Zero Day

Zero Day: राजनीति, साइबर युद्ध और डी नीरो का करिश्मा

Zero Dayसचिन श्रीवास्तव

20 फरवरी को नेटफ्लिक्स पर साया हुई वेबसीरीज “जीरो डे” एक पॉलिटिकल थ्रिलर है, जिसका निर्देशन लेस्ली लिंका ग्लैटर ने किया है। लेस्ली लिंका ग्लैटर ने “होमलैंड”, “द वेस्ट विंग” और “मैड मैन” जैसी सीरीज़ से अपनी जो पहचान बनाई है, उसे वे इस सीरीज में और ऊंचाई देती हैं। अब हम कह सकते हैं कि राजनीतिक तनाव और जासूसी के माहौल को दिखाने में जो दो—तीन सिद्धहस्त निर्देशक मौजूदा समय में हैं, उनमें से एक लेस्ली भी हैं। यह उनकी ही महारत है कि धीमी गति के बावजूद वे बांधे रखती हैं।

“जीरो डे” में उन्होंने धीमे लेकिन सख्त निर्देशन का उपयोग किया है। खासकर व्हाइट हाउस सिचुएशन रूम के दृश्यों को बहुत ही तनावपूर्ण और यथार्थवादी तरीके से दिखाया गया है। हालांकि यह कई जगह “हाउस ऑफ कार्ड्स” की भी याद दिलाता है। उन्होंने कैमरा एंगल्स और क्लोज़-अप शॉट्स का उपयोग पात्रों की मानसिक स्थिति दिखाने के लिए बखूबी किया है। खासकर जॉर्ज मुलन की मनोवैज्ञानिक जद्दोजहद को उभारने में रोशनी और परछाइयों का उपयोग जबरदस्त है।

यह कहानी साइबर युद्ध, राजनीतिक साज़िश और राष्ट्रीय सुरक्षा के इर्द-गिर्द घूमती है। यह एक साथ “डेजिगनेटेड सर्वाइवर”, “हाउस ऑफ कार्ड्स” और “होमलैंड” की याद दिलाती है। रॉबर्ट डी नीरो इस भूमिका के लिए परफेक्ट चॉइस हैं। नीरो ने पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज मुलन की भूमिका में गंभीरता और करिश्मे को एक साथ रखा है।

डी नीरो का संयमित और करिश्माई अभिनय उनकी “द आइरिशमैन” और “गुडफेलास” की याद दिलाता है। ऐसा लगता है कि अपने लंबे एक्टिंग करियर के बावजूद डी नीरो बहुत कुछ कहने, बहुत ​कुछ दिखाने, बहुत कुछ कहने से रह गए हैं, जिसे वे अपनी बुजुर्गियत में नए सिरे से रच रहे हैं।

“जीरो डे” की कहानी एक विनाशकारी साइबर हमले से शुरू होती है, जिससे पूरे अमेरिका की सुरक्षा प्रणाली चरमरा जाती है। इस संकट से निपटने के लिए “जीरो डे कमीशन” का गठन किया जाता है, जिसका नेतृत्व पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज मुलन यानी डी नीरो को सौंपा जाता है।

यह भी पढ़ें:  17th AIPSC: देश में वैज्ञानिक चेतना को मजबूत करने के लिए करेंगे जमीनी कार्रवाई

जांच के दौरान कई परतें खुलती हैं और कहानी इन सवालों से उलझती है कि क्या यह हमला किसी विदेशी सरकार, जो जाहिर है अमेरिका के मामले में रूस ही हो सकती है, ने किया है? क्या इसमें अमेरिकी की राजनीतिक ताकतों की कोई भूमिका है? क्या यह एक आंतरिक साज़िश है? वगैरह वगैरह।

धीमे लेकिन दिलचस्प खुलासे के जरिये यह आखिरी तक बांधे रखती है। साथ ही पात्रों के आपसी संघर्ष और द्वंद्व हमें कहानी के परे ले जाते हैं, इन दृश्यों का फिल्मांकन ज्यादा बेहतर है। साइबर अपराध की तकनीकी बारीकियों को भी लेस्ली ने यथार्थवादी तरीके से दिखाया है। वे कहीं भी लाउड नहीं होती हैं।

हालांकि कहानी बीच के कुछ एपिसोड में बेहद धीमी हो जाती है और कुछ ट्विस्ट अनुमानित लगते हैं। लेकिन वह पूरे प्रभाव को कम नहीं कर पाते हैं।

डी नीरो के किरदार और उनके व्यक्तित्व के बीच लिज़ी कैपलन ने अलेक्ज़ेंड्रा मुलन जो जॉर्ज मुलन की बेटी है, की भूमिका निभाते हुए अपने किरदार में गहराई और संवेदनशीलता को बखूबी बापरा है। “मास्टर्स ऑफ सेक्स” और “फ्लेशमैन इज इन ट्रबल” में उनकी अदाकारी जो लोग देख चुके हैं, उन्हें एक नई लिज़ी की छवि भी दिखाई देगी। बाप—बेटी के संबंधों में दूरी और तनाव को वे शानदार ढंग से उकेरती हैं।

जेसी प्लेमन्स ने एफबीआई के साइबर विश्लेषक के किरदार में हमें भरोसा दिखाया है, वे धीरे-धीरे कहानी के भीतर केंद्र में आते जाते हैं और आंतरिक राजनीति से टकराने लगते हैं। उनके गहरे संवाद और गंभीर अभिव्यक्ति यादगार हैं। मीम प्रेमियों के लिए उनके वाक्य लुभाएंगे। जोआन एलन और कॉनी ब्रिटन ने स्क्रीन की राजनीतिक दुनिया की गंभीरता और विश्वसनीयता को बनाया ही नहीं बल्कि बढ़ाया भी है।

यह भी पढ़ें:  Israel Palestine Issue: मज़हब के चश्मे से इज़राइल और फिलिस्तीन का मसला हल नहीं हो सकता

सीरीज़ की सिनेमैटोग्राफी पर अलग से बात करनी चाहिए। लेस्ली ने एक बार फिर “होमलैंड” के बाद क्रिस मैनले पर भरोसा दिखाया है और उन्होंने निराश नहीं किया है। क्रिस का कैमरा राजनीति और साइबर अपराध की नज़ाकत को बारीकी से पकड़ता है। उनके लो-एंगल शॉट्स जॉर्ज मुलन की सत्ता और उनके प्रभाव को उभारते हैं। वहीं ब्लू-ग्रे कलर टोन के जरिये तनावपूर्ण माहौल को गहराई दी गई है। उनका हैंडहेल्ड कैमरा हमें यथार्थ का एहसास कराता है, खासकर साइबर हमले के दृश्यों में।

“जीरो डे” को देखते हुए आप “हाउस ऑफ कार्ड्स”, “डेजिगनेटेड सर्वाइवर” और “होमलैंड” को बार-बार याद करेंगे, लेकिन साथ ही यह भी समझ आता जाएगा कि यह इन तीनों सीरीज की जमीन को आगे ले जाती है।

कहानी के स्तर पर जहां “जीरो डे” साइबर हमले और राजनीतिक षड्यंत्र के इर्दगिर्द घूमती है, वहीं “हाउस ऑफ कार्ड्स” सत्ता संघर्ष और कुटिल राजनीतिक उठापठक पर फोकस करती है। “होमलैंड” में आतंकवाद और राष्ट्रीय सुरक्षा पर नजर है, तो “डेजिगनेटेड सर्वाइवर” में अचानक राष्ट्रपति बने व्यक्ति के सत्ता संघर्ष को केंद्र में रखा गया है।

“जीरो डे” में कहानी धीरे-धीरे खुलती है, तो वहीं “हाउस ऑफ कार्ड्स” में अंधेरी और साज़िश भरी दुनिया सामने आती है। जबकि “होमलैंड” में तेज़-तर्रार जासूसी कहानी है और “डेजिगनेटेड सर्वाइवर” में लोकतंत्र और नैतिकता का संघर्ष है।

और अंत में
अगर आप राजनीतिक षड्यंत्र और साइबर हमले की दुनिया में रुचि रखते हैं, और कुछ शुद्ध राजनीतिक हकीकत से जुड़ा देखना चाहते हैं, तो “जीरो डे” एक बेहतरीन सीरीज़ है। इसके साथ ही डी नीरो का करिश्मा देखना भी एक वजह हो सकता है। निर्देशन और सिनेमैटोग्राफी तो उच्च स्तरीय है ही और फिर कहानी में गहराई और गंभीरता भी है।