दस्तक संवाद : सोशल मीडिया आभासी दुनिया का एक वास्तविक चेहरा

नवनीत पांडे

“अगर फेसबुक का सबसे अच्छा और सार्थक इस्तेमाल अरुण देव समालोचन के जरिये कर रहे हैं तो व्हाट्सअप्प का बढ़िया इस्तेमाल भोपाल के अनिल करमेले अमिताभ मिश्र अंजू शर्मा और अनामिका चक्रवर्ती कर रही है दस्तक ग्रुप के जरिये।जब व्हाटसअप यूनिवर्सिटी झूठ नफरत फैलाने में लगी है दस्तक साहित्य के प्रचार प्रसार में लगा है प्रेम मोहब्बत सद्भाव मित्रता को फैलाने में लगा है रचनात्मकता को बढ़ाने में लगा है।बिना किसी सरकारी या संस्थागत मदद के।आपसी सहयोग से।वार्षिक आयोजन भी करता है।लोग आते है अपनी रचना पढ़ते है।साहित्य पर बातचीत करते हैं।दस्तक बधाई का पात्र है।” सोशल मीडिया और बाहर की साहित्यिक- सामयिक दुनिया में भी पूर्ण सक्रिय हस्तक्षेप रखनेवाले हमारे समय के महत्त्वपूर्ण मुखर कवि, पत्रकार, समीक्षक बड़े भाई विमल कुमार की उक्त टिप्पणी बताती है कि सोशल मीडिया का भी हम अपने क्षेत्र में कैसे सार्थक उपयोग ले सकते हैं. 
यह सच है कि दस्तक एक व्हाट्स अप समूह है लेकिन यह अन्य सोशल मीडिया व्हाट्स अप, फेसबुक ग्रुपों से इस मायने भिन्न है कि यह उनकी तरह आभासी नहीं है, दस्तक से जुड़े मित्र वास्तविक अर्थ में एक साहित्यिक संस्था मानिंद पिछले पांच सालों से हमारे मोबाइल में हैं और यह सब हो पाया इसके रचयिता और कठोर अनुशासन से चलानेवाले प्रशासक रचनात्मक सोचवाले लेखक मित्रगण कवि अनिल करमेले, कवि- कथाकार अमिताभ मिश्र और कवयित्री- कथाकार अंजू शर्मा जैसे कर्मठ प्रशासकों की वजह से. तीनों अपनी- अपनी क्षमता के अनुरूप अलग- अलग प्रशासन कमान संभाले हैं, तीनों की सहमति से ही इस समूह में सक्रिय व सकारात्मक सोचवाले अनुशासित लेखक मित्र जोड़ते हैं जैसे ही पता चलता है कि कोई इस कसौटी पर खरा नहीं उतर रहा, विनम्रता से क्षमा सहित ससम्मान उन्हें बाहर कर दिया जाता है, समूह का उद्देश्य है रचनात्मक रचाव के साथ- साथ पाठकीय, कहने के साथ- साथ, सुनने का  भी सन्देश. 
हर दिन की गतिविधि तय है, पोस्ट का अधिकार प्रशासकों को ही है जिसकी वजह से अवांछित, अंधाधुंद कुछ भी लिखना, कॉपी- पेस्ट करने प्रवृत्ति यहां नहीं है. प्रशासकगण सदस्यों से स्वयं पत्रिका सम्पादकों की तरह रचनाएं लेके पोस्ट करते हैं और पोस्ट पर सदस्यों की प्रतिक्रिया का आग्रह भी करते रहते हैं, भले कितने नवोदित सदस्य की रचना हो, साफगोई से टीका- टिप्पणी होती है, सही आलोचना न सह पाने की  वजह से कई बार कई सदस्य बाहर भी हुए हैं, एक और खास बात समय- समय पर अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों की महत्त्वपूर्ण रचनाओं का आस्वादन भी यहां होता रहता है.
यह एक ऎसा प्रांगण है जिस में हर शब्दकार अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराना चाहेगा. आभारी हूं कवयित्री मित्र अंजू शर्मा का जिन्होंने मुझे इस समूह से जोड़ा और  इस समूह के माध्यम से मुझे अनिल करमेले, अमिताभ मिश्र, नवल शुक्ल, देवीला पाटीदार जैसे महत्त्वपूर्ण हस्ताक्षरों से सम्पर्क- संवाद,  आत्मीय सानिध्य के साथ ही उनके साथ- साथ हमारे समय के महत्त्वपूर्ण रचनाकर्म से साक्षात होने के साथ ही दस्तक संवाद के आयोजन में उन से रुबरु होने का अवसर मिला.
हर साल की तरह 9- 10 फरवरी को  इस बार भी दस्तक का वार्षिक संवाद कई मायनों में अनूठा रहा. इस बार के आयोजन में हमारे समय के वरिष्ठ कवि राजेश जोशी, कुमार अम्बुज, मदन कश्यप और विमल कुमार के  गरिमापूर्ण सानिध्य में आयोजन में शिरकत करनेवाले समूह साथियों अमिताभ मिश्र, अनिल करमेले, प्रज्ञा रावत, स्मिता राजन,  नीलेश रघुवंशी, रक्षा दुबे, अनघा शर्मा, नवल शुक्ल, देवीलाल पाटीदार, सचिन श्रीवास्तव, नीतू दुबे, पूजा सिंह, जया करमेले, मुकेश वर्मा,  संदीप कुमार,  आरती, ईश्वर सिंह दोस्त, पलाश सुरजन, उदिता मिश्र (भोपाल) के अलावा रजनीश साहिल (दिल्ली), पूर्णिमा साहू, (रायपुर) अनीता दुबे,(पुणे) अनामिका चक्रवर्ती, (मनेन्द्रगढ़) रश्मि मालवीय,. राजनारायण बोहरे, रोशनी वर्मा,  आभा निवसरकर, ( इंदौर) बुद्धिलाल पाल,( दुर्ग)  अंजू शर्मा, (दिल्ली)  विभा रानी, (मुंबई)  नेहा नरूका, (ग्वालियर), अमृता जोशी, (जयपुर) आदि को  रचना- पाठ का अवसर तो मिला ही, साथ ही रचना पाठ पर कवि अग्रज राजेश जोशी, कुमार अम्बुज, मदन कश्यप, विमल कुमार से महत्त्वपूर्ण बेबाक टिप्पणियों के साथ- साथ सुझावों के साथ- साथ कविता- कहानी लिखने से पहले एक कवि- कथाकार अपने समय से मुठभेड़ करते हुए वर्तमान के साथ-साथ अपने पूर्ववर्ती रचनाकारों, परम्पराओं, मुहावरों  को जानना- समझना  ज़रूरी है, साथ ही भाषा- वर्तनी, शिल्प बरतने में सचेत रहना चाहिए. 

इस संवाद की उपलब्धियों में बाल कथाकार उदिता मिश्र की बाल कहानियों के अलावा नेहा नरूका, आरती, पूर्णिमा साहू की कविताओं के साथ अमिताभ मिश्र, राज बोहरे, अंजू शर्मा, अनीता दुबे, संदीप कुमार व विभारानी आदि  की कहानियों ने सबका ध्यान खींचा.
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