साथ शांतिपूर्वक और मिलजुलकर रह ही नहीं सकते। यह दिखाने के प्रयास हो रहे हैं कि मुसलमान कट्टर और धर्मांध हैं और वे हिन्दू महिलाओं से केवल इसलिए विवाह करते हैं ताकि उन्हें मुसलमान बनाकर देश की मुस्लिम आबादी को बढ़ाया जा सके।
भारत के कई राज्यों में ऐसे कानून हैं जिनके चलते किसी भी व्यक्ति के लिए अपनी मर्ज़ी से दूसरा धर्म अपनाना अत्यंत कठिन बन गया है। धर्मपरिवर्तन के लिए सरकार की पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य बना दिया गया है। विडंबना है कि इन कानूनों को ‘धार्मिक स्वातंत्र्य अधिनियम’ कहा जाता है। मध्यप्रदेश के प्रस्तावित ‘धर्म स्वातंत्र्य विधेयक – 2020’ में ‘किसी व्यक्ति को बहला-फुसला कर धर्मपरिवर्तन करवाकर शादी करने को पांच वर्ष के कारावास से दण्डनीय घोषित किया गया है’.
यह राजनीति प्रजातान्त्रिक संस्थाओं और संविधानिक प्रावधानों को कमज़ोर करने वाली है। हम एक पुरातनपंथी, तालिबानी समाज बनने की ओर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इससे जो क्षति होगी उसकी भरपाई करना असंभव होगा। हम केवल यह आशा कर सकते हैं कि हमारे देश की जनता को जल्द ही यह अहसास होगा कि हमें नफरत नहीं, बल्कि प्रेम की दरकार है और ‘लव जिहाद’ जैसे बोगस अभियानों की तो हमें कतई ज़रुरत नहीं है। (सप्रेस से साभार)

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