वैश्विक बाजार पर संकट: फिर आर्थिक मंदी के मुहाने पर दुनिया

7 सितंबर 2016 के राजस्थान ​पत्रिका में प्रकाशित

सचिन श्रीवास्तव 
2008 की आर्थिक मंदी की आहटें दुनिया भर के विशेषज्ञों ने करीब तीन साल पहले महसूस कर ली थीं। इनमें हमारे पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन भी शामिल थे। 2005 में आईएमएफ के तत्कालीन आर्थिक सलाहकार राजन ने जैक्सन हॉल में दुनियाभर के आर्थिक विशेषज्ञों और बैंकर्स को चेतावनी दी थी कि दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाएं तेजी से डगमगाएंगी और इस हलचल का लंबा और दीर्घकालीन असर एक से दूसरे देश तक जाएगा। उस वक्त सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं उम्मीद के पंखों पर सवार थीं और ऊपरी तौर पर मंदी के आसार दिखाई नहीं दे रहे थे। नतीजतन राजन की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया।  अगस्त 2014 में फिर राजन ने वैश्विक मंदी की आहट को सुना और चिंता जाहिर की। 5 सितंबर को एक बार फिर राजन ने कहा है कि नीची ब्याज दरें दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं को मंदी की ओर धकेल रही हैं।

हालात: सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संकट में 
राजन के बयान को ताजा वैश्विक आर्थिक हालात से बल मिलता है। इटली लंबे समय से फाइनेंशियल संकट से गुजर रहा है। दुनिया की दस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार इस देश के खराब हालात से कई मुल्क प्रभावित होंगे। कनाडा की इकॉनोमी 1.6 प्रतिशत घटी है, जो 2009 के बाद सबसे बुरे हालात हैं। चीन की प्रोडक्टिविटी ग्रोथ 1999 के बाद सबसे खराब है। नाइजीरिया जैसे अफ्रीकी देशों में हालत बदतर हैं, तो कैरिबियाई देश अब तक 2008 के संकट से बाहर नहीं आए हैं। ग्रीस में भी अस्थिरता बरकरार है। यूरोप में शरणार्थी संकट का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है, वहीं ब्रिटेन के यूनियन से बाहर होने के बाद बाजार में मची हलचल अभी खत्म नहीं हुई है। पूर्वी एशियाई अर्थव्यवस्थाओं पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। सऊदी अरब, जापान और रूस जैसी अर्थव्यवस्थाएं भी कमजोर हो रही हैं।

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इंतजार: 1 माह से 11 महीने का है वक्त
कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि 9 सितंबर की बरसी के बाद से ही अमरीका में संकट की शुरुआत हो जाएगी। हालांकि यूरोपीय विशेषज्ञों का कहना है कि फिलहाल मंदी आने में 6 महीने का वक्त है। हालांकि इस बात पर सभी एकमत हैं कि सभी बाजारों में मंदी का असर 11 महीने तक दिखाई देने लगेगा।

उपाय: फौरी कदम की मजबूरी
हालिया दुनिया में बाजार और मंदी एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। दिक्कत यह है कि संकट का सटीक पूर्वानुमान मुमकिन नहीं। नतीजतन हल के तौर पर फौरी कदम ही उठाए जा सकते हैं। बाजार में पूंजी प्रवाह बढ़ाने के लिए किए जा रहे उपायों पर विशेषज्ञ एकमत नहीं हैं। कोशिशें जारी हैं, लेकिन नतीजे सुनिश्चित नहीं।

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उम्मीद: इलाज साथ लाएगा संकट
दुनियाभर के अर्थशास्त्री मानते हैं कि हर दो-तीन साल के बाद वैश्विक बाजारों में मंदी आना लाजिमी है। साथ ही यह भी मानते हैं कि जो संकट आएगा, वह अपने साथ हल भी लेकर आएगा। संकट की तस्वीर पूरी तरह साफ होने पर अर्थव्यवस्थाएं अपनी-अपनी तरह से उपाय करेंगी और बाजार फिर सीधी राह पर होंगे।

10 साल लग सकते हैं आगामी मंदी के असर से बाहर आने में। 
आशंका है कि आने वाला संकट 2008 की मंदी से भी बड़ा होगा।
150 से ज्यादा देशों पर पड़ेगा आने वाली मंदी का असर
124 देशों का सबसे बड़ा व्यापार सहयोगी है चीन
56 देशों की अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह से अमरीका पर निर्भर हैं
7 देशों की अर्थव्यवस्थाएं पूरी तरह चौपट हो जाएंगी अगर भारत में आई मंदी
10 बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के व्यापार सहयोगी देशों पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर