कैसे जानें कि घर से दूर आपका बच्चा सोशल मीडिया और इंटरनेट की गलियों में कहां भटक रहा है?

6 से 22 साल की उम्र के बच्चे जिस तेजी से सोशल मीडिया और तकनीक की गिरफ्त में आ रहे हैं, वह उनके मां-बाप के लिए चिंता का विषय है। हालात यह हैं कि हम खुद जब बच्चे ​थे, तो हमारे घर से बाहर जाने पर परिजन फि​क्र करते थे। आज बच्चे घर में हैं, लेकिन वे सोशल मीडिया और इंटरनेट की अनचाही—अनजानी गलियों में कहीं भटक न जाएं यह चिंता हर अभिभावक को दुबला कर रही है। आइये इन चिंताओं से मुक्त हों और जानें कि कैसे अपने बच्चे की हर सोशल मीडिया हरकत पर रखें नजर। आज बात करते हैं तकनीक से पैदा हुई इन समस्याओं के तकनीक आधारित हलों पर…  

सचिन श्रीवास्तव
पिछले दिनों जितने भी दोस्तों से मिला उनमें से ज्यादातर ने अपने बच्चों के सोशल मीडिया एडिक्शन पर चिंता जरूर जाहिर की है। यह सच भी है, जेनरेशन जेड (1997 के बाद पैदा हुई पीढ़ी) के सोशल मीडिया एडिक्शन ने हर मां-बाप के माथे पर बल ला दिया है। जाहिर है मौजूदा दौर के बच्चों को अगर तकनीकी संचालित बच्चे कहा जाए तो गलत नहीं होगा। आने वाले वक्त में इनकी जिंदगी में तकनीक का दखल तेजी से बढ़ेगा और बड़ी चिंता की बात यह है कि हम लोग जिस ढंग से तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके मुकाबले नई पीढ़ी बेहद तेज, स्मार्ट और तकनीक फ्रेंडली है। ऐसे में मुश्किल यह है कि हम एक-दो नहीं बल्कि 40 कदम आगे की तकनीकी पीढ़ी को कैसे परख पाएं। हालांकि हमें अपने बच्चों पर भरोसा करना चाहिए कि वे किसी गलत राह पर नहीं चलेंगे, लेकिन बतौर मां-बाप यह चिंता तो होती ही है कि वे तकनीकी दुनिया के किसी जंजाल में न फंस जाएं।

कई अभिभावकों ने इसका सीधा तरीका यह निकाला है कि उन्होंने बच्चों से स्मार्टफोन या इंटरनेट छीन लिया है, या उसका सीमित इस्तेमाल ही दिया है। लेकिन यह सही तरीका नहीं कहा जा सकता है। हम भले ही पूरी तरह से तकनीक पर आधारित जीवन न जी रहे हों लेकिन हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए तकनीक जीवन का जरूरी हिस्सा होगी और उससे किसी भी छोटे वक्त के लिए उन्हें दूर करना, बच्चों के साथ नाइंसाफी होगी।

हर अविष्कार और नई खोज का प्राथमिक उद्देश्य इंसानी जीवन को आसान बनाना और मुश्किलों का हल ढूंढना ही होता है, लेकिन हम आंखें बंद कर लें तो भी यह सच्चाई नहीं छुप सकती है कि तकनीक ने नई पीढ़ी पर कई बुरे असर डाले हैं। एक तरफ सोशल मीडिया और तकनीक के साथ तेजी से अपने जीवन को बदल रहे बच्चे जमीनी जीवन से दूर हो रहे हैं, तो साथ ही अपने आसपास की दुनिया को बारीकी से देखने का हुनर भी खोते जा रहे हैं। ​हर रोज नए ऐप, गेम्स, साइट्स और अन्य तकनीकी फोरम लांच हो रहे हैं और इनसे कदमताल करते हुए बच्चे यह भूलते जा रहे हैं कि उनके आसपास भी एक बड़ी दुनिया है, जिसे वे किसी स्मार्टफोन या टैबलेट के बिना भी देख सकते हैं।

