Inequality

Inequality: जरूरी हो गया है, गैर-बराबरी के ‘वायरस’ का वैक्सीन

सत्यम पाण्डेय

(स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में हर साल जनवरी में दुनियाभर के अमीरों का एक जमावड़ा ‘वर्ल्ड इकॉनॉमिक फोरम’ हुआ करता है जिसके ठीक पहले वैश्विक एनजीओ ‘ऑक्सफैम’ दुनियाभर की गरीबी और गैर-बराबरी (Inequality) का लेखा-जोखा सार्वजनिक करता है। ‘ऑक्सफैम’ की रिपोर्ट हर साल शर्मनाक गरीबी, बढ़ती गजालत और अश्लील गैर-बराबरी के उस ‘वायरस’ का जिक्र करती है जिससे सबको पता चल सके कि सम्पन्नता के लिए दुनिया क्या कीमत चुका रही है। प्रस्तुत है, हाल की ‘ऑक्सफैम’ रिपोर्ट पर आधारित सामाजिक कार्यकर्ता सत्यम पाण्डेय का यह लेख।)

कोरोना अभी अतीत का हिस्सा नहीं बना है, हालाँकि इसके अनेक टीके दुनिया भर में आ गए हैं और एक ऐतिहासिक टीकाकरण अभियान भी आरम्भ हो चुका है जिसके बारे में कई सवाल भी हैं। अभी उनके बारे में चर्चा करने के बजाय हम एक और गंभीर ‘वायरस’ की चर्चा कर रहे हैं जिसका नाम है- असमानता अर्थात गैर-बराबरी।

हमारे संविधान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है इसकी प्रस्तावना, जो संविधान की मूल  दिशा को तय करती है। यह प्रस्तावना भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बनाने का वायदा करती है। आज संविधान के ये तमाम मूल्य गंभीर संकट में हैं, लेकिन समाजवाद तो शायद कभी भी हमारी नीतियों में रहा ही नहीं। समाजवाद का मतलब समानता से है जो निरंतर पूंजीवादी नीतियों के चलते कभी भी साकार नहीं हो सकी है। आर्थिक उदारीकरण के आने के बाद अमीरी और गरीबी की खाई निरंतर बढ़ती ही जा रही है।

दुनिया भर में वंचित समुदायों की स्थिति पर काम करने वाली वैश्विक संस्था ‘ऑक्सफेम’  प्रतिवर्ष इस मुद्दे पर एक अध्ययन रिपोर्ट जारी करती है। इस बार ‘ऑक्सफेम’ की यह रिपोर्ट ‘असमानता के वायरस’  के नाम से हाल ही में प्रकाशित हुई है, जो भारत के सन्दर्भ में कई गंभीर चुनौतियों की ओर इशारा करती है। रिपोर्ट के लिए ‘ऑक्सफैम’ द्वारा किए गए सर्वेक्षण में 79 देशों के 295 अर्थशास्त्रियों ने अपनी राय दी है। जेफरी डेविड, जयति घोष और गेब्रियल जुक्मैन सरीखे अर्थशास्त्रियों सहित 87 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने रिपोर्ट में महामारी के चलते देश में आय असमानता में बड़ी या बहुत बड़ी बढ़ोतरी का अनुमान जताया है।

वायरस की तरह फैली गरीबी
‘इंडियन एक्सप्रेस’  की रिपोर्ट के अनुसार ‘द इनइक्वैलिटी वायरस’ नामक इस रिपोर्ट से पता चला है कि कोरोना की वजह से अर्थव्यवस्था की रफ्तार थम गई है, बड़ी संख्या में गरीब भारतीय बेरोजगार हो गए हैं, तो दूसरी ओर भारत के अरबपतियों की संपत्ति में 35 फीसदी का इजाफा हुआ है। अप्रैल 2020 में हर घंटे 170,000 लोग बेरोजगार हो रहे थे। लॉकडाउन के दौरान भारत की सबसे बड़ी असंगठित कामगार आबादी को सबसे अधिक नुकसान हुआ था। इस दौरान करोड़ों रोजगार समाप्त हुए, जिनमें से 75 फीसदी असंगठित क्षेत्र के थे।

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असंगठित श्रमिकों के पास घर से काम करने के कम अवसर थे और संगठित क्षेत्र की तुलना में उनका रोजगार अधिक प्रभावित हुआ था। निर्माण स्थलों, कारखानों आदि में मजदूरी में लगे चार से पांच करोड़ प्रवासी मजदूर विशेष रूप से प्रभावित हुए। ‘लॉकडाउन’ के लगते ही देशभर में लगी करोड़ों मजदूरों की उन कतारों को कौन भूल सकता है जो रोजगार छिन जाने पर अपने-अपने गाँवों की तरफ पैदल ही चल पड़े थे। इनमें से कितने ही लोग रास्ते में खत्म हो गए तो कितने ही अपंग हो गए।

