NCHRO ने दी मध्य प्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम को हाई कोर्ट में चुनौती

भोपाल। मानवाधिकार संगठन नेशनल कन्फेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गनाइज़ेशन्स (एनसीएचआरओ) की मध्यप्रदेश इकाई ने तथाकथित रूप से ‘लव जिहाद कानून’ के रूप में बहुचर्चित मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2020 को उच्च न्यायालय में चुनौती दी है।

संगठन की प्रदेश सचिव अधिवक्ता शिल्पी रंगारी ने बताया कि प्रदेश अध्यक्ष आराधना भार्गव के नाम से दाख़िल याचिका में उक्त कानून को संवैधानिक मूल्यों के विरुद्ध बताते हुए माननीय न्यायालय से धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2020 को ख़ारिज करने की अपील की है।

उन्होंने बताया की उक्त कानून संविधान के अध्याय III के प्रावधानों को खंडित करता है। संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को अपनी इच्छा अनुसार किसी भी धर्म को अपनाने, उस पर चलने एवं उसका प्रचार-प्रसार करने का अधिकार देता है। लेकिन धार्मिक स्वत्रंत्रता अधिनियम 2020 संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिकों के इस अधिकार का हनन करता है। अतः यह कानून भारतीय संविधान के मूल्यों एवं प्रावधानों के विरुद्ध है।

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याद रहे कि पूर्व में राज्यपाल द्वारा उक्त परिपेक्ष्य में पारित किए गए अध्यादेश के बाद से धर्म परिवर्तन के मामलों में तेज़ी आयी है जिनमें अल्पसंख्यकों को बड़ी संख्या में निशाना बनाया गया है। जिसको दृष्टिगत रखते हुए उक्त रिट याचिका में धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम 2020 ख़ारिज करने की मांग करते हुए विधिवत रूप से चुनौती दी गई है।

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल ने बीते साल 26 दिसंबर को कथित ‘लव जिहाद’ के खिलाफ सख्त कानून बनाने के लिए ‘मध्यप्रदेश धार्मिक स्वतंत्रता विधेयक-2020’ को मंजूरी दी थी। इस विधेयक में शादी तथा किसी अन्य छलपूर्वक किए गए धर्मांतरण के मामले में अधिकतम 10 साल की कैद एवं एक लाख रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान है।

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यह विधेयक कुछ मायनों में उत्तर प्रदेश की भाजपा नीत सरकार द्वारा अधिसूचित ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म परिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश-2020’ के समान है। उसमें भी जबरन धर्मांतरण करवाने वाले के लिए अधिकतम 10 साल की सजा का प्रावधान है।

इस विधेयक को बाद में मध्यप्रदेश विधानसभा पेश कर पारित किया गया और इसके प्रभाव में आते ही ‘मध्यप्रदेश ‘धर्म स्वातंत्र्य कानून 1968’ समाप्त हो गया है।