सोशल मीडिया पर शोध : माता पिता के साथ बहस में बच्चे

13 सितंबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव 
ब्रिटेन की एसेक्स यूनिवर्सिटी में सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने वाले बच्चों पर अब तक का सबसे बड़ा शोध किया है। हालांकि अध्ययन के नतीजों पर ब्रिटेन समेत पूरी दुनिया के समाजशास्त्री एकमत नहीं हैं। शोध के हर निष्कर्ष पर सोशल मीडिया यूजर, विशेषज्ञ और अविभावकों के बीच अलग-अलग राय हैं। करीब तीन साल तक 10-15 साल की आयु वर्ग वाले सोशल मीडिया यूजर्स की आदतों पर आधारित यह अध्ययन सामाजिक सहयोग के आधार पर किया गया।

ताजा अध्ययन के निष्कर्षों के मुताबिक, फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल साइट पर ज्यादा वक्त गुजारने वाले बच्चे खुद को बदसूरत मानते हैं और वे अपने माता-पिता के साथ बहस भी ज्यादा करते हैं। इस सरकारी अध्ययन के मुताबिक, सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताने वाले बच्चों की अन्य बच्चों के मुकाबले बुरा बर्ताव करने की शिकायतें दोगुनी हैं। यानी उनका व्यवहार ज्यादा आक्रामक और रूखा होता है। सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताने वालों में लड़कों के मुकाबले लड़कियां ज्यादा है। लड़कों के मुकाबले करीब दोगुनी लड़कियां सोशल मीडिया पर तीन घंटे से ज्यादा वक्त बिताती हैं। साथ ही हेवी सोशल मीडिया यूजर्स अपने दोस्तों और परिवार से भी ज्यादा खुश नहीं हैं।

कैसे हुआ अध्ययन
3500 बच्चों की आदतों का तीन साल तक अध्ययन किया गया। इसमें स्कूल और उनके आसपास के 4000 परिवारों की मदद ली गई। स्कूल, दोस्तों के साथ, परिवार के साथ और मोहल्ले में इन बच्चों के व्यवहार का अध्ययन किया गया। सभी बच्चों के व्यवहार को सोशल मीडिया इस्तेमाल करने के आधार पर अलग-अलग किया गया। सभी बच्चों के बारे में उनके टीचर्स, अविभावक और पड़ोसियों की राय ली गई।

पढ़ाई के प्रति ज्यादा सजग
अध्ययन का एक निष्कर्ष यह भी है कि सोशल मीडिया का ज्यादा इस्तेमाल करने वाले बच्चे पढ़ाई को लेकर ज्यादा सजग होते हैं। हालांकि सोशल मीडिया का कम इस्तेमाल करने वाले बच्चे भी ज्यादा पीछे नहीं हैं। लेकिन सबसे आगे हेवी सोशल मीडिया यूजर्स ही हैं। अध्ययन में बच्चों से पूछा गया कि 16 साल की उम्र के बाद उनकी पढ़ाई की योजना क्या है? इस पर 90 प्रतिशत हेवी सोशल मीडिया यूजर्स ने बताया कि वे यूनिवर्सिटी में जाएंगे। उनका पढ़ाई और विषय का चयन पूरी तरह साफ है। इसके बरअक्स सोशल मीडिया पर कम समय देने वाले 87 प्रतिशत बच्चों ने अपने आगे की पढ़ाई पर साफ जवाब दिए। जो बच्चे सोशल मीडिया इस्तेमाल नहीं करते हैं, उनमें से 82 प्रतिशत ने यूनिवर्सिटी चयन के बारे में सीधा जवाब दिया।

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शोध पर सवाल
1- किशोरों के सोशल साइट्स पर अकाउंट कैसे?
इस शोध के साथ जो सबसे पहली बहस खड़ी हुई है, वह सोशल मीडिया पर कम उम्र के बच्चों के अकाउंट को लेकर है। ज्यादातर सोशल साइट्स 18 साल से कम उम्र के बच्चों के अकाउंट नहीं बनाती हैं। अकाउंट बनाने से पहले यूजर की उम्र पूछी जाती है, जो महज औपचारिकता होती है। इससे कम उम्र के बच्चे आसानी से अकाउंट बना लेते हैं।

2- बहस करना, बच्चों के तार्किक होने का सबूत
अध्ययन का निष्कर्ष है कि सोशल मीडिया पर ज्यादा वक्त बिताने वाले बच्चे ज्यादा बहस करते हैं। इसे ज्यादातर विशेषज्ञ एक अच्छा निष्कर्ष मानते हैं, जबकि अभिभावक इसे एक गलत परंपरा की शुरुआत करार दे रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि सोशल मीडिया पर बच्चे कई मुद्दों पर बहस कर रहे हैं जिससे उनकी तार्किक क्षमता बढ़ी है। इसी का असर घर में दिखाई दे रहा है।

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3- आक्रामक और हिंसक व्यवहार
सोशल मीडिया पर अधिक वक्त गुजारने वाले बच्चे ज्यादा आक्रामक होते हैं। यह बात कई अन्य देशों के अध्ययन में भी सामने आई है। इसकी वजह बच्चों का वर्चुअल रियलिटी में ज्यादा यकीन है। उन्हें लगता है कि उनके आसपास ज्यादा बुरे और स्वार्थी लोग हैं। वे नकारात्मकता के प्रति ज्यादा संवेदनशील हो जाते हैं। नतीजतन उनका व्यवहार हिंसक होता जाता है।

4- खुद को बदसूरत मानना
बच्चे इंटरनेट पर कई तरह के लोगों को देखते हैं। जो इंटरनेट पर दिखाई देता है, वह उस शख्स का एक हिस्सा होता है। इसे ही यूजर सच मान लेते हैं इससे उनमें हीन भावना आती है।
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10-15 साल के बच्चों पर किया गया अध्ययन
3 घंटे से कम और इससे ज्यादा रात में सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वाले दो समूह बनाए गए
3500 बच्चों की आदतों पर करीब तीन साल तक किया गया अध्ययन
4000 परिवारों को किया शोध में शामिल। हर वर्ग और समुदाय की हिस्सेदारी।
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3 घंटे से कम वाले यूजर
53 प्रतिशत बच्चे अपने लुक से खुश हैं
22 प्रतिशत ही बड़ों के साथ बहस करते हैं
11 प्रतिशत ने सोशल मीडिया से परेशानी कबूली
99 प्रतिशत मानते हैं कि उन्हें परिवार का सपोर्ट मिलता है
06 प्रतिशत ही बंक करते हैं स्कूल क्लास

3 घंटे से ज्यादा वाले यूजर
82 प्रतिशत बच्चे खुश नहीं हैं अपने लुक से
44 प्रतिशत करते हैं माता-पिता से बहस
17 प्रतिशत ने माना कि वे परेशान हैं सोशल मीडिया से
14 प्रतिशत स्कूल से बेवजह रहते हैं गैरहाजिर
05 प्रतिशत का कहना है कि परिवार सपोर्ट नहीं करता