सीबीएसई की ताजा गाइडलाइन: नाजुक कंधे बोझिल बस्ते

27 सितंबर 2016 को राजस्थान पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव 
सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) ने स्कूली छात्रों के कंधों से बस्ते का बोझ कम करने की एक और कोशिश की है। सीबीएसई ने ताजा गाइडलाइन में शिक्षकों को साफ हिदायत दी है कि वे कोई किताब या कॉपी न लाने के लिए बच्चों को दंडित न करें। साथ ही निर्देश दिए हैं कि प्रबंधक, शिक्षक और अभिभावक मिलकर बस्तों का बोझ करने की दिशा में प्रयास करें। असल में लंबे समय से स्कूली बैग्स का बढ़ता वजन चिंता का विषय रहा है लेकिन इसका ठोस हल नहीं निकल पा रहा है। इसकी वजह कई हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु समेत कई राज्य सरकारों ने वजन निर्धारित करने के प्रयास किए थे, लेकिन कामयाबी हासिल नहीं हुई।

सीमा निर्धारण में हैं कई पेंच
मुंबई हाई कोर्ट ने इसी साल एक समिति की सिफारिश पर बस्ते का वजन कम करने का निर्देश दिया था। स्कूलों की जवाबदेही भी तय की गई, लेकिन हकीकत की जमीन पर इन निर्देशों पर अमल नहीं हुआ। असल में स्कूली बैग के वजन का मसला पूरी शिक्षा व्यवस्था से जुड़ा है। आठ घंटे स्कूल में गुजारने के बावजूद छात्र घर पर होमवर्क करते हैं। इससे वे शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर अत्याधिक बोझ उठाते हैं।

वजन का 10 प्रतिशत
अंतरराष्ट्रीय मानकों के मुताबिक स्कूली बैग का वजन छात्र के कुल भार का 10 प्रतिशत होना चाहिए। विशेष परिस्थितियों में यह अधिकतम 15 प्रतिशत हो सकता है।
मुश्किल: खान-पान के कारण आजकल बच्चे का वजन ज्यादा हो जाता है, लेकिन वह शारीरिक रूप से उतना मजबूत नहीं होता है। ऐसे में 10 प्रतिशत की सीमा भी कई बार अधिक हो जाती है।

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2.5 किलो की सीमा
स्कूली बैग का वजन औसतन 2.5 किलो से अधिक नहीं होना चाहिए। कक्षा-1 से आठ तक के लिए यह 1.8 किलो से 3.45 किलो तक हो।
मुश्किल: 2.5 किलो से ज्यादा वजन बच्चे के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है। इससे बच्चों का शारीरिक विकास प्रभावित होता है।

पढ़ाई का तरीका
बच्चों को स्कूलों की ओर से बहुत ज्यादा होमवर्क दिया जाता है और उसे दूसरे दिन टीचर्स के समक्ष प्रस्तुत करना भी अनिवार्य है।
मुश्किल: होमवर्क के कारण बच्चों के बैग का वजन ज्यादा हो जाता है। किताबों की संख्या और उनके होमवर्क से संबंधित कॉपी का कुल वजन 5 से 6 किलो तक होता है।

1 घंटे से ज्यादा कंधे पर
आंकड़ों के मुताबिक प्रतिदिन बच्चे के कंधे पर 40 से 70 मिनट तक बैग टंगा होता है। घर से वाहन तक पहुंचने के वक्त सबसे ज्यादा मुश्किल होती है। स्कूल के भीतर भी करीब 10 मिनट तक बैग कंधे पर रहता है। 9 साल की उम्र से ज्यादा के बच्चे दोनों कंधों के बजाय एक कंधे पर बैग टांगते हैं।
मुश्किल: इससे बच्चों के कंधों में विकार आता है। कंधे बदलकर बैग टांगने से भी शरीर एक ओर झुक जाता है।

बैग के बिना पढ़ाई मुमकिन
कई देशों ने स्कूली बैग के बिना पढ़ाई के तरीके ईजाद किए हैं। भारत में भी वैकल्पिक शिक्षा दे रहे कई विशेष स्कूली किताबों के बिना पढ़ाते हैं। फिर भी किताबें जरूरी हैं, तो उसे बच्चों के कंधे से हटाने के कई विकल्प हो सकते हैं।
स्कूल में रहें किताबें: किताबों को स्कूल में ही रखा जाए और छात्र अपनी किताबों को हर रोज स्कूल में अपनी टेबल पर रखें। होमवर्क आदि काम भी स्कूल में ही कराया जाए। ताकि बच्चे घर पर स्वतंत्र होकर अन्य गतिविधियों में हिस्सेदारी कर सकें।
कंप्यूटर या टैबलेट: कंप्यूटर या टैब में पाठ्य सामग्री स्टोर की जा सकती है और बच्चों को वजन से मुक्ति दिलाई जा सकती है।
जरूरत कम करें: स्कूल किताबों की जरूरत को कम कर सकते हैं। होमवर्क को कम करके भी बोझ कम किया जा सकता है।
किताबें हल्की हों: किताबों में ऐसे कागज का इस्तेमाल किया जाए जो उनके भार को कम करे।
शेयरिंग: बच्चों में किताबें शेयर करने की आदत डालकर भी बैग्स का वजन कम किया जा सकता है।

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6.2 किलोग्राम है आठवीं तक के स्कूली बच्चों के बैग का औसत वजन 
10-12 किलोग्राम का होता है 9वीं से 12वीं के बच्चों का बैग
3.7 किलो है सरकारी स्कूलों के बस्ते का औसत वजन। सीबीएसई, प्राइवेट अन्य बोर्ड के मुकाबले सबसे कम
2 किलो होना चाहिए कक्षा दो तक बैग का वजन
3 किलो है कक्षा 3 व 4 के लिए निर्धारित वजन
4 किलो तक अधिकतम वजन हो सकता है कक्षा पांच व छह के बैग का
65 प्रतिशत बच्चे ही उठाते हैं दोनों कंधों पर स्कूली बैग