असंगठित क्षेत्र पर कोरोना की मार
‘ऑक्सफैम’ ने कहा कि महामारी और ‘लॉकडाउन’ का अनौपचारिक मजदूरों पर सबसे बुरा असर पड़ा। इस दौरान करीब 12.2 करोड़ लोगों ने रोजगार खोए, जिनमें से 9.2 करोड़ (75 प्रतिशत) अनौपचारिक क्षेत्र के थे। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस संकट के चलते महिलाओं ने सबसे अधिक कष्ट सहा और एक करोड़ 70 लाख महिलाओं का रोजगार अप्रैल 2020 में छिन गया। ‘लॉकडाउन’ से पहले ही महिलाओं की बेरोजगारी दर 15 प्रतिशत थी, बाद में इसमें 18 प्रतिशत की और बढ़ोतरी हो गई। रिपोर्ट में स्कूलों से बाहर रहने वाले बच्चों की संख्या दोगुनी होने की आशंका भी जताई गई है। कोरोना काल में जो बच्चे शिक्षा से बाहर होकर बाल श्रम से जुड़ गए हैं उन्हें शिक्षा से वापस जोड़ पाना बहुत ही कठिन है, खासकर तब, जबकि शालाएं बंद हैं।

समृद्धि के बढ़ते टापू
कोरोना के कारण बेरोजगारी और उसके चलते गरीबी में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई। मार्च 2020 से दिसंबर 2020 के बीच ‘लॉकडाउन’ और अन्य परेशानियों की वजह से जहां करोड़ों लोग और गरीब हो गये हैं, वहीं दुनिया के टॉप अमीरों की संपत्त‍ि में 3.9 ट्रिलियन डॉलर (करीब 285 लाख करोड़ रुपये) का इजाफा हुआ है। ‘ऑक्सफेम’ की रिपोर्ट में कहा गया है – ‘लॉकडाउन के दौरान भारतीय अरबपतियों की संपत्ति 35 फीसदी बढ़ी है। इन अरबपतियों की संपत्ति 90 फीसदी बढ़कर 422.9 अरब डॉलर हो गई है। इसके बाद भारत अरबपतियों की संपत्ति के मामले में विश्व में अमेरिका, चीन, जर्मनी, रूस और फ्रांस के बाद छठे स्थान पर पहुंच गया है।’

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‘ऑक्सफैम’ के मुताबिक, मार्च 2019 से, जब से केंद्र सरकार ने ‘लॉकडाउन’ का ऐलान किया, भारत के शीर्ष 100 अरबपतियों की संपत्ति 12.97 ट्रिलियन डॉलर यानि 12,97,822 करोड़ रुपये बढ़ी है। यह धनराशि इतनी अधिक है कि इससे देश के 13.8 करोड़ सर्वाधिक गरीबों में से हरेक को 94,045 रुपये की राशि प्रदान की जा सकती है। इस राशि का इस्तेमाल देश की गरीब जनता को कोरोना वेक्सीन मुफ्त में लगाने अथवा सबको निःशुल्क शिक्षा और रोजगार उपलब्ध कराने में किया जा सकता है। रिपोर्ट के मुताबिक मुकेश अंबानी, गौतम अडाणी, शिव नादर, सायरस पूनावाला, उदय कोटक, अजीम प्रेमजी, सुनील मित्तल, राधाकृष्ण दमानी, कुमार मंगलम बिरला और लक्ष्मी मित्तल जैसे अरबपतियों की संपत्ति मार्च 2020 के बाद महामारी और ‘लॉकडाउन’  के दौरान तेजी से बढ़ी है।

असमानता का ‘वायरस’
‘ऑक्सफेम’ की इस रिपोर्ट में भारतवासियों की आमदनी की असमानता का जिक्र करते हुए बताया गया है  कि महामारी के दौरान मुकेश अंबानी को एक घंटे में जितनी आमदनी हुई, उतनी कमाई करने में एक अकुशल मजदूर को दस हजार साल लग जाएंगे। मुकेश अंबानी ने जितनी आमदनी हर एक सेकेंड में हासिल की है, उसे प्राप्त करने में एक अकुशल मजदूर को कम-से-कम तीन साल लग जायेंगे।

कब बनेगा इस ‘वायरस’ का टीका
यह अचानक नहीं है, जब अमीरी और गरीबी की यह तस्वीर सामने आई है। वर्ष 1990 के दशक के बाद से निरंतर आर्थिक असमानता बढ़ती जा रही है। कोरोना काल में इसकी गति अचानक तेज हो गई है। बेशक इसके लिए वे नीतियां जिम्मेवार हैं जो आम आदमी के खिलाफ कॉरपोरेट  घरानों के फायदे के लिए काम करती हैं, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यही है कि  ये सब यूँ ही कब तक चलता रहेगा? क्या किसानों की तरह असंगठित क्षेत्र के कामगार और आम आदमी भी इस असमानता के खिलाफ उठ खड़ा होगा? या सत्ता में बैठे हुए लोग संविधान की भावना के अनुरूप आय की असमानता को कम करने के लिए और देश को वास्तव में समाजवादी गणतंत्र बनाने के लिए काम करेंगे?

(सर्वोदय प्रेस सर्विस से साभार)