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समय ने जो करवट ली है उसका अंदाजा इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि हम लोग जब बच्चे थे तो हमारे मां-बाप हमारे घर से बाहर निकलने पर चिंतिंत होते थे, लेकिन आज के बच्चे घर में बैठे हुए हैं, फिर भी मां-बाप के माथे पर चिंता की लकीरें हैं क्योंकि वे तकनीक के जरिये सोशल मीडिया और इंटरनेट की जिन गलियों में भटक रहे हैं, उसमें तमाम अनजाने-अनचाहे खतरे मौजूद हैं।

ऐसे हालात में बच्चों की बदलती दुनिया को कोसने के बजाय हमें ऐसे रास्ते निकालने होंगे जिससे हम उन पर बेहतर ढंग से नजर रख सकें। ताकि हालात बदतर होने से पहले हम उन्हें आगाह कर सकें। जाहिर है इसके लिए तकनीक का ही इस्तेमाल करना होगा।

इसके लिए शुरुआत में यह 3 कारगर तरीके अपनाए जा सकते हैं। हालांकि 6 से 10 साल की उम्र, 11 से 15 साल की उम्र और 16 से 22 साल की उम्र के बच्चों के साथ कुछ अलग-अलग तरीके अपनाए जा सकते हैं। जिन पर हम अगले लेख में बात करेंगे। फिलहाल ये 3 तरीके सभी 6 से 22 साल की उम्र के सभी बच्चों के साथ काम करते हैं।

1. समय की पाबंदी: पूरी दुनिया में टीनएजर्स का औसत सोशल मीडिया एडिक्शन टाइम 9 घंटे का है। इसे दो घंटे पर लाया जाना जरूरी है। दो घंटे सोशल मीडिया का इस्तेमाल एक आदर्श समय है, लेकिन इसे यकायक नहीं पाया जा सकता है। यह 35 पार के वयस्कों के लिए ही खासा मुश्किल है, ऐसे में बच्चों के लिए यह लगभग नामुमकिन है, लेकिन फिर भी कोशिश करके इसे पाया जा सकता है। इसके लिए बच्चों को लगातार सोशल मीडिया के खतरों से आगाह करना और उन्हें दूसरी एक्टिविटी में बिजी रखना जरूरी है।

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2. खुद तकनीक में बनें बच्चे: बच्चों की सीखने की क्षमता हम वयस्कों के मुकाबले काफी बेहतर होती है। ऐसे में नई एप और गेम्स के बारे में जानना और उनमें पारंगत होना हमारे लिए खासा मुश्किल है, लेकिन फिर भी एक सामान्य यूजर की तरह उसे देखा जा सकता है। आपका बच्चा किस गेम, एप या फोरम पर अधिक वक्त देता है उसे समझना और उस खास फोरम के खतरों को जानना जरूरी है।

3. बच्चों की मॉनिटरिंग: अगर समय की पाबंदी और एप के विषय में आगाह करने के बावजूद आपका बच्चा सोशल मीडिया या इंटरनेट को अधिक समय देता है, तो इसके लिए एक शानदार विकल्प मॉनिटरिंग का है। आजकल इंटरनेट पर ऐसे कई ऐप मौजूद हैं जिसके जरिये किसी भी टैबलेट या स्मार्टफोन पर चलने वाले सोशल मीडिया एप और इंटरनेट ब्राउजिंग के साथ फोन, कॉन्टेक्ट, मैसेज आदि एक्टिविटी को कहीं से भी मॉनिटर किया जा सकता है। इसके लिए बस आपको करना इतना है कि जिस स्मार्टफोन या टैबलेट की मॉनिटरिंग आप करना चाहते हैं, उसमें एक एप डाउनलोड कर दें और उसे एक्टिव कर दें। इसके बाद उसे किसी भी अन्य कंम्यूटर पर लॉगिन करके आप अपने बच्चे की इंटरनेट ब्राउजिंग से लेकर उसके मैसेज आदि तक को देख सकते हैं। यह लाइव होगा। हालांकि इसमें आपके बच्चे की निजता में दखलअंदाजी करेंगे, लेकिन इसके लिए उसे पहले से बता दें तो अच्छा होगा।

(अगर आपके कोई विशेष सवाल हैं, या आप अपने सोशल मीडिया की किसी खास समस्या का हल चाहते हैं, तो कमेंट बॉक्स में लिखें। कोशिश होगी कि आसान तरीके से आपको जल्द हल उपलब्ध कराया जा सके।)