दिनेश भराडिया: 28 वर्षीय वैज्ञानिक ने सुलाई 150 साल पुरानी गुत्थी

16 सितंबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तवभारतीय मूल के 28 वर्षीय वैज्ञानिक दिनेश भराडिया को मारकोनी सोसायटी की ओर से पॉल बैरन यंग स्कॉलर अवार्ड से नवाजा जाएगा।

2.68 लाख रुपए की नकद राशि दी जाएगी पुरस्कार के तहत
150 साल पुरानी वैज्ञानिक समस्या को सुलझाया है
2 नवंबर को कैलिफोर्निया में दिया जाएगा अवार्ड

आईआईटी से एमआईटी तक
मूलरूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर के रहने वाले दिनेश ने आईआईटी कानपुर से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने पीएचडी के लिए अमरीका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। फिलहाल वे रेडियो तरंगों पर हालिया शोध उन्होंने मैसाच्यूस्ट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के सहयोग से किया है। वे एमआईटी के शोध छात्र हैं।

रेडियो तरंगोंं के क्षेत्र में खोज 
अब तक माना जाता था कि सामान्य तौर पर एक रेडियो के लिए एक ही तरंग बैंड पर सूचनाएं हासिल करना और उन्हें उसी बैंड पर  प्रसारित करना संभव नहींं है, क्योंकि इससे तरंगों के परिणाम में हस्तक्षेप होता है। दिनेश के अध्ययन के बाद पूर्ण ड्यूप्लेक्स यानी दो तरफा बातचीत वाले रेडियो निर्माण की राह खुल गई है।

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मार्कोनी की बेटी ने शुरू किया था पुरस्कार
यह पुरस्कार रेडियो का आविष्कार करने वाले नोबेल विजेता वैज्ञानिक मार्कोनी के सम्मान में उनकी बेटी जियोइया मार्कोनी ब्रागा ने शुरू किया था। अवार्ड देने वाली सोसायटी ने अपने बयान में कहा है, “भराडिय़ा को रेडियो तरंगों को भेजने और हासिल करने के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चुना गया है।”

शोध का लाभ
दिनेश के डुप्लेक्स रेडियो तकनीक के ताजा शोध से वायरलैस इमेज तकनीक को खासा फायदा होगा। इससे ड्राइवरलैस कारों को खराब मौसम में भी आसानी से चलाया जा सकेगा। इसके अलावा दृष्टिहीनों के लिए भी यह उपयोगी तकनीक साबित होगी।

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मार्कोनी रहे थे नाकाम
मार्कोनी ने रेडियो का अविष्कार किया था, लेकिन वे डुप्लेक्सिंग की समस्या हल करने में नाकाम रहे  थे। इस वजह से मार्कोनी सोसायटी के लिए यह एक खास शोध है, जिसे वे पुरस्कृत कर रहे हैं। 150 सालों में सैकड़ों वैज्ञानिक इस समस्या पर शोध करते रहे हैं, लेकिन किसी को सफलता हासिल नहीं हुई थी।