सेलिब्रेशन आॅफ जर्नलिज्म: स्कूल में बड़ों की नकल का भंडाफोड़ बच्चों से धोखाधड़ी

1 अगस्त 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव
असर: नंबर बढ़ाने पर लगी रोक। 12 को मिली सजा। नया कानून।

बात 2009 की सर्दियों की है। अटलांटा जर्नल कॉन्स्टीट्यूशन के पत्रकार माइकल बी पैल के सामने अटलांटा के स्कूलों की वार्षिक रिपोर्ट थी और न्यूज रूम में छात्रों के टेस्ट नंबरों में हुई बढ़ोत्तरी को लेकर उत्साह का माहौल था। लेकिन माइकल के दिमाग में कुछ खटक रहा था। अटलांटा में 2002 से 2009 के बीच छात्रों के स्कोर में 14 प्वाइंट का उछाल आया था। यह किसी भी शहरी क्षेत्र में सर्वाधिक था। माइकल ने कोई रिपोर्ट नहीं की। कुछ दिनों की बेचैनी के बाद उन्होंने इसकी चर्चा स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के फिलॉसफी के प्रोफेसर जॉन पैरी से की। जॉन ने माइकल को बताया कि असल में यह छात्रों की योग्यता बढऩे का वाकया नहीं है, बल्कि स्कूल खुद ही अपने बच्चों के नंबरों को बढ़ाते हैं, ताकि रिजल्ट बेहतर रहें। माइकल ने इस पर एक छोटी रिपोर्ट फाइल की और इस सिलसिले में खोज करने लगे। माइकल की इस खोज में प्रोफेसर पैरी के अलावा हीदर वोगन और एलन जूड का भी साथ मिला। इन चारों की एक साल लंबी रिसर्च से जो कुछ सामने आया वह बेहद चौंकाने वाला और हैरतअंगेज था। 

जुलाई 2011 में यह रिसर्च सामने आई, जिसमें 56 में से 44 स्कूलों में बड़ों की इस नकल का पर्दाफाश हुआ। और पता चला कि बच्चों के टेस्ट कॉपियों के नंबर स्कूल टीचर चैकिंग के दौरान बढ़ा देते थे। इस मामले में 178 टीचर्स और प्रिसिंपलों की मिलीभगत का खुलासा हुआ। बाद में जॉर्जिया ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन ने इस मामले की पड़ताल की। मामला उछला तो अमरीका के अन्य हिस्सों में भी टेस्ट की इस धांधली का पता चला।
असर
12 शिक्षकों को अकेले अटलांटा में दोषी पाया गया।
3 महीने से लेकर 13 साल तक की सजा सुनाई गई।
5000 से लेकर 25 हजार डॉलर तक का जुर्माना किया गया।
1000 से लेकर 2000 घंटों की कम्यूनिटी सर्विस की सजा दी गई।
कानूनी बदलाव
इस धोखाधड़ी के सामने आने के बाद देश व्यापी बहस छिड़ी और २००१ के ‘नो चाइल्ड लेफ्ट बिहाइंड एक्टÓ में संशोधन किए गए। शैक्षणिक कार्यों में लगे लोगों के उत्तरदायित्वों को नए सिरे से परिभाषित किया गया। स्कूलों के आतंरिक और बाह्य दोनों तरह के मूल्यांकनों में टारगेट तय करने की प्रथा खत्म की गई।

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2009 में स्कूलों की मार्किंग प्रणाली पर सवालिया निशान लगे।
2011 में जुलाई-अगस्त के महीनों में इस पर रिपोर्ट प्रकाशित होना शुरू हुईं।
2014 में 29 सितंबर को आरोपी शिक्षकों के खिलाफ सुनवाई शुरू हुई।
2015 में 2 मार्च को धोखाधड़ी के केंद्र रहे बेव्रली हाल के सुपरिटेंडेंट की कैंसर के कारण मौत हो गई।
2015 में 1 अप्रैल को अदालत का फैसला आया, जिसमें १२ शिक्षकों को दोषी करार दिया गया।

ये थे हीरो
एलन जूड: बतौर शिक्षक अपना कॅरियर शुरू करने वाले एलन एक सिपाही रहे हैं और नौकरशाह भी। अब ७० वर्षीय एलन पूरी तरह से लेखन को समर्पित हैं।
हीथर वोगेल: हीथर एक पत्रकार हैं और उन्होंने माइकल के साथ टेस्ट चीटिंग के मामले पर रिपोर्टिंग और रिसर्च की। उनकी रिपोट्र्स के आधार पर ३४ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज हुईं।
जॉन पैरी: स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के फिलॉसफी के प्रोफेसर। वे इससे पहले कैलिफोर्निया में भी प्रोफेसर रह चुके हैं।
माइकल बी पैल: इन दिनों राइटर न्यूज एजेंसी से जुड़े हैं। अलटलांटा जर्नल कॉस्टीट्यूशन के साथ काम के दौरान टेस्ट चीटिंग का मामला उजागर किया।

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