किसानों की कर्जमाफी, सियासत, शगूफा या जरूरत?

सचिन श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश
में किसानों की कर्जमाफी के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री ने भी भविष्य में कर्जमाफी की घोषणा की है। हालांकि उन्होंने वक्त नहीं बताया है। उधर महाराष्ट्र में भाजपानीत सरकार पर किसानों की कर्जमाफी का दबाव बढ़ गया है। इसी तरह गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के किसानों को उम्मीद है कि संबंधित राज्य सरकार उन्हें तोहफा देगी। यह दीगर बात है कि एक बार कर्जमाफी के बाद किसान को फिर नये सिरे से कर्ज की दरकार होती है। यानी कर्ज और कर्जमाफी दोनों ही स्थायी समाधान नहीं, बल्कि फौरी राहत भर हैं। हमारे देश में कर्ज और किसान आत्महत्या का भी सीधा संबंध है, इसलिए कर्जमाफी से बुरा वक्त थोड़ा टलने जैसे हालात बनते हैं। सीमांत किसानों की हालत खराब है
और उनके पास विकल्पों की घोर कमी है।

कृषि और उद्योग का फर्क
12.60 लाख करोड़ रुपए का कर्ज है देश भर के किसानों पर। कृषि राज्य मंत्री का बयान नंवबर 2016 में।
26 करोड़ लोग सीधे खेती से जुड़े हैं देश में। 2011 की जनगणना के मुताबिक।
11.80 लाख किसान अपनी जमीन पर करते हैं खेती
14.40 करोड़ हैं देश में खेतिहर मजूदरों की संख्या।

17.15 लाख करोड़ रुपए का टैक्स माफ किया गया है कारोबार जगत का बीते तीन वित्तीय वर्ष में। केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार ने राज्यसभा में बताया।
03 करोड़ रोजगार हैं संगठित उद्योग क्षेत्र में
15 महीनों में बैंकों का एनपीए दोगुने से ज्यादा हो गया है

वित्तीय अनुशासन बिगडऩे का डर
भारतीय स्टेट बैंक की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य ने हाल ही में कहा था कि किसानों की कर्जमाफी से वित्तीय अनुशासन बिगड़ सकता है। इस बयान के बाद उद्योगों और किसानों की कर्जमाफी पर खासी बहस चली थी। एक तरफ सरकार ने उद्योग जगत को बीते तीन सालों में खासी राहत दी है, वहीं किसानों को राहत देने में कोताही बरती गई है।
70 लाख करोड़ रुपए की थी बैंकों की कुल कर्ज राशि मार्च 2016 में
41.71 फीसदी कर्ज उद्योग जगत के पास है
13.49 फीसदी कर्ज कृषि क्षेत्र में

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तीन साल से किसानों के हालात सबसे खराब
यूं तो बीते डेढ़ दशक से खेती पर संकट लगातार बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे कई कारण हैं। इधर बीते तीन साल से किसानों के हालात लगातार बद से बदतर होते जा रहे हैं। किसान आत्महत्या इस बदतरी का आईना हैं। हालांकि कई इलाकों में किसानों खेती छोड़कर अन्य रोजगारों की ओर जा रहे हैं। खासकर शहरों में मजदूरों की बढ़ती संख्या का सीधा संबंध किसानी पर आए संकट से है।
71.9 प्रतिशत किसान थे 1951 में कृषि क्षेत्र में। 28.1 प्रतिशत खेतिहर मजूदर।
45.1 प्रतिशत किसान बचे हैं 2011 की जनगणना के मुताबिक, जबकि खेतिहर मजदूर बढ़कर हो गए हैं 54.9 प्रतिशत
12 प्रतिशत बढ़ा है 2000 से 2011 के बीच गैर-कृषि ग्रामीण रोजगार

अन्य राज्यों में उठेगी कर्जमाफी की मांग
कर्ज माफी का फैसला उत्तर प्रदेश तक सीमित नहीं रहेगा। महाराष्ट्र में कर्ज माफी की मांग जोर पकड़ रही है। पंजाब में कांग्रेस सरकार ने कर्जमाफी पर सहमति जताई है। तमिलनाडु में भी यह बड़ा मुद्दा है। वहां एक अदालत ने सरकार से इस मसले पर पहल को कहा है। तमिलनाडु के दर्जनों किसान दिल्ली के जंतर-मंतर पर धरने पर बैठे हैं। कर्नाटक विधानसभा में भी कांग्रेस सरकार ने केंद्र सरकार से ऐसी ही मांग की है। वहां लगभग 40 हजार करोड़ रुपए का कर्ज किसानों पर है। कर्नाटक में अगले साल चुनाव होना है। बिहार में नीतीश सरकार अगले कुछ दिन में केंद्र से किसानों की कर्जमाफी के लिए वित्तीय मदद से जुड़ा विस्तृत मांग पत्र भेजेगी। उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के फैसले का असर भाजपा शासित अन्य राज्यों में भी दिखाई देगा।

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कैसे संभव है कर्ज से मुक्ति?
कर्जमाफी को विशेषज्ञ फौरी समाधान ही मानते हैं। महाराष्ट्र में किसान आत्महत्या का मसला उभरने के बाद तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने बड़े पैमाने पर कर्जमाफी की थी, लेकिन हालात नहीं बदले। विशेषज्ञ मानते हैं कि किसानों को कर्ज के दुष्चक्र से बाहर लाने के लिए जरूरी है कि नकदी फसल पर लगाम लगाई जाए। साथ ही समर्थन मूल्य की नीति को बेहतर बनाया जाए। इसके अलावा बाजार से सीधे किसानों को जोड़ा जाय ताकि बिचौलियों के बजाय किसानों को सीधा मुनाफा हो।

2003 का ‘किसानों के हालात आकलन सर्वेक्षण
69 प्रतिशत
से अधिक ग्रामीणों के पास मामूली जोत है
17.1 प्रतिशत परिवार छोटी जोत के भरोसे हैं
10 में से 04 किसान खेती को नापसंद करते हैं। उन्हें कोई विकल्प दिया जाए तो वे खेती छोड़कर किसी और पेशे को अपनाना पसंद करेंगे।
27 प्रतिशत किसानों का यह मानना था कि खेती लाभदायक नहीं है
08 प्रतिशत किसानों इसे जोखिम भरा काम मानते हैं।

छोटे किसानों का हाल बेहद खराब
छोटे और बड़े दोनों ही किसानों को चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, लेकिन कच्चे माल तक पहुंच के मामले में दोनों के हालात अक्सर एक जैसी नहीं होते। इस मामले में बड़े किसानों को कुछ बढ़त हासिल है। छोटे किसानों को तकनीकी, वित्तीय और संस्थागत सहायता हासिल करने के रास्ते में कई बाधाओं का सामना करना पड़ता है। जैसे-
– औपचारिक कर्ज और बीमा तक सीमित पहुंच
– आधुनिक कृषि उपकरणों एवं तौर-तरीकों का ठीक प्रशिक्षण देने वाली योजनाओं का अभाव
– सिंचाई के लिए अपर्याप्त पानी की आपूर्ति
– फसल विविधीकरण के लिए बेहद कम या कोई गुंजाइश नहीं
– फसल बिक्री की सुविधाओं का अभाव