क्या संभव है ईवीएम से छेड़छाड़?

सचिन श्रीवास्तव
चुनावी हार के बाद अपनी कमजोरियों को किसी दूसरे कारण के पीछे छिपाने का सिलसिला नया नहीं है। पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद भी ऐसी कोशिशें जारी हैं। इसी बीच करारी हार के बाद बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने इलेक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम की वैधता पर सवाल खड़ा कर दिया है। उन्होंने ईवीएम के जरिये धोखाधड़ी का आरोप लगाया है। उधर, अखिलेश यादव ने अपनी हार स्वीकार कर ली है, लेकिन ईवीएम से छेड़छाड़ के आरोपों की जांच को भी जरूरी बताया है। ऐसे आरोप पहले भी लगते रहे हैं, जिन्हें चुनाव आयोग सिरे से नकारता रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सचमुच ईवीएम से किसी किस्म की छेड़छाड़ संभव है? जानते हैं इससे जुड़े अन्य पहलु और वैश्विक उदाहरण…

1982 में पहली बार भारत में ईवीएम का इस्तेमाल हुआ। केरल के विधानसभा उपचुनाव में।
2013 में नागालैंड की नोक्सन सीट पर पहली बार मतदाता पहचान वाले पेपर ट्रेल का उपयोग हुआ

की जा चुकी हैं कई याचिकाएं

ईवीएम में छेड़छाड़ पर 2010 में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका लगाई थी। हालांकि हाईकोर्ट को ईवीएम से छेड़छाड़ का कोई सबूत नहीं मिला और चूंकि कोर्ट इस मामले में चुनाव आयोग को कोई दिशा-निर्देश नहीं दे सकता ऐसे में सरकार और चुनाव आयोग को आपस में मिलकर इसका नतीजा निकालने को कहा गया। इससे पहले 2009 में भाजपा नेता नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी ईवीएम को लेकर संदेह जताया था और परंपरागत मतपत्रों से वोटिंग की मांग की थी। कई अन्य लोगों ने भी ऐसे आरोप लगाए, लेकिन अदालत में ये साबित नहीं किए जा सके।

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हो सकती है ईवीएम हैक
मई 2010 में वैज्ञानिक शोध में यह दावा किया गया था कि भारत की ईवीएम हैक की जा सकती हैं। दावों के मुताबिक, ईवीएम से कुछ उपकरण जोडऩे के बाद मोबाइल से मैसेज भेजकर परिणाम बदले जा सकते हैं। हालांकि इसके बाद ईवीएम तकनीक में काफी बदलाव हो चुका है। फिर भी तकनीकी विशेषज्ञों का मामला है कि चूंकि ईवीएम एक इलेक्ट्रॉनिक उपकरण हैं और यह कंप्यूटर की तरह ही काम करता है, इसलिए हैकिंग संभव है।

मजबूत हैं मशीनें
भारत में इस्तेमाल होने वाली मशीनें काफी मजबूत हैं और मुझे नहीं लगता कि उन्हें हैक किया जा सकता है।
– टीएस कृष्णमूर्ति, पूर्व चुनाव आयुक्त

संभव है हैकिंग
ईवीएम भी ठीक उसी तरह प्रोग्राम की जाती हैं, जैसे कोई कंप्यूटर। इसकी प्रोग्रामिंग जिस तरह से कर दी जाएगी यह वैसे ही काम करेगी। इस प्रोग्रामिंग को हैकिंग के जरिये बदला भी जा सकता है।
– गौरव आनंद, तकनीकी विशेषज्ञ

पेपर ट्रेल से पहचान का खतरा
सुब्रह्मणयम स्वामी की याचिका में यह सवाल भी उठाया गया था कि मतदाता को पता ही नहीं होता कि उसका वोट किसे गया है। हालांकि बाद में भारतीय ईवीएम को बेहतर बनाया गया। इसमें पेपर ट्रेल भी लगाया गया है ताकि वोटों की फिर से गिनती की जा सके, लेकिन इसके जरिये वोटरों की पहचान पता चलने का खतरा भी है।

कैसे काम करती है ईवीएम
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में एक कंट्रोल यूनिट होता है। एक बैलट यूनिट और 5 मीटर की केबल। यह मशीन 6 वोल्ट की बैटरी से चलाई जा सकती है। मतदाता अपनी पसंद के प्रत्याशी के आगे दिया बटन दबाता है। एक वोट लेते ही मशीन लॉक हो जाती है। इसके बाद सिर्फ नए बैलट नंबर से ही खुलती है। एक मिनट में ईवीएम से सिर्फ 5 वोट दिए जा सकते हैं।

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हैकर्स दे चुके हैं धमकी
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हैकर्स ईवीएम मशीन हैक करने की धमकी कई बार दे चुके हैं। भारत समेत कई देशों के संदर्भ में ऐसा हुआ है। हैकरों ने परिणाम बदलने से लेकर वोटर्स की जानकारी सार्वजनिक करने तक की घमकी दी। इन धमकियों के मद्देनजर ईवीएम सॉफ्टवेयर बदला जा चुका है, लेकिन फिर भी खतरा बरकरार है।

इन देशों में बैन है ईवीएम
जर्मनी (2009) और नीदरलैंड्स (2007) से लेकर कई अन्य यूरोपीय और अफ्रीकी देश पारदर्शिता ना होने के कारण ईवीएम बैन कर चुके हैं। नीदरलैंड्स ने 2017 के चुनाव में मतगणना पारंपरिक ढंग से कराने की घोषणा की है। इटली ने भी ईवोटिंग को नतीजे आसानी से बदलने की आशंका के चलते बैन कर दिया है।

कई देश बढ़ रहे इंटरनेट वोटिंग की ओर
तकनीक के खतरे हैं, तो फायदे भी कई हैं। एक तरफ जहां दुनिया के कई देश ईवीएम को छोड़कर परंपरागत वोटिंग की ओर लौट रहे हैं, तो वहीं एक कदम आगे बढ़कर इंटरनेट वोटिंग की ओर जाने का सिलसिला भी जारी है। अमरीका के अलावा ऑस्ट्रेलिया, ईस्टोनिया, नार्वे आदि देश इस